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विधि के स्रोत (Sources of Law)
स्त्रोत शब्द से तात्पर्य उद्गम या प्रारम्भ से होता है. अतः विधि के स्त्रोत से तात्पर्य उन साधनों से है जो किसी कानून का ज्ञान कराते हैं. न्यायाधीश सामान्य तौर पर विधि बनाने वाले नियमों की ओर ध्यान देते हैं तथा उसमें से विधि की खोजबीन करने का प्रयास करते हैं अर्थात न्यायाधीश जिस स्रोत से विधि को प्राप्त करते हैं वही विधि का स्रोत (Sources of Law) है.
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विचारकों ने विधि के स्रोत के विषय में अलग-अलग विचार प्रकट किये हैं. संक्षिप्त रूप में निम्नलिखित को विधि के स्रोत के रूप में मान्यता दी गई है-
1. रूढ़ि (Custom)
विधिक तन्त्र में रूढ़ि का प्रमुख स्थान है. रूढ़ि को विधि के रूप में प्राचीन काल से ही मान्यता प्राप्त हो चुकी थी. ऐतिहासिक विचारधारा के समर्थकों ने रूढ़ि को अत्यधिक महत्व दिया है क्योंकि आदिम समुदाय में यदि कोई विधि अस्तित्व में थी तो वह रूढ़िजन्य विधि ही थी.
कलेक्टर आफ मदुरा बनाम मोतुरामलिंग, 1868 में प्रिवी कौन्सिल ने अभिनिर्धारित किया कि स्पष्ट रूप से स्थापित रूढ़ि विधि के लिखित पाठ से कहीं अधिक प्रभावकारी होती है. इंगलैंड का कॉमन लॉ रूढ़ियों पर ही आधारित है.
2. न्यायिक पूर्व निर्णय
विधि के स्रोत के रूप में न्यायिक निर्णयों का पर्याप्त महत्व है. विधि के सम्बन्ध में पूर्ण निर्णय का अर्थ है भूतकालीन निर्णयों को मार्गदर्शक के रूप में अपनाते हुए भावी निर्णयों के प्रति लागू करना. बेन्थम ने तो इसे न्यायाधीश द्वारा निर्मित विधि (Judge-made law) कहा है. जबकि ऑस्टिन इसे न्यायपालिका की विधि मानते हैं.
लॉ रिपोर्टिंग को विधि का प्रमुख स्त्रोत माना जाता है. वर्तमान में न्यायिक पूर्व निर्णय विधि के रूप में अत्यधिक महत्व रखते हैं.
3. विधान (Legislation)
वर्तमान समय में विधायन को विधि का प्रमुख स्रोत माना जाता है. क्योंकि वर्तमान राज्य व्यवस्था के अन्तर्गत विधायिका द्वारा निर्मित विधि को ही कानून के रूप में प्रमुख रूप से स्वीकार किया जाता है तथा इन्हें लोक मत का समर्थन भी प्राप्त होता है. विधायन, प्राधिकारिक शक्ति द्वारा विधि को सोच समझ कर एक निर्धारित ढाँचे में ढालने की प्रक्रिया है.
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विश्लेषणात्मक शाखा के प्रवर्तकों ने विधायन को सर्वश्रेष्ठ विधि का स्त्रोत माना है. ये इसी को वास्तविक विधि कहते हैं.
4. साम्य (Equity)
साम्य को कामन विधि में दोषों तथा कमियों को दूर करने के लिए अपनाया गया था. धीर-धीरे साम्य का स्थान विधि के रूप में स्वीकार किया जाने लगा तथा साम्य को विधि के स्रोत के रूप में मान्यता प्राप्त होने लगी. साम्य का विकास रिट पद्धति द्वारा चान्सरी न्यायालयों द्वारा किया गया है.
5. धर्म (Religion)
पुरानी आम धारणा यह है कि विधि की उत्पत्ति दैवीय शक्ति से हुई है. हिन्दू धर्म में वेदों को ईश्वर का वाक्य माना गया है जबकि मुस्लिम विधि में कुरान तथा यूनानी विधि में ‘थेमेस्टीज’ को दैवीय शक्ति माना गया है. अंग्रेजी विधि की उत्पत्ति में भी धर्म की प्रबलता रही है तथा कुछ धर्म विधियाँ वर्तमान में भी चल रही हैं.
6. नैतिक धारणायें
नैतिकता सम्बन्धी धारणायें भी विधि को प्रभावित करती हैं तथा उनका भी उपयोग विधि में किया जाता है. लाटरी पर प्रतिबन्ध, पुनर्विवाह सम्बन्धी कानून, दहेज विरोधी कानून इसी के उदाहरण हैं.
7. सामाजिक मान्यतायें तथा लोकमत
किसी समाज की मान्यतायें या लोकमत वहाँ के कानून में अवश्य परिलक्षित होते हैं तथा विधियों को प्रभावित करते हैं. भारतीय विधि में इसकी साफ झलक दिखाई देती है. सम्पत्ति सम्बन्धी कानून में हो रहे परिवर्तन इसका सबूत हैं.
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8. मानक विधि ग्रन्थ
विधि के स्रोत के रूप में मानक विधि ग्रन्थों का प्रारम्भ से ही महत्व रहा है. तीसरी शताब्दी की रोमन विधि अधिकांशतः ऐसे ही ग्रन्थों पर आधारित थी.
9. विधिवेत्ताओं की राय
विधि को सक्रिय करने में उसके विशेषज्ञों की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है. किसी भी विधिविशेषज्ञ की विशेषज्ञता का प्रभाव विधि पर पड़ सकता है. खासकर न्यायाधीशों तथा वकीलों व विधि प्राध्यापकों का प्रभाव विधि पर अवश्य पड़ता है अतः विधि के स्त्रोत के रूप में विधि विशेषज्ञों का महत्वपूर्ण स्थान है |