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न्यास की परिभाषा
न्यास किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों में किया गया और उसके या उनके द्वारा किया गया विश्वास है.
न्यास की परिभाषा न्यास को अनेक विद्वानों ने परिभाषित किया है.
स्टोरी के अनुसार, न्यास सम्पत्ति में एक साम्यिक अधिकार, हक अथवा हित है तो वास्तविक या निजी हो किन्तु उसके वैध स्वामित्व से बिल्कुल अलग हो.
अण्डरहिल के अनुसार, न्यास एक साम्यिक आधार हैं जो या तो प्रकट रूप में लिया जाता है या प्रलक्षित रूप में अथवा न्यायालय द्वारा आरोपित किया गया है जिसके द्वारा आभारी व्यक्ति उस सम्पत्ति से व्यवहार करने के लिए बाध्य है जिस पर उन लोगों के लाभ के लिए अपना नियंत्रण रखता है जिनमें से वह स्वयं एक व्यक्ति हो सकता है और जिनमें से कोई एक आभार को लागू कर सकता है.
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मेटलैण्ड की परिभाषा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किन्हों ऐसे अधिकारों को रखता है जिनका प्रयोग वह दूसरे को और से अथवा किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए बद्ध हो, तो यह कहा जाता है कि उसे वे अधिकार उस दूसरे अथवा उस उद्देश्य के लिए न्यास के रूप में प्राप्त हैं और वह स्वयं “न्यासधारी” कहलाता है.
लेविन की परिभाषा के अनुसार, यह एक विश्वास है जो किसी दूसरे पर आधारित है, जो भूमि से नहीं आता है. किन्तु यह चिर-प्रतिष्ठित वस्तु के रूप में भौमिक सम्पत्ति के सम्बन्ध में मिला लिया गया है और उन व्यक्तियों से जो उस भूमि से सम्बन्धित हैं जिसके लिए हिताधिकारी कोई उपचार नहीं रखता है किन्तु चांसरी में द्वारा उपचार रखता है.
भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 के अनुसार, न्यास एक आभार है जो सम्पत्ति के साथ जुड़ा हुआ है तथा जो स्वामी के विश्वास तथा स्वीकृति पर आधारित है अथवा अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए या अन्य व्यक्ति तथा स्वामी के लाभ के लिए घोषित किया गया है या उसके द्वारा स्वीकार किया गया है.
साथ ही धारा 6 यह उपबन्धित करती है कि न्यास सम्पत्ति के स्वामित्व से संलग्र एक ऐसा दायित्व है जिसका जन्म स्वामी में किये गये और उसके द्वारा स्वीकृत अथवा दूसरे या दूसरे और स्वामी के लाभ के लिए उसके द्वारा घोषित और स्वीकृत विश्वास से होता है |
न्यास के आवश्यक तत्व
न्यास के अन्तर्गत निम्न तीन तत्वों का होना बहुत आवश्यक हैं-
- विश्वास का तत्व, अर्थ जो व्यक्ति न्यास की रचना करता है, वह व्यक्ति अपनी सम्पत्ति को किसी तीसरे व्यक्ति के हित के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को देता है जिस पर उसे विश्वास है,
- इस प्रकार का दोनों व्यक्तियों के बीच का सम्बन्ध निहित सम्पत्ति के प्रकरण में होता है,
- ऐसा सम्पत्ति का प्रयोग किसी तीसरे व्यक्ति के हित के लिए किया जाता है जो कि ‘हितग्राही’ कहलाता है |
न्यासधारी कौन हो सकता है?
प्रत्येक व्यक्ति, जो सम्पत्ति धारण करने में समर्थ हो, न्यासधारी हो सकता है, किन्तु जहाँ तक न्यास स्वविवेक के प्रयोग में किया गया है तो वह इसका प्रयोग नहीं कर सकता जब तक कि वह संविदा करने में समर्थ नहीं होता है.
स्नेल (Snell) की मान्यता है कि न्यासधारी होने की योग्यता सम्पत्ति धारण करने की क्षमता के साथ सह-व्यापी (co-extensive) है.
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इसलिए सामान्य रूप से लेविन कहता है कि न्यासधारी को ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो वैध सम्पत्ति के लेने और धारण करने में समर्थ है और न्यास के निष्पादन करने की नैसर्गिक क्षमता तथा वैध योग्यता रखता हो और न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत रहता हो |
हिताधिकारी कौन हो सकता है?
सम्पत्ति धारण करने योग्य प्रत्येक व्यक्ति ‘हिताधिकारी’ हो सकता है. वह न्यास के अन्तर्गत हित स्वीकार करने के लिए बद्ध नहीं होता. वह न्यासधारी को सम्बन्धित स्वत्व त्याग अथवा उससे असंगत दावा प्रस्तुत करके अपने हित का त्याग कर सकता है. एक न्यास कुछ कार्यों को करने के लिए जो मानवमात्र के लाभ के लिए नहीं है, प्रयोज्य नहीं है जब तक कि वह धर्मार्थ न्यास नहीं है. किन्तु यह शून्य नहीं है जब तक यह उत्क्रमण नहीं करता है. यह नियम शाश्वतता के विरुद्ध है अथवा लोकनीति के विरुद्ध है और न्यासधारी इसका पालन कर सकता है यदि वह चाहता है |