Table of Contents
साम्य का अर्थ
साम्य (Equity) विधि का वह स्रोत है जो विधि के किसी विशिष्ट नियम के अभाव में प्रारम्भ होता है तथा कार्य करता है.
साम्य, अत्यन्त ही सामान्य भाव में हम उसी को साम्य कहने के अभ्यस्त हैं जो व्यवहारों में “नैसर्गिक न्याय”, “ईमानदारी” और “सच्चाई” में पाया जाता है. मनुष्य के जब पुराने नियम अत्यन्त संकीर्ण हो जाते हैं, और आगे बढ़ती हुई सभ्यता से विसंगत प्रतीत होने लगते हैं, तो उनके उत्तरोत्तर विस्तार तथा उन्हें समाज के नये दृष्टिकोण के अनुकूल बनाने के लिये एक तन्त्र की आवश्यकता होती है. नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों पर आधारित तथा विधि के प्रश्नों पर प्रयोज्य ऐसे नियमों का आरम्भ रोम में Preaetor द्वारा तथा इंग्लैण्ड में चांसलर (Chancellor) द्वारा किया गया था और उन्हें रोम में Acquitas तथा इंग्लैण्ड में साम्य (Equity) का नाम दिया गया |
यह भी जानें : न्यास की परिभाषा एवं आवश्यक तत्व | न्यासधारी एवं हिताधिकारी कौन हो सकता है?
साम्य की परिभाषा
अरस्तू (Aristotle) के अनुसार, साम्य विधि का शोधन है क्योंकि विधि अपनी व्यापकता के कारण दोषपूर्ण होती है.
ब्लैकस्टोन (Blackstone) के अनुसार, साम्य विधि की आत्मा तथा अन्तरात्मा के रूप में कार्य करता है. उसके द्वारा विध्यात्मक विधि का अर्थ लगाया जाता है और नैसर्गिक विधि की रचना की जाती है. इस सम्बन्ध में साम्य न्याय का पर्याय है.
स्टोरी (Story) का कथन है कि साम्य विधिशास्त्र उचित रूप में प्रतिकारी (Remedial) न्याय का वह भाग कहा जा सकता है जिसका अनन्य रूप में प्रशासन किसी साम्य के न्यायालय द्वारा किया जाता था और जो प्रतिकारी न्याय के उस भाग से भिन्न था जिसका अनन्य रूप में प्रशासन किसी सामान्य विधि के न्यायालय द्वारा किया जाता था |
साम्य का क्षेत्र
साम्य के क्षेत्र (Scope of Equity) के विषय में कोई निश्चित कथन कठिन है, परन्तु इतना निर्विवाद है कि राज्य की विद्यमान विधि को अनम्यता, दोषों तथा न्यूनताओं से रक्षा करने तथा न्याय के हित को प्रोत्साहन देने के लिये ही साम्य का उद्भव हुआ और उद्देश्य की पूर्ति के लिये उसने निम्नलिखित तीन प्रकार से सामान्य विधि के अनुपूरण में अपने क्षेत्र को सामान्यतया विस्तृत किया, अर्थात्-
- नये अधिकारों,
- नये उपचारों तथा
- नई प्रक्रिया के प्रवर्तन द्वारा
प्रथम, साम्य ने ऐसे अधिकारों का प्रवर्तन किया जिनके प्रवर्तन में सामान्य विधि के न्यायालय असफल रहे. दूसरे सामान्य विधि के अधिकारों के प्रवर्तन के लिये साम्य ने अतिरिक्त उपचारों का विकास किया और तीसरे सामान्य विधि के न्यायालयों की दोषपूर्ण प्रक्रिया में सुधार किया |
यह भी जानें : न्यासों का वर्गीकरण | न्यास का वर्गीकरण क्या है?
साम्य का उद्भव तथा विकास
इंग्लैण्ड में साम्य (Equity) का उद्भव 13वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में हुआ, जबकि देश में एडवर्ड प्रथम का शासन था. तत्कालीन लागू कानून कामन लॉ कहा जाता था जिसने प्रथम एडवर्ड का काल आते-आते एक निश्चित रूप धारण कर लिया था और उसका प्रशासन अलग-अलग न्यायालयों द्वारा किया जाता था, ये न्यायालय थे-
- राजा का न्यायालय (King’s Bench)
- सार्वजनिक प्रतिकथन न्यायालय (Court of Common Pleas), तथा
- राजकोष न्यायालय (Court of Exchequer)
ये सभी न्यायालय प्रधात्मक विधि (Customary law) तथा सांविधिक विधि (Statute law) द्वारा चलाये जाते थे जिसे कॉमन लॉ कहा जाता है. इन न्यायालयों की संकीर्णता तथा अत्यन्त जटिलता के कारण इंग्लैण्ड में साम्य न्यायालयों के क्षेत्राधिकार का उदय हुआ.
