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शून्य विवाह क्या है?
हिन्दू विवाह (Void Marriage) अधिनियम, 1935 की धारा 11 यह उपबन्धित करती है कि यदि कोई विवाह धारा 5 की उपधारा (1), (4) एवं (5) का उल्लंघन करता है तो वह विवाह शून्य होगा। अथार्त
विवाह निम्नलिखित दशाओं में शून्य हो सकेगा।
- धारा 5 (1), विवाह के समय किसी भी पक्ष का कोई पति या पत्नी जीवित हो;
- धारा 5 (4), पक्षकार प्रतिषिद्ध सम्बन्ध के अन्दर हों जब तक कि उनमें से प्रत्येक को शासित करने वाली प्रथा या चलन उन दोनों के बीच विवाह की अनुमति न देती हो; और
- धारा 5 (5), पक्षकार एक-दूसरे के सपिंड हों; जब तक कि उनमें से प्रत्येक को शासित करने वाली प्रथा या चलन उन दोनों के बीच विवाह की अनुमति न देती हो।
धारा 11 के अनुसार, किसी विवाह के पक्षकार द्वारा उक्त आधारों पर निष्क्रियता (Inaction) के लिए यचिका दी जा सकती है कोई भी अन्य व्यक्ति याचिका प्रस्तुत करने का अधिकारी नहीं है. विवाह के शून्य होने के लिए निष्क्रियता की डिक्री लेना अनिवार्य नहीं है क्योंकि ऐसे विवाह प्रारम्भतः शून्य होते हैं.
श्रीमती कृष्णा देवी बनाम तुलसी देवी (AIR 1972 P & H 305) में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि विवाह धारा 5 में वर्णित शर्तों को पूरा न करके सम्पन्न होता है तो वह शून्य होगा और ऐसे विवाह के पक्षकार उस विवाह की उपेक्षा करके दूसरा विवाह कर सकते हैं.
वहीं वीरेन्द्र विक्रम सिंह बनाम कमला देवी (AIR 1995 All 243) के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि प्रथम पत्नी के रहते उसके पति ने दूसरी शादी कर ली तो दूसरी पत्नी विवाह को शून्य कराने हेतु आवेदन नहीं कर सकती है.
शून्यकरणीय विवाह क्या है?
शून्यकरणीय विवाह (Voidable Marriage) वह विवाह है. जो एक पक्षकार के विकल्प पर निरस्त किया जा सके किन्तु दूसरे के विकल्प पर नहीं. जब तक इसे निरस्त नहीं किया जाता यह मान्य विवाह रहता है और जिस क्षण सक्षम न्यायालय इसे शून्यकरणीय स्वीकार कर निरस्त कर देता है उसी क्षण से ऐसा विवाह शून्य हो जाता है.
शून्यकरणीय विवाह के आधार क्या हैं?
धारा 12 में उन आधारों का उल्लेख किया गया है जो विवाह को शून्यकरणीय बनाते हैं. ये निम्नलिखित हैं-
1. नपुंसकता
धारा 12 (1) के प्रावधानों के अनुसार, एक पक्षकार की नपुंसकता (Impotency) दूसरे पक्षकार को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह इस आधार पर विवाह की निष्क्रियता की डिक्री प्राप्त कर ले. यहाँ नपुंसकता स्त्री या पुरुष किसी की भी हो सकती है. नपुंसकता का तात्पर्य लैंगिक सम्भोग की अक्षमता से है. पति या पत्नी का किन्हीं कारणों से मैथुन करना अस्वीकार करना नपुंसकता मानी जाती है.
मंजीत कौर बनाम सुरेन्द्र सिंह (AIR 1994 P & H 4) के मामले में शादी के बाद पत्नी दो हफ्ते तक पति के साथ रही. इस बीच पति लैंगिक संभोग करने में असमर्थ रहा. न्यायालय ने पति की नपुंसकता मानते हुए पत्नी को विवाह शून्य घोषित कराने की अधिकारिणी माना।
2. मानसिक अस्वस्थता
धारा 5 (2) के अनुसार, यदि विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई-
- चित्त विकृत था, इसलिए सहमति देने में असमर्थ हो।
- मान्य सहमति देने में, किसी भी कारण से असमर्थ हो।
- पागलपन या मिरगी के दौरों से ग्रसित होता हो, तो विवाह को शून्यकरणीय घोषित किया जा सकता है.
परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि उक्त आधार विवाह के समय रहे हों. यदि बाद में आते हैं तो विवाह शून्यकरणीय नहीं होगा; हाँ, उक्त आधार विवाह विच्छेद के लिए पर्याप्त हो सकते हैं.
3. बल या कपट द्वारा सम्मति
जहाँ पक्षकारों या उनके संरक्षकों की सम्मति कपट या बल से ली गई है वहाँ विवाह शून्यकरणीय होता है. कपटपूर्ण सम्मति का अर्थ है प्रत्यर्थी के सम्बन्ध में भ्रामक जानकारी देना.
