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योगदायी उपेक्षा की परिभाषा
इसे अंशदायी असावधानी के नाम से भी जाना जाता है. योगदायी उपेक्षा से तात्पर्य उस उपेक्षा से है जिसमें प्रतिवादी के साथ-साथ वादी की भी उपेक्षा रही है और इस प्रकार उपेक्षा में वादी एवं प्रतिवादी दोनों का ही योगदान रहा है. यदि इस प्रकार हुई किसी उपेक्षा के परिणामस्वरूप वादी को क्षति हुई हो तो उसे आंशिक उपेक्षा तब कहा जायगा जब वादी ने उस सामान्य सुरक्षा, विवेक एवं दक्षता का आचरण न किया हो, जिससे प्रतिवादी की उपेक्षा के परिणामस्वरूप उत्पन्न दुर्घटना को रोका जा सकता था.
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डॉक्टर अण्डरहिल के अनुसार, वादी को आंशिक असावधानी का दोषी तब माना जाता है जबकि उसने स्वयं अपने को लापरवाही से इस प्रकार क्षति पहुँचायी हो कि यदि वह सावधानी से कार्य करता तो उसकी प्रतिवादी द्वारा की गई असावधानी से कोई क्षति नहीं पहुँचती.
इस प्रकार आंशिक उपेक्षा द्वारा जो क्षति पहुँचती है, उसमें वादी एवं प्रतिवादी दोनों ही दोषी होते हैं, अतः इस प्रकार की क्षति में कोई भी व्यक्ति किसी से क्षतिपूर्ति नहीं माँग सकता क्योंकि जिस क्षति में व्यक्ति का स्वयं का योगदान हो उसके लिए वह दूसरों से क्षतिपूर्ति नहीं माँग सकता.
डेविस बनाम मान [(1949) 1 All ER. 720] इस मामले में वादी ने गधे के पैर बाँध कर सार्वजनिक मार्ग पर चरने को छोड़ दिया. प्रतिवादी घोड़ागाड़ी सड़क पर चला रहा था, जिसने गधे को चोट पहुँचायी. क्षतिपूति के वाद में प्रतिवादी ने वादी को योगदायी उपेक्षा का दोषी बताया परन्तु न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि दुर्घटना बचाने का अन्तिम अवसर प्रतिवादी के हाथ में था, जिसने उसे बचाने में उपेक्षा की. अतः प्रतिवादी क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है। इस प्रकार न्यायालय ने अन्तिम अवसर का सिद्धान्त प्रतिपादित किया.
शैल्टन बनाम L. & W. रेलवे [(1876) I A.C. 752] वादी रेलवे लाइन पार कर रहा था. रेलवे कम्पनी के सेवक ने वादी को चिल्लाकर चेतावनी दी, जिसे बादी बहरेपन के कारण नहीं सुन सका और परिणामस्वरूप गाड़ी से टकरा गया. न्यायालय के इसे योगदायी उपेक्षा का मामला माना |
अन्तिम अवसर का सिद्धान्त अंशदायी असावधानी के आवश्यक तत्व
- यदि क्षति का निकटस्थ कारण वादी की ही असावधानी है तो वह क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है.
- दुर्घटना के घटने में बादी ने भी उतनी ही असावधानी बरती है जितनी प्रतिवादी ने तो वादी क्षतिपूर्ति नहीं पा सकता.
- जब तक यह सिद्ध न कर दिया जाय, वादी का क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार बना रहता है. कि-
- वादी की साधारण सावधानी एवं सतर्कता प्रतिवादी की उपेक्षा के परिणाम को टाल सकती थी, एवं
- वादी की अपनी उपेक्षा के परिणाम को प्रतिवादी किसी भी प्रकार साधारण सतर्कता एवं सावधानी बरत कर टाल नहीं सकता था. यहाँ यह देखा जाता है कि खतरा टालने का अन्तिम अवसर किसके हाथ में था और उसने ऐसा किया या नहीं |
- जब तक यह सिद्ध न कर दिया जाय, वादी का क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार बना रहता है. कि-
पूर्व विधि में अंशदायी सिद्धान्त के अपवाद
- जब वादी के ऊपर सावधानी बरतने का कोई कर्त्तव्य नहीं था बल्कि वादी को यह अधिकार था कि वह यह मान ले कि प्रतिवादी ने प्रत्येक कार्य पूर्ण सतर्कता एवं सावधानी से किया.
