Table of Contents
- 1 चल सम्पत्ति के प्रति अतिचार
- 2 1. वादी के अधिकार से सम्पत्ति ले लेना
- 3 2. बल का सीधा प्रयोग
- 4 आवश्यक शर्तें अथवा लक्षण
- 5 अतिचार के लिए कौन वाद ला सकता है?
- 6 चल सम्पत्ति के अतिचार के विरुद्ध उपचार
- 7 1. रिप्लेविन (Replevin)
- 8 2. ट्रोवर (Trover)
- 9 माल के प्रति अतिचार के वाद में बचाव
- 10 1. आत्मरक्षा या सम्पत्ति रक्षा
- 11 2. अपने पूर्णाधिकारियों एवं सीमित अधिकारों का प्रयोग
- 12 3. विधिक या वैयक्तिक अधिकारों का परिपालन
- 13 4. वादी की असावधानी अथवा अनुचित कृत्य
- 14 5. पुनर्प्राप्ति
- 15 6. विबन्धन (Estoppel)
- 16 7. अधिकारपूर्ण दावा
चल सम्पत्ति के प्रति अतिचार
किसी व्यक्ति की चल सम्पत्ति को अनधिकृत रूप से हस्तगत करने, उस पर आधिपत्य जमाने, उसके प्रति किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने को चल सम्पत्ति के प्रति अतिचार कहते हैं.
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चल सम्पत्ति सम्बन्धी अतिचार में निम्नलिखित दो बातों में से एक का होना अनिवार्य है-
1. वादी के अधिकार से सम्पत्ति ले लेना
इस प्रकार वादी के अधिकार से सम्पत्ति ले लेने में बेईमानी की नीयत स्पष्ट रूप से रहती है, यह कृत्य चारी के अपराध से कम नहीं होता है, और यदि सम्पत्ति लेने में बल प्रयोग किया जाय तो डकैती का अपराध बनता है.
2. बल का सीधा प्रयोग
चल सम्पत्ति के प्रति बल का सीधा प्रयोग चाहे वह कितनी भी हल्की मात्रा में क्यों न हो, अतिचार के अन्तर्गत आता है. जैसे- किसी पशु को जान से मारना, चोट पहुँचाना, कलाकृति को भंग करना, यहाँ तक कि स्पर्श तक अतिचार माना जा सकता है. उदाहरण के लिए गीले पैण्ट, मोम से निर्मित वस्तुएं, म्यूजियम में रखी हुई वस्तुओं को छूने मात्र से सम्पत्ति के प्रति अतिचार हो जाता है. इसमें विशिष्ट क्षति प्रमाणित करना आवश्यक है |
आवश्यक शर्तें अथवा लक्षण
चल सम्पत्ति के अपकृत्प के लिए वादी को निम्नलिखित बातें सिद्ध करनी चाहिये-
वह चल सम्पत्ति पर वास्तविक अथवा प्रलक्षित अधिकार रखता था. जहाँ पर सम्पत्ति रखने का अधिकार कानून के अन्तर्गत होता है, वहाँ विवक्षित कब्जा माना जाता है.
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यह कि वाद के अधिकार में गलत ढंग से हस्तक्षेप किया गया है और यह हस्तक्षेप प्रतिवादी ने किया है या करवाया है. प्रारम्भतः अतिचार यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु को कानूनी ढंग से प्राप्त करके उसका दुरुपयोग करता है तो उसे प्रारम्भतः अतिचार के लिए उत्तरदायी माना जाता है. यह अतिचार उसी तरह से जैसे अचल सम्पत्ति के प्रति होता है. इस प्रकार के अतिचार में वादी को यह सिद्ध करना चाहिये कि-
- माल उसके वास्तविक या प्रलक्षित अधिकार में था,
- उसके कब्जे में गैरकानूनी ढंग से व्यवधान पैदा किया गया है.
लंकाशायर तथा यार्कशायर ऐण्ड कंपनी बनाम मैकनीकोल (1918) में एक पालतू वेलिफ ने एक घोड़ा पकड़ा और काम में लिया. वाद में वह प्रारम्भतः अतिचार के लिए उत्तरदायी माना गया |
अतिचार के लिए कौन वाद ला सकता है?