रमाकान्त बनाम मोहिन्दर लक्ष्मी दास (AIR 1996 P & H 99) के मामले में पत्नी ने वर्तमान शादी से पहले दो बार शादी की थी तथा एक पुत्र भी था. पति को इसके बारे में उसने नहीं बताया. न्यायालय ने अधिनिर्धारित किया कि पति विवाह को शून्य घोषित कराने का अधिकारी है.
4. पत्नी का गर्भवती होना
धारा 12 (1) (घ) के अनुसार, यदि पत्नी विवाह के समय प्रार्थी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा गर्भवती थी तो वह विवाह शून्य करणीय होगा. परन्तु इसके लिए निम्नलिखित शर्तों का पूर्ण होना आवश्यक है-
- पत्नी विवाह के समय गर्भवती थी.
- पत्नी प्रार्थी से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति से गर्भवती थी.
- प्रार्थी याचिकाकर्त्ता उक्त तथ्य से अनभिज्ञ था.
- प्रार्थी ने उक्त तथ्य की जानकारी के बाद लैंगिक संभोग न किया हो.
- विवाह को निरस्त की कार्यवाही विवाह तिथि से एक वर्ष के भीतर प्रारम्भ की हो.
महेन्द्र बनाम सुशीला बाई (AIR 1965 SC 364) के वाद में यह निर्णीत किया गया कि विवाह के पूर्व पत्नी द्वारा गर्भावस्था में रहने की बात स्वीकार किया जाना, जबकि पति का उससे कभी किसी प्रकार का मिलन नहीं हुआ था, यह प्रमाणित करता है कि पत्नी इस धारा के अन्तर्गत दोषी है.
5. बाल विवाह
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2007 के अन्तर्गत बाल विवाह को शून्यकरणीय माना गया है. यह अधिनियम हिन्दू विवाह अधिनियम पर अध्यारोही (Overriding) प्रभाव रखता है.
6. शून्य तथा शून्यकरणीय विवाहों से उत्पन्न संतान की वैधता
इस सम्बन्ध में धारा 16 में प्रावधान किये गये हैं. धारा 16 को निम्नलिखित तीन भागों में बांट सकते हैं.
- पहली उपधारा के अनुसार, शून्य विवाह से उत्पन्न संतान, चाहे विवाह की निष्क्रियता की डिक्री पास हुई हो या न हुई हो, डिक्री के प्राप्त होने के पूर्व गर्भावस्था में या उत्पन्न हुई संतानें वैध संतानें मानी जायेंगी।
- दूसरी उपधारा के अनुसार, शून्यकरणीय विवाह में जहाँ धारा 12 के अन्तर्गत अकृतता या निष्क्रियता की डिक्री पास कर दी गई है, इस प्रकार की डिक्री के पूर्व गर्भावस्था में या पैदा हुई संतानें वैध संतानें मानी जायेंगी।
- तीसरी उपधारा के अनुसार, संतानों को अपने माता-पिता की सम्पत्ति में दाय प्राप्त करने का अधिकार होगा, लेकिन वे माता-पिता के अतिरिक्त किसी अन्य सम्बन्धी की संपत्ति पाने के हकदार नहीं होंगे।
शून्य एवं शून्यकरणीय विवाह के बीच अंतर?
- शून्य विवाह (Void Marriage), ये विवाह प्रारम्भतः शून्य होते हैं, जबकि शून्यकरणीय विवाह (Voidable Marriage), ये विवाह प्रारम्भतः शून्य नहीं होते हैं.
- शून्य विवाह के पक्षकारों पर कोई अधिकार तथा दायित्व का सृजन नहीं होता है, जबकि शून्यकरणीय विवाह के पक्षकारों तथा दायित्वों का उदय होता है.
- शून्य विवाह ऐसे विवाह को शून्य कराने की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि शून्यकरणीय विवाह पीड़ित पक्षकार द्वारा ऐसे विवाह को शून्य (Void) घोषित कराया जाता है.
- शून्य विवाह में निष्क्रियता की आज्ञप्ति के पूर्व भी ऐसे विवाह का कोई पक्षकार दूसरा विवाह कर सकता है, जबकि शून्यकरणीय विवाह निष्क्रियता की आज्ञप्ति के पूर्व ऐसे विवाह का पक्षकार दूसरा विवाह नहीं कर सकता है.
- शून्य विवाह में पत्नी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण का दावा नहीं कर सकती है. शून्यकरणीय विवाह में इसमें पत्नी ऐसा कर सकती है.
- शून्य विवाह के आधार बहुविवाह, सपण्डिता तथा प्रतिषिद्ध डिग्री है, जबकि शून्यकरणीय विवाह में ऐसे विवाह के आधार नपुंसकता, मानसिक अस्वस्थता, विवाह पूर्व गर्भ का छिपाव अनुचित सहमति आदि हैं.