व्यावसायिक नैतिकता का अर्थ
व्यावसायिक नैतिकता को विधि द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है. वकालत के व्यवसाय के क्षेत्र में व्यावसयिक नैतिकता (Professional Ethics) उसे कहा जा सकता है जो कि अधिवक्ताओं द्वारा अपने कर्त्तव्यों का पालन करते समय तथा अधिकारों का उपयोग करते समय अपनाई जाती हैं. यह ऐसी आचरण संहिता है जिसके अधीन प्रत्येक अधिवक्ता कार्य करते हुए अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वहन करता है और अपनी प्रतिष्ठा को उच्च बनाये रखते हुए धन अर्जन करता है.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागेश्वर प्रसाद के अनुसार: “विधि व्यवसाय के सन्दर्भ में व्यावसायिक नैतिकता वह लिखित अथवा अलिखित संहिता है, जो विधि व्यवसायी के, अपने प्रति, अपने पक्षकार के प्रति, अपने विरोधी पक्ष तथा न्यायालय के प्रति व्यवहार को संचालित करती है”।
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व्यावसायिक नैतिकता किसे कहते हैं? विधि व्यवसाय दुनिया का सर्वाधिक स्वतन्त्र व्यवसाय हैं. स्वतन्त्रता ही इस व्यवसाय की आधारशिला है. इस व्यवसाय में ज्ञान, कुशलता, परिश्रम, मानवीय मेल-मिलाप, मानसिक क्षमता, मस्तिष्क की उपयोगिता आदि तत्वों का सम्मिश्रण होता है जो व्यक्ति को उच्चता प्रदान करता है. व्यक्ति की यही उच्चता उसे सदाचार की ओर भी ले जा सकती है. अधिवक्ता को कदाचार करने से रोकने के लिये तथा अपने व्यवसाय को ईमानदारी से चलाने के लिए जो नियमों की संहिता है वही व्यावसायिक नैतिकता कहलाती है.
विधि का व्यवसाय विद्वानों का एक व्यवसाय है. यह विद्वानों का व्यवसाय केवल इसलिये नहीं है. क्योंकि इसके हरक्षेत्र में विद्वता का प्रदर्शन होता है. अपितु यह इसलिये भी विद्वानों का एक व्यवसाय है. क्योंकि यह हर कदम पर एक ऐसे महान और सभ्रान्त आचरण की अपेक्षा करता है जो कि सभी और सत्य विद्वता का एक वास्तविक परिणाम होता है.
विधि एक विज्ञान है क्योंकि वह ज्ञान की किसी भी अन्य शाखा की अपेक्षा व्यक्ति के उपबोध को त्वरित गति और व्यापकता प्रदान करती है. यह एक ऐसा विज्ञान है, जो सही और गलत के निष्कर्ष को सुभिन्नित करती है और एक सुस्थापित तथा दूसरे को निवारित, दण्डित अथवा अनुतुष्ट करती है. सैद्धांतिक रूप से आत्मा के उत्कृष्ट संकल्प को यह योजना करती है और आचरण में यह हृदय की महानतम अच्छाइयों को प्रदर्शित करती है. इसको एक ऐसा विज्ञान माना गया है जो अपने उपयोग और विस्तार में सार्वभौमिक है और हर व्यक्ति तक पहुंचने का प्रयास करता है, लेकिन फिर भी संपूर्ण समुदाय को अपने आगोश में समाविष्ट करना चाहता है.
पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी० पी० सिंह का कहना है कि “वकालत का व्यवसाय से ही उच्च स्तरीय बौद्धिक एवं नैतिक व्यवसाय माना जाता रहा है. समाज में अधिवक्ताओं का प्रतिष्ठित स्थान रहा है. अतः उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे विधि व्यवसाय के प्रति निष्ठावान रहें।” उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया है कि आज विधि व्यवसाय जनता में अपनी साख खो रहा है. विधि व्यवसाय का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है.
पन्यायमूर्ति बी० पी० सिंह के यह विचार वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सोच का विषय है. अधिवक्ताओं से समाज को बड़ी आशाएं हैं. न्याय प्रशासन भी अधिवक्ताओं से कई अपेक्षाएं रखता है. अधिवक्ताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसा कोई काम नहीं करें जो न्यायालय के अवमान (Contempt of Court) अथवा वृत्तिक कदाचार (Professional Misconduct) की परिधि में आता हो.
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उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस० सी० अग्रवाल ने कहा है कि “अधिवक्ता, न्यायालय के अधिकारी होते है, उन्हीं में से न्यायाधीशों को चुना जाता है. अतः उनसे ऐसे आचरण की आशा की जाती है कि भविष्य में उनकी सत्यनिष्ठा पर कोई उंगली न उठा सके। उनका कर्तव्य है कि मामलों में सुनवाई में वे केवल पक्षकार के प्रति ही नहीं बल्कि न्यायालय एवं विपक्ष के प्रति भी सत्यनिष्ठा तथा ईमानदारी का परिचय दें।”
जधारा बनाम मुस्तफा हाजी मोहम्मद युसूफ (AIR 1993 SC 1535) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि “अधिवक्ताओं का व्यवसाय अत्यन्त गरिमा और गुणवत्ता का व्यवसाय है. विधि व्यवसाय की गुणवत्ता की सर्वोच्चता को बनाये रखना प्रत्येक अधिवक्ता का कर्तव्य है।”
फ्रांसिस बेकन के अनुसार: “न्यायालय न्याय के पवित्र मंदिर हैं. न्यायालय कक्ष में अनुशासन बनाये रखना न्यायालय के लिये अपेक्षित है. न्याय प्रशासन तभी सुचारु रूप से चल सकता है जबकि न्यायिक प्रक्रिया गरिमा के साथ संचालित हो।”
इस प्रकार अधिवक्ताओं से अपने बुद्धिक आचार संहिता (Professional Ethics) का पालन किये जाने की अपेक्षा की जाती है. व्यावसायिक नैतिकता कायम रख करके ही अधिवक्ता न्याय का मार्ग प्रशस्त रख सकता है और इससे उसके कार्य, व्यवहार और आचरण में किसी भी व्यक्ति को कोई शंका तथा आपत्ति नहीं होगी |