अतिचार के लिए निम्नलिखित व्यक्ति वाद ला सकते हैं-
- जो व्यक्ति सम्पत्ति का स्वामी है और जिसका सम्पत्ति पर अधिकार है.
- जो व्यक्ति सम्पत्ति का स्वामी नहीं है लेकिन सम्पत्ति पर वास्तविक या प्रलक्षित अधिकार रखता है.
- जो व्यक्ति सम्पत्ति को अधिकार में रखता है, और उसे बेदखल कर दिया जाता है, अनधिकार कब्जा भी अजनबी व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही के लिये स्वामित्व को मान्यता रखता है.
- जिस व्यक्ति ने कोई वस्तु पायी हो, और उससे वह वस्तु गलत ढंग से छीन ली गई हो.
- सम्पत्ति का ऐसा स्वामी जिसका सम्पत्ति पर अधिकार तो नहीं है परन्तु यदि सम्पत्ति को हानि पहुंचायी आती है तो अन्तिम उत्तराधिकार से प्राप्त हित पर प्रभाव पड़ेगा.
संयुक्त स्वामी भी अपने सह-स्वामी के विरुद्ध अतिचार को कार्यवाही कर सकता है, यदि सह, स्वामी का कार्य सम्मिलित स्वामी से असंगत रहा है. इसके कुछ अपवाद हैं-
- जब माल पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया गया हो.
- जबकि माल की बाजार में खुले रूप में बिक्री कर दी गई हो.
- एक न्यासी (Trustee) उस तीसरे व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है जो हितग्राही (Beneficiary) की सम्पत्ति को हानि पहुँचाता है.
- एक निष्पादक (Executor) अथवा प्रबन्धक मृतक व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसको सम्पत्ति के प्रति अतिचारी के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है. लेकिन यह कार्यवाही निष्पादक द्वारा मृत लेख प्रमाणपत्र पाने के पूर्व और प्रबन्धक में के प्रबन्ध-पत्र प्राप्त करने के पूर्व कर सकता है.
- फ्रेन्चाइज का स्वामी उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है जो स्वामी के प्राप्त करने से पूर्व ही माल को पकड़ लेता है |
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चल सम्पत्ति के अतिचार के विरुद्ध उपचार
चल सम्पत्ति के अतिचार के विरुद्ध उपचार-चल सम्पत्ति की पुनर्प्राप्ति के लिए निम्नलिखित कार्यवाहियाँ की जा सकती हैं-
1. रिप्लेविन (Replevin)
यदि माल का गलत ढंग से बहिष्कार किया गया है या किराये के लिये ले लिया गया है या क्षतिकर्ता द्वारा क्षति करने के लिये ले लिया गया है. यह कार्यवाही केवल गलत अभिहरण तक हो सीमित है और अन्य मामलों जैसे संविदा के अन्तर्गत प्राप्त होने वाले माल आदि के लिए व्यवहार में नहीं लायी जा सकती है.
2. ट्रोवर (Trover)
प्रारम्भ में यह कार्यवाही वादी को उन लोगों के विरुद्ध प्राप्त थी जो माल पाने के बाद माँगने पर देने से इनकार कर देते थे. कालान्तर में इसका स्वरूप परिवर्तित हुआ है. ट्रोवर की कार्यवाही में वादी प्रतिवादी से उस माल के लिये क्षतिपूर्ति वसूल करता है जो प्रतिवादी ने अपने प्रयोग के लिए संपरिवर्तित कर लिया है, और इस प्रकार, यह कार्यवाही संपरिवर्तन के लिये की गयी कार्यवाही के नाम से जानी जाती है.
अवरोध (Detinue) अंग्रेजो विधि के अन्तर्गत अवरोध की कार्यवाही उस निश्चित माल की प्राप्ति के लिए की जाती थी जिसे प्रतिवादी ने गलत ढंग से रोक लिया है. इसमें प्रतिवादी का माल या माल का मूल्य या क्षतिपूर्ति देनी पड़ती थी. यह कार्यवाही सभी मामलों में लागू नहीं होती थी अपितु माल को रखने तक सीमित थी. इसमें वादी सम्पत्ति को मूल रूप में माँग सकता था और अवरोध में उत्पन्न क्षति के लिए क्षतिपूर्ति भी माँग सकता था. इस कार्यवाही का आधार सम्पत्ति का अवरोध होता था न कि सम्पत्ति का अपहरण या दुरुपयोग.
