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न्यायालय के क्षेत्राधिकार का अर्थ
न्यायालय के क्षेत्राधिकार का साधारण अर्थ है किसी न्यायालय के न्याय करने के प्राधिकार की सीमा. उसके सभी प्रकार के क्षेत्राधिकारों की सीमा विधि द्वारा विहित होती है और उसी विहित सीमा के क्षेत्राधिकार के अर्न्तगत वह वादों या अपीलों या आवेदनों को ग्रहण करने में उनकी सुनवाई करने में और उनका निर्णय करने में सक्षम होता है.
जनता को शीघ्र और उपयुक्त न्याय देने के लिये ही राज्य द्वारा कानून बनाकर न्यायालयों को विभिन्न श्रेणियों में विभक्त किया जाता है और उनके विभिन्न प्रकार के क्षेत्राधिकारों को विनिर्दिष्ट किया जाता है, जिससे कि वे कुशलतापूर्वक न्याय वितरण का कार्य कर सकें.
उदाहरण के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 6 यह उपबन्धित करती है कि जहाँ तक किसी अन्य प्रकार से अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित किया गया हो, उसको छोड़कर इस संहिता की कोई भी बात न्यायालय को ऐसे मामलों के ऊपर क्षेत्राधिकार प्रदान नहीं करेगी, जिनकी विषय-वस्तु का मूल्य उस न्यायालय के साधारण क्षेत्राधिकार से अधिक हो. इस उपबन्ध का अर्थ यह हुआ कि कोई भी न्यायालय अपने विनिर्दिष्ट आर्थिक क्षेत्राधिकार से अधिक मूल्य के मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता है.
पक्षकारों द्वारा अपनी स्वीकृति एवं अभिवचनों के आधार पर किसी न्यायालय विशेष को क्षेत्राधिकार प्रदान नहीं किया जा सकता है |
क्षेत्राधिकार के प्रकार
1. विषय-वस्तु सम्बन्धी क्षेत्राधिकार
इस प्रकार का क्षेत्राधिकार मामले की विषय-वस्तु से सम्बन्धित होता है. उदाहरण के लिये लघुवाद न्यायालय केवल कुछ विवाद रहित मामलों, जैसे वचनपत्रों तथा बन्धनामों पर आधारित ऋणों की वसूली के मामलों को सुनने का क्षेत्राधिकार रखते हैं, किन्तु धारायें 7 और 8 में उल्लिखित वादों की सुनवाई से नहीं कर सकते हैं. दूसरी ओर केवल जिला न्यायालय ही हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत, या तलाक, या इच्छापत्रों से, या संरक्षकता से दिवाला आदि से सम्बन्धित वादों की सुनवाई कर सकते हैं, अन्य अधीनस्थ न्यायालय नहीं कर सकते हैं.
2. स्थानीय या प्रादेशिक क्षेत्राधिकार
इस प्रकार का क्षेत्राधिकार न्यायालय की उन स्थानीय सीमाओं से सम्बन्धित होता है जिनके बाहर उत्पन्न होने वाले मामलों की सुनवाई वह नहीं कर सकता है. उदाहरण के लिए जिला न्यायालय केवल अपने जिले के अन्दर के मामलों की सुनवाई कर सकते हैं.
3. आर्थिक क्षेत्राधिकार
इस प्रकार का क्षेत्राधिकार मामलों के मूल्य से सम्बन्धित होता है. प्रत्येक श्रेणी के न्यायालय के लिए यह विहित कर दिया जाता है कि वह किस मूल्य तक के वादों की सुनवाई कर सकेगा.
4. आरम्भिक तथा अपीलीय क्षेत्राधिकार
आरम्भिक क्षेत्राधिकार मुकदमों के पहली बार दायर किये जाने और उनकी सुनवाई तथा निर्णय किये जाने से सम्बन्धित होता है, तो अपीलीय क्षेत्राधिकार अधीनस्थ अदालत के निर्णय के विरुद्ध अपील की सुनवाई करने और उसका निर्णय करने से सम्बन्धित होता है. उदाहरण के लिए मुंसिफ और लघुवाद न्यायालय केवल आरम्भिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकते हैं तो व्यवहार न्यायाधीश जिला न्यायाधीश और उच्च न्यायालय आरम्भिक अपीलीय, दोनों के प्रकार के क्षेत्राधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकृत किये गये हैं |