Table of Contents
- 1 संस्वीकृति का अर्थ
- 2 संस्वीकृति के आवश्यक शर्ते?
- 3 संस्वीकृति लेखबद्ध करने का तरीका क्या है?
- 4 1. संस्वीकृति का मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाना
- 5 2. संस्वीकृति लेखबद्ध करने से पूर्व मजिस्ट्रेट का कर्तव्य
- 6 3. संस्वीकृति नहीं किये जाने पर प्रक्रिया
- 7 4. संस्वीकृति पर हस्ताक्षर एवं ज्ञापन
- 8 ज्ञापन के तत्व?
- 9 संस्वीकृति से पूर्व संस्वीकृतिकर्त्ता को समय दिया जाना
संस्वीकृति का अर्थ
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में संस्वीकृति को परिभाषित नहीं किया गया है. साधारण शब्दों में जहाँ किसी व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगाया गया है या अनुमान का सुझाव दिया गया है कि उसने अपराध किया है तो उस व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध स्वीकरण संस्वीकृति (Confession) कहलाता है |
संस्वीकृति के आवश्यक शर्ते?
- वह अभियुक्त द्वारा की गई हो.
- वह महानगर या न्यायिक मजिस्ट्रेट से की गई हो.
- अभियुक्त ने अपने अपराध को स्वीकार कर लिया हो.
- संस्वीकृति स्वेच्छा से की गई हो.
- संस्वीकृति अन्वेषण के दौरान या पश्चात एवं जीव एवं विचारण से पूर्व होना चाहिए |
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संस्वीकृति लेखबद्ध करने का तरीका क्या है?
CrPC की धारा 164 में संस्वीकृति को लेखबद्ध किये जाने की रिति का उल्लेख किया गया है. इसके अनुसार-
- संस्वीकृति का मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाना
- संस्वीकृति दर्ज करने से पूर्व मजिस्ट्रेट का कर्तव्य
- संस्वीकृति नहीं किये जाने पर प्रक्रिया
- संस्वीकृति पर हस्ताक्षर एवं ज्ञापन
1. संस्वीकृति का मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाना
अभियुक्त द्वारा अपराध की संस्वीकृति केवल मजिस्ट्रेट के समक्ष ही की जा सकती है. पुलिस अधिकारी के समक्ष अपराध की संस्वीकृति नहीं की जा सकती है. कोई भी महानगर मजिस्ट्रेट किसी मामले का विचारण किये जाने से पूर्व अभियुक्त द्वारा किये गये संस्वीकृति के कथन को लेखबद्ध कर सकेगा.
इस प्रकार संस्वीकृति को लेखबद्ध करने का यह अधिकार सभी न्यायिक मजिस्ट्रेटों को दिया गया है.
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2. संस्वीकृति लेखबद्ध करने से पूर्व मजिस्ट्रेट का कर्तव्य
संस्वीकृति के कथन लेखबद्ध किये जाने से पूर्व मजिस्ट्रेट का कर्तव्य होगा कि-
- अभियुक्त को यह समझायेगा कि वह संस्वीकृति करने के लिए बाध्य नहीं है,
- यदि वह संस्वीकृति करता है तो उसका उसके विरुद्ध साक्ष्य में उपयोग किया जा सकेगा,
- वह संस्वीकृति तब तक लेखबद्ध नहीं करेगा जब तक कि उसे यह विश्वास नहीं हो जाये कि यह अभियुक्त द्वारा स्वेच्छा से की गई है.
3. संस्वीकृति नहीं किये जाने पर प्रक्रिया
यदि मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होने वाला व्यक्ति संस्वीकृति से इन्कार करता है या यह संस्वीकृति करने के लिये इच्छुक नहीं है तो मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से पुलिस की अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत नहीं करेगा.
4. संस्वीकृति पर हस्ताक्षर एवं ज्ञापन
मजिस्ट्रेट द्वारा संस्वीकृति के कथनों को CrPC की धारा 281 में विहित रीति से दर्ज किया जायेगा एवं ऐसी संस्वीकृति पर उसे करने वाला व्यक्ति के हस्ताक्षर किये जायेंगे.