इंग्लैण्ड में अवरोध (Detinue) के अपकृत्य को Torts (Interference with Goods) Act, 1977 की धारा 2 (1) के द्वारा समाप्त कर दिया गया है और वर्तमान समय मैं इस अपकृत्य के स्थान पर वाद “माल के प्रति दोषपूर्ण हस्तक्षेप” के लिए लाया जा सकता है. भारत में ‘अवरोध’ (Detinue) के सम्बन्ध में अंग्रेजी शासन कामन विधि अब भी लागू होती है.
वंशी बनाम गोवर्धन (AIR 1976) के बाद में यह धारित किया गया कि अवरोध चल सम्पत्ति को गलत ढंग से अपने पास रोके रखने को कहते हैं चाहे प्रारम्भ में उस सम्पत्ति पर कब्जा वैध रहा हो.
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माल के प्रति अतिचार के वाद में बचाव
माल के प्रति अतिचार की कार्यवाही में निम्नलिखित बचाव उपलब्ध होते –
1. आत्मरक्षा या सम्पत्ति रक्षा
सम्पत्ति पर अधिकार रखने वाला व्यक्ति गलत ढंग से सम्पत्ति लेने वाले व्यक्ति के विरुद्ध बल प्रयोग कर सकता है. यदि प्रयोग आवश्यकतानुसार है तो वह औचित्यपूर्ण माना जाता है.
2. अपने पूर्णाधिकारियों एवं सीमित अधिकारों का प्रयोग
इस प्रकार के अधिकारों के अन्तर्गत सम्पत्ति का न्यायिक अभिहरण, किराया की वसूली या क्षतिपूर्ति के लिए माल ले लेना गैरकानूनी नहीं होता है.
3. विधिक या वैयक्तिक अधिकारों का परिपालन
कानून द्वारा अधिकृत होने पर एक व्यक्ति किसी व्यक्ति के मार्ग पर अधिकारी हो सकता है, जैसे; कानूनी प्रक्रिया का सम्पादन आदि.
4. वादी की असावधानी अथवा अनुचित कृत्य
यदि कोई व्यक्ति किसी का मार्ग अवरुद्ध करता है तो इस प्रकार के अवरोध को बलपूर्वक हटाया जा सकता है, उदाहरण के लिए रास्ते में गाड़ी खड़ी करना.
5. पुनर्प्राप्ति
पुनर्प्राप्ति से अभिप्राय विधिक स्वामी द्वारा उस माल को प्राप्त करने से है जिससे उसे वंचित कर दिया गया था. ऐसा स्वामी अपने माल को पुनः प्राप्त करने की प्रक्रिया में किये गये अपने आक्रमण को न्यायोचित ठहरा सकता है.
अन्य व्यक्ति का अधिकार (Jus Tertii) किसी व्यक्ति के मुकदमा चलाये जाने पर प्रतिवादी जब यह कहता है कि सम्पत्ति पर किसी तीसरे व्यक्ति का स्वामित्व है तो इस प्रकार का बचाव जस टर्टाई कहलाता है. सामान्यतः यह बचाव कोई बचाव नहीं है। यह बचाव तभी सफल हो सकता है, जबकि प्रतिवादी वस्तु के स्वामी द्वारा अधिकृत होकर कार्य कर रहा हो. प्रतिवादी उक्त बचाव केवल ऐसे वादी के विरुद्ध ही ले सकता है, जिसके पास न तो वस्तु का वास्तविक आधिपत्य है और न रचनात्मक आधिपत्य ही है.
6. विबन्धन (Estoppel)
एक उपनिहिती (Bailee) अपने और उपनिधाता (Bailor) के बीच स्वामित्व के वाद को नहीं चला सकता है.
7. अधिकारपूर्ण दावा
प्रतिवादी यह दावा कर सकता है कि वादी का वाद गलत है. सम्पत्ति या माल नो वास्तव में उसका स्वयं का है |