इंग्लैण्ड में साम्य न्यायालयों की स्थापना के निम्नलिखित कारण बताये जाते हैं-
- विधि की कठोरता,
- विधि के मनमाने तथा तकनीकी रूप का कठोरता से पालन, 3. सामन्तवादी संस्थाओं के प्रति अधिक झुकाव,
- रोमन विधि के प्रति विद्वेष, तथा
- उपचारों की कमी |
वेस्टमिनिस्टर द्वितीय की संविधि 1285
इस संविधि के अन्तर्गत सामान्य विधि के इन दोषों को दूर करने का प्रयत्न किया गया. संसद ने 1285 ईस्वी में वेस्टमिनिस्टर द्वितीय की संविधि जो ‘In Consimili Casu’ के नाम से प्रसिद्ध हुई, पारित किया जिसके द्वारा चांसरी को कुछ मामलों में नये प्रादेश जारी करने के लिये सीमित अधिकार प्रदान किये गये. फिर भी यह प्रयत्न असफल सिद्ध हुआ क्योंकि चांसरी को सीमित अधिकार दिये गये थे और ऐसा अधिकार केवल उन मामलों तक सीमित था जो इस प्रकार के मामलों के समान थे जिनके लिये प्रादेश प्राप्त होते थे तथा अब इनकी व्यवस्था परिवाद के नये प्रदेशों के लिये की गई थी और बचाव के नये रूपों के विषय में ये मौन थे सम्राट इन वादों का निर्णय मन्त्रि परिषद की सहायता से भी करता था |
यह भी जानें : भारतीय न्यास अधिनियम के तहत न्यासधारी के अधिकार एवं शक्तियाँ क्या हैं?
चांसलर के क्षेत्राधिकार का विकास
याचिकाओं पर कार्यवाही तथा उन्हें निर्णीत करने का अधिकार मिलने से चांसलर के अधिकारों में वृद्धि हुई. चांसलर अब नये प्रकार के प्रादेश जारी कर सकता था और परिवादों को किसी विधि के न्यायालय में अभियोग लाने की व्यवस्था कर सकता था. चांसलर ने अनेक प्रकार के अनुतोष प्रदान किये और अब उसके न्यायालय की साधारण प्रक्रिया बहुत प्रसिद्ध हो गई.
चांसलर ने मामलों का निर्णय सामान्य विधि के तकनीकी सिद्धान्त के अनुसार नहीं किया किन्तु न्याय, साम्य तथा शुद्ध अन्तर्विवेक द्वारा काम लिया. चांसलर को यह क्षेत्राधिकार 1349 ईस्वी में एडवर्ड तृतीय द्वारा घोषित एक घोषणा द्वारा दिया गया |
साम्य का रूपान्तरण तथा उसका क्रमबद्ध किया जाना
चांसलर 1529 ईस्वी तक सामान्यतया रोमन विधि में पारंगत महान धार्मिक एवं विद्वान होता था, परन्तु शनैः शनैः चांसलर का महान पद केवल एक कानून के ज्ञाता वकील के रूप में हो गया यार्क का आर्कबिशप कार्डिनल वोल्से, (1515 से 1529) एक अन्तिम महान धार्मिक चांसलर था. उसका उत्तराधिकारी चांसलर सर थामस मूर (1530 से 1532) पहला विधिज्ञ चांसलर था. विधिज्ञ के रूप में चांसलर के महान पद का सौंपा जाना इंग्लैण्ड में साम्य के विकास का स्पष्ट परिचायक था और यह ठीक ही कहा गया है कि ‘धार्मिक चांसलरों’ के प्रति साम्य अपने परिवर्तन और उन्नति के लिये कृतज्ञ हैं |
साम्य के क्षेत्राधिकार का विकास
15वीं शताब्दी में न्यासों (Trust) का अधिक प्रचलन हुआ. साम्य न्यायालय ने इसका प्रवर्तन करके एक लाभदायक कार्य किया तथा इस प्रकार मौलिक विधि का एक विस्तृत क्षेत्र चांसरी के हाथ में आया.
16वीं शताब्दी में चांसरी ने दुर्घटना, कपट (Fraud) तथा विश्वास-भंग के मामलों से सम्बन्धित क्षेत्राधिकार ग्रहण कर लिया.
17वीं शताब्दी में चसिरी को सामान्य विधि न्यायालयों से अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा. जेम्स प्रथम ने अंत में चांसलर तथा मुख्य न्यायाधीश के बीच उत्पन्न हुए विवाद का अन्तिम निर्णय चांसलर के पक्ष में कर दिया. अब चांसरी लोगों को व्यादेश (Injunction) जारी करके सामान्य विधि न्यायालय में जाने से रोक सकती थी.
18वीं शताब्दी में जब साम्य देश की मान्यताप्राप्त विधि में चांसरी द्वारा प्रशासित होता था, उन्होंने साम्य के आवश्यक सिद्धान्तों को निश्चित किया और इस शताब्दी के अन्त तक साम्य की एक निश्चित पद्धति हो गयी. चांसरी में मामलों की रिपोर्ट नियमित रूप से प्रकाशित होने लगी. अन्त में साम्य ने विधि के पाठ्य ग्रन्थों में प्रवेश पा लिया |
न्यायालय अधिनियम, 1873 तथा 1875
पारित किये गये जिनके द्वारा साम्य तथा विधि का एकीकरण हो गया. सामान्य विधि तथा चांसरी के पुराने न्यायालय अब समाप्त हो गये. अब न्याय के क्षेत्र में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना हुई, जहाँ एक ही न्यायाधीश द्वारा विधि तथा साम्य दोनों को प्रकाशित किया जाने लगा किन्तु दोनों में विरोध उत्पन्न होने पर साम्य के सिद्धान्तों को विधि के ऊपर महत्व दिया जाने लगा |