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मुसलमानों की विधि दैवी प्रकाशन पर आधारित है और उनके धर्म से मिश्रित है. सर अब्दुल रहीम के शब्दों में हुकूम वह है, जो ख़ुदा के पैगाम ‘खिताब’ के द्वारा इंसान के काम के हवाले से माँग या उदासीनता जाहिर करता हो या तो महज इस्तकारिया ही कायम किया गया हो. इस्लाम में खुदा ही एकमात्र विधायक है और खुदा को सार्वभौम शक्ति जनता में निहित है |
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मुस्लिम विधि के स्रोत-
- प्राथमिक स्रोत
- द्वितीयक स्रोत
A. प्राथमिक स्रोत
सुन्नी विधि के अनुसार, मुस्लिम विधि के चार प्रमुख स्रोत हैं-
- कुरान
- हदीस
- इज्मा
- कयास
1. कुरान
यह मुस्लिम विधि का पहला और मुस्लिम समुदाय का पवित्र ग्रंथ है. कुरान को “Book of God” भी कहा जाता है. मुस्लिम की यह मान्यता है कि मोहम्मद पैगंबर को ईश्वर से दैवीय संकेत प्राप्त होते थे. उन्हें पहला संकेत 609 ईसवी में प्राप्त हुआ. इसके बाद समय-समय पर 632 ईस्वी तक जीवनपर्यत उन्हें देवी संदेश प्राप्त होते रहे. मोहम्मद साहब पढ़े लिखे नहीं थे उन्हें जो संकेत प्राप्त होते थे वह अपने शिष्य को बताते और उनके शिष्य इसे लिपिबद्ध करते गए.
मोहम्मद साहब के मृत्यु के बाद सारे दैवीय संदेशों को एकत्र किया गया तथा इनका संकलन करके एक व्यवस्थित पुस्तक प्रदान की गई इसे ही कुरान कहा जाता है. कुरान धर्म कानून तथा नैतिकता का सम्मिश्रण है. पुरे कुरान को विधि का स्रोत नहीं माना जाता है, क्योंकि कुरान की केवल 200 आयतें ही विधि से संबंधित है |
2. हदीस
पैगंबर की परंपराओं को सुन्ना (हदीस) कहा जाता है. पैगंबर मोहम्मद साहब द्वारा बिना दैवीय सकैतों के सामान्य मनुष्य के रूप में, कुछ भी कहा या किया गया उन्हें सुन्ना (हदीस) कहा गया, और यह सब पैगंबर के परंपराओं के अंतर्गत आते हैं तथा इसमें पैगंबर का सौन समर्थन भी आता है.
सामान्यता हदीस कानून का ऐसा विवरण है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी समाज में प्रचलित होता रहा. काफी समय तक ना तो इसे लिपिबद्ध किया गया और ना ही इससे सुव्यवस्थित रखा गया. लेकिन “अश मलिक” की पुस्तक “मुक्ता”, “अबु हनबल” की पुस्तक “मसदन” तथा “इमाम मुस्लिम” की पुस्तक “शाही मुस्लिम” इत्यादि में विद्वानों ने इन परंपराओं को एकत्रित किया है.
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हदीस को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है-
- अहादिस-ए-मुतवातिर
- अहादिस-ए मशहूर
- अहादिस-ए-अहद
3. इज्मा
किसी नई समस्या के लिए कुरान एवं हदीस में कोई नियम नहीं होने पर, ज्यूरिस्ट के मतैक्य निर्णय द्वारा नया कानून प्राप्त कर लिया जाता था. इस प्रकार का मतैक्य निर्णय इज्मा कहलाया.
इज्मा तीन प्रकार का होता है-
- सहयोगियों का इज्मा
- न्यायधीशों का इज्मा
- जनसाधारण का इज्मा
4. कयास
किसी नवीन समस्या से संबंधित नियम प्राप्त करने के लिए कुरान तथा हदीस में उसी प्रकार की समस्या से संदर्भित नियम को सीधे कुरान या हदीस के मूल पाठ से ही निगमित कर लिया जाता था, इसे ही कयास कहते हैं. लेकिन कयास द्वारा नए नियमों का प्रतिपादन नहीं होता है.
B. द्वितीयक स्रोत
उपर्युक्त कुछ स्रोत स्वयं पैगंबर से प्रमाणित माने जाते हैं. इनके अलावा निम्नलिखित अन्य स्रोत भी बताये जाते हैं-
- रिवाज
- न्यायिक निर्णय
- विधान
1. रिवाज
रिवाज को मुस्लिम विधि के स्रोत के रूप में कभी मान्यता नहीं दी गई केवल Supplementary के रूप में उसका कभी-कभी उल्लेख पाया जाता है. अब्दुल हुसैन वर्सेस सोना डेरो इस बाद में प्रिवी कौंसिल का कहना था कि किसी मूल यथ के लिखित कानून की तुलना में एक प्राचीन तथा अपरिवर्तनीय रिवाज को वरीयता दी जाएगी.
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2. न्यायिक निर्णय
इसमें सुप्रीम कोर्ट प्रिवी कौंसिल और भारत के हाईकोर्ट के विनिश्चय आते हैं किसी वरिष्ठ न्यायालय का निर्णय इसके अधीनस्थ सभी न्यायालयों के लिए अनिवार्यतः मान्य होता है, इसे पूर्ण निर्णय अर्थात नजीर का सिद्धांत कहते हैं.
3. विधान
विधान का अर्थ होता है विधान मंडल द्वारा कानून का निर्माण करना. मुस्लिम समुदाय के संबंध में कुछ एक्ट बनाए गए हैं.
- गार्जिएन्स एण्ड वाईस एक्ट, 1890
- मुस्लिम वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट, 1913
- मुस्लिम वक्फ एक्ट, 1923
- चाइल्ड मैरिजेज रेस्ट्रेण्ट एक्ट, 1929
- शरियत एक्ट, 1937
- डिस्सोलुशन ऑफ मुस्लिम मेरिजेज एक्ट, 1939
- मुस्लिम महिला (तलाक के पश्चात् अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986
- प्राहिविशन आफ चाइल्ड मैरिज ऐक्ट, 2006 |