बटर फील्ड बनाम फोरेस्टर [(1887) 18 B.D. 655] प्रतिवादी ने गली में एक बल्ली लगा कर अनुचित अवरोध उत्पन्न किया. वादी सन्ध्या समय, जबकि इतनी रोशनी थी कि वादी उस अवरोध को देख सकता था, सवारी में बैठकर अपने घर आ रहा था. तेज रफ्तार होने के कारण गाड़ी लट्ठे से टकरा गयी और वादी घायल हो गया. न्यायालय का मत था कि वादी को कोई वाद-हेतुक पैदा नहीं होता है.
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यहाँ प्रतिवादी की उपेक्षा के बावजूद वादी उचित सावधानी द्वारा दुर्घटना को बचा सकता है.
2. जब प्रतिवादी को अन्तिम अवसर मिला था
वादी की अंशदायी उपेक्षा वहाँ बचाव नहीं होगी जहाँ प्रतिवादी को बादी की उपेक्षा के पश्चात् दुर्घटना को बचाने का अवसर मिला था.
डेविस बनाम मान [(1842) 10 M & W 546)] वादी ने अपने गधे की टाँगे बाँधकर उसे उपेक्षपूर्वक एक संकरी सड़क पर छोड़ दिया और प्रतिवादी बाद में मोटर से तेजों से आते हुए उपेक्षा के कारण गधे से टकरा गया. न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि यद्यपि वादी का कृत्य उपेक्षापूर्ण था तथापि प्रतिवादी को दुर्घटना को बचाने का अन्तिम अवसर उपलब्ध था. यदि प्रतिवादी सतर्कता एवं सावधानी बरतता तो दुर्घटना न होती, अतः वादो क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी था.
3. वैकल्पिक खतरे का सिद्धान्त
जब प्रतिवादी ने वादी को गम्भीर खतरे की स्थिति में फैसा दिया हो और वादी ने युक्तियुक्त सावधानी एवं विवेक के द्वारा उस खतरे को बचाने हेतु जो कार्य किया है वह भले ही खतरनाक अथवा उपेक्षापूर्ण रहा हो, परन्तु प्रतिवादी ऐसी दशा में अंशदायी उपेक्षा का बचाव नहीं ले सकता था.
जोंस बनाम व्यायसी [(1816) 1 स्टार्क 493] की घटनाओं के अनुसार प्रतिवादी एक कोच का ड्राइवर था. प्रतिवादी की असावधानी के कारण कोच के पलटने का स्पष्ट खतरा उत्पन्न होने पर वादी उसमें से कूद पड़ा और इस प्रकार घायल हो गया. वादी के दावे के विरुद्ध प्रतिवादी ने तर्क दिया कि वादी ने कूद कर स्वयं उपेक्षापूर्वक खतरा उठाया है. न्यायालय ने प्रतिवादी को तर्क नहीं माना, क्योंकि प्रतिवादी ने स्वयं असावधानी द्वारा वादी को गम्भीर खतरे की स्थिति में डाल दिया था.
4. बुराई का चुनाव
जब वादी अपने ही किसी ऐसे कृत्य द्वारा, जो उसे प्रतिवादी की उपेक्षा से उत्पन्न हुए खतरे के कारण करना पड़े, से क्षति उठाता है तो वह प्रतिवादी से क्षतिपूर्ति पा सकता है, भले ही वह स्वयं उपेक्षा का दोषी रहा हो. यह सिद्धान्त दूसरों को खतरे से बचाने के मामलों में भी लागू होता है.