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मजिस्ट्रेट संस्वीकृति के ऐसे अभिलेख पर निम्न आशय का एक ज्ञापन अंकित करेगा-
“मैंने… (संस्वीकृतिकर्त्ता) को यह समझा दिया है कि वह संस्वीकृति करने के आबद्ध नहीं है और यदि वह ऐसा करता है तो कोई संस्वीकृति, जो वह करेगा, उसके विरुद्ध साक्ष्य में उपयोग में लायी जा सकेगी और मुझे विश्वास है कि वह संस्वीकृति स्वेच्छा से की गई है. यह मेरी उपस्थिति में और सुनवाई में की गई है और जिस व्यक्ति ने यह संस्वीकृति प की है, उसे यह पढ़कर सुना दी गई है और उसने उसका सही होना स्वीकार किया है और उसके द्वारा किए गए कथन का पूरा और सही वृत्तान्त इसमें अन्तर्विष्ट है”.
हस्ताक्षर/मजिस्ट्रेट
(क) भारतीय दण्ड संहिता (IPC) (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 376 की उपधारा (1) या उपधारा (2), धारा 376क, धारा 376कख, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, धारा 376घक, धारा 376घख, धारा 376ड़, या धारा 509 के अधीन दण्डनीय मामलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को जिसके विरुद्ध उपधारा (5) में विहित रीति में ऐसा अपराध किया गया है, कथन जैसे ही अपराध का किया जाना पुलिस की जानकारी में लाया जाता है, अभिलिखित करेगा [दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा प्रतिस्थापित]
परंतु यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से निःशक्त है, तो मजिस्ट्रेट कथन अभिलिखित करने में किसी द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता लेगा.
परंतु यह और कि यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक शारीरिक रूप से निःशक्त है तो किसी द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता से उस व्यक्ति द्वारा किए गए कथन की वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी;
(ख) ऐसे किसी व्यक्ति के, जो अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप निःशक्त है, खंड (क) के अधीन अभिलिखित कथन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 137 में यथा विनिर्दिष्ट मुख्य परीक्षा के स्थान पर एक कथन समझा जाएगा और ऐसा कथन करने वाले की, विचारण के समय उसको अभिलिखित करने की आवश्यकता के बिना, ऐसे कथन पर प्रतिपरीक्षा की जा सकेगी। [दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 द्वारा अन्तःस्थापित]
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कोई भी मजिस्ट्रेट ऐसे किसी मामले के सम्बन्ध में संस्वीकृति के कथन लेखबद्ध कर सकेगा, जो चाहे उसके क्षेत्राधिकार में हो या नहीं |
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ज्ञापन के तत्व?
उक्त ज्ञापन में वे सभी बातें सम्मिलित कर ली गई हैं जो कि एक मान्य संस्वीकृति के लिये आवश्यक हैं-
- मजिस्ट्रेट ने संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति को यह समझा दिया है कि वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिये आबद्ध नहीं है,
- यदि वह इस प्रकार की संस्वीकृति करता है तो इसका उसके विरुद्ध साक्ष्य में उपयोग किया जा सकेगा,
- ऐसी संस्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से की गई हैं,
- संस्वीकृति मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में एवं उसे सुनाकर की गई है,
- संस्वीकृति के अभिलिखित कथनों को उसे करने वाले व्यक्ति को पढ़कर सुना दिय गया है,
- उसने संस्वीकृति के कथनों का सही होना स्वीकार किया है, एवं
- उस पर मजिस्ट्रेट एवं संस्वीकृतिकर्त्ता दोनों के हस्ताक्षर कर दिये गये हैं. इस प्रकार जब संस्वीकृति सम्बन्धी सभी औपचारिकतायें पूरी हो जाती हैं तो मजिस्ट्रेट उसे ऐसे मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जो कि उस मामले का विचारण कर रहा है |
संस्वीकृति से पूर्व संस्वीकृतिकर्त्ता को समय दिया जाना
संस्वीकृति दर्ज करने से पूर्व उसे करने वाले व्यक्ति को सोचने-समझने के लिये कुछ समय दिया जान चाहिए. यह समयावधि कितनी होगी, यह प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करते है. एक मामले में अभियुक्त को 3 घण्टे का समय दिया गया. उच्चतम न्यायालय ने इसे पर्याप्त माना.
एक मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि संस्वीकृति के कथन दर्ज करने से पूर्व अभियुक्त को विधिक सहायत उपलब्ध कराया जाना आवश्यक नहीं है |