रिडले बनाम मोबाइल्स आदि [(1905) 86 SE Rep 606] में वादी ने लेविल क्रासिंग पर बिना सीटी दिये प्रतिवादी कंपनी के इंजन को आते देखा जबकि एक बच्चा लेविल क्रासिंग पर था जिसके कुचलने की पूरी-पूरी आंशका थी. वादी उसे बचाने में स्वयं गिर गया और उसकी टाँग कट गई. न्यायालय ने क्षतिपूर्ति हेतु प्रतिवादी को दोषी माना.
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5. मैरीटाइम लॉ
6. अंशदायी उपेक्षा का सिद्धान्त एडमिरल्टी न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आने वाले विधि प्रशासन पर लागू नहीं होता है. प्रत्येक सामुद्रिक जहाज का कर्तव्य है कि जहाजों का टक्कर बचाने हेतु नियमों का पूर्ण पालन करे. जब कभी जहाज टकरा जाते हैं तो समुद्रीय अभिसमय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उपेक्षा की मात्रा के अनुसार क्षतिपूर्ति विभाजित कर दी जाती है. यदि उपेक्षा का अनुपात न तय हो सके तो क्षतिपूर्ति बराबर-बराबर बाँट दी जाती है.
6. बच्चों की उपेक्षा
अंशदायी उपेक्षा का सिद्धान्त बच्चों के मामलों में लागू नहीं होता है क्योंकि उपेक्षा एक मानसिक दशा है, अतः बच्चे प्रौढ़ों के समान सामाजिक एवं त्वरित निर्णय नहीं ले सकते हैं, अतः यह कोई बचाव नहीं है कि बच्चा स्वयं अंशदायी उपेक्षा का दोषी है.
लिंच बनाम नूरदीन [(1841) IQB 29] प्रतिवादी ने अपनी घोड़ा गाड़ी सड़क पर बिना रक्षक के छोड़ दी जहाँ कुछ बच्चे खेल रहे थे. वादी, एक बच्चा गाड़ी पर चढ़ रहा था कि दूसरे बच्चे ने लगाम खींच दी. परिणामस्वरूप घोड़े चल पड़े और वादी पहिये से कुचल गया. न्यायालय ने प्रतिवादी को उत्तरदायी माना.
ग्लासगो कारपोरेशन बनाम टेलर [(1922) 1 AC 44] कारपोरेशन ने एक सार्वजनिक बगीचा लगा रखा था जिसमें एक झाड़ी पर बेर के समान आकर्षक एवं लुभावने फल आते थे जो वास्तव में जहरीले थे. एक सात वर्षीय बच्चे ने एक फल खा लिया और मर गया. न्यायालय ने बच्चे के पिता द्वारा लाये गये वाद में कारपोरेशन को क्षतिपूर्ति हेतु उत्तरदायी माना, क्योंकि उसने बिना किसी सुरक्षा एवं चेतावनी के बच्चों की पहुँच में लुभावने ज़हरीले फलों की झाड़ी लगा रखी थी.
7. वर्तमान विधि
विधि सुधार (अंशदायी उपेक्षा) अधिनियम, 1945 की धारा 1 के अनुसार जहाँ किसी व्यक्ति को आंशिक रूप में स्वयं अपने दोष से तथा आंशिक रूप से किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के दोष के कारण क्षति होती है तो नुकसानी हेतु दावा मात्र इस कारण असफल नहीं होगा कि क्षति स्वयं के दोष के कारण हुई थी, लेकिन प्राप्त होने वाली नुकसानी उस सीमा तक कम कर दी जायगी जितनी न्यायालय दावाकर्ता की क्षति के लिए दायित्व में उचित तथा साम्यापूर्ण हिस्सा समझता है |