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व्यावसायिक अवचार की परिभाषा
व्यावसायिक अवचार से आप क्या समझते हैं? इसे हिंदी में व्यावसायिक दुराचार या व्यावसायिक दुराचरण या व्यावसायिक कदाचार (वृत्तिक कदाचार) आदि नामों से भी जाना जाता है.
व्यावसायिक अवचार किसे कहते हैं? विधि व्यवसाय में अधिवक्ताओं का यह कर्तव्य है कि वे अपनी वृत्तिक आचार-संहिता का पालन करें और कोई ऐसा कार्य न करें जो विधि व्यवसाय की गरिमा के प्रतिकूल हो अधिवक्ता द्वारा विधि व्यवसाय की गरिमा के प्रतिकूल किये गये कार्य तथा आचरण को व्यावसायिक अवचार (Professional Misconduct) कहा जाता है. व्यावसायिक अवचार अधिवक्ता के सामान्य व्यवसाय, पक्षकार अथवा न्यायालय के प्रति हो सकता है.
कुछ विधिशास्त्रियों के अनुसार, प्रत्येक अधिवक्ता के व्यापक अधिकार होते हैं. ये अधिकार भी कर्त्तव्यों व आभारों के दायित्वाधीन होते हैं. इन कर्त्तव्यों तथा आभारों का उल्लंघन हो व्यावसायिक अवचार (वृत्तिक कदाचार) माना जाता है. विधि व्यवसाय में अधिवक्ता का व्यावसायिक अवचार अत्यन्त घातक होता है.
व्यावसायिक अवचार को किसी परिधि में परिसीमित नहीं किया जा सकता है. यह समय एवं परिस्थतियों पर निर्भर करता है कि अधिवक्ता का कौन-सा कार्य व्यावसायिक अवचार है और कौन-सा नहीं. व्यावसायिक अवचार का मामला अधिवक्ता, अधिनियम, 1961 के साथ-साथ न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के अन्तर्गत दण्डनीय है. व्यावसायिक अवचार में दोषसिद्ध अधिवक्ता को वकालत करने से वंचित किया जा सकता है. तथा उसे 6 माह तक की अवधि के कारावास अथवा दो हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों से भी दण्डित किया जा सकता है.
इन रि विनयचन्द्र मिश्र (AIR 1995 SC 2348) में उच्चतम न्यायालय ने अवलोकन किया है कि अधिवक्ता का यह कर्तव्य है कि वह न्यायालय का समादर करे और न्यायालय की गरिमा को बनाये रखें. न्यायालय की गरिमा को चोट पहुँचाना दुर्भाग्यपूर्ण कहा जायेगा और इसके लिए दोषी अधिवक्ता को दण्डित किया जाना न्यायोचित होगा.
जहाँ तक वृत्तिक कदाचार का प्रश्न है, इस अभिव्यक्ति को किसी परिधि में परिसीमित नहीं किया जा सकता है. यह समय तथा परिस्थतियों पर निर्भर करता है कि कौन सा कार्य वृत्तिक कदाचार है और कौन सा नहीं कौन सा कार्य न्यायालय के अवमान की परिभाषा में आता है और कौन सा नहीं. साथ ही प्रत्येक मामले की परिस्थितियों और तथ्यों पर भी निर्भर करता है, लेकिन मुख्य रूप से निम्नांकित कार्यों को वृत्तिक कदाचार की परिभाषा में सम्मिलित किया जा सकता है-
- पक्षकारों को जानबूझकर गलत राय देना.
- पक्षकारों की ओर से न्यायालय में उपस्थिति नहीं देना.
- पक्षकारों के मामलों में निष्ठापूर्वक पैरवी नहीं करना.
- विपक्ष से दुरभिसंधि (Collusion) कर लेना.
- पक्षकारों से अवैध रूप से शुल्क अथवा राशि वसूल करना.
- वादग्रस्त सम्पत्ति से संव्यवहार करना अथवा अपने लाभ के लिये क्रय कर लेना.
- न्यायालय में आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करना.
- न्यायालय में अनावश्यक रूप से उत्तेजित होना.
- न्यायिक निर्णयों, व आदेशों पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी करना.
- न्यायाधीशों पर मिथ्या लांछन लगाना.
- पक्षकारों की ओर से न्यायालय में जमा कराये जाने वाली राशि को बीच में रोक लेना.
- पक्षकारों के पक्ष अथवा विपक्ष में निर्णय होने पर उन्हें उसकी जानकारी नहीं देन्द्र तथा पक्षकारों के विरुद्ध पारित निर्णय की अपील, पुनरीक्षण आदि करने की जानकारी नहीं देगा.
- न्यायालय में पक्षकारों की ओर से मिथ्या अथवा कूटरचित दस्तावेज आदि पेश करना.
ऐसे और कई अनेक कार्य हैं जो न्यायालय के अवमान अथवा वृत्तिक कदाचार की परिभाषा में माने जाते हैं. अधिवक्ताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सदैव इस प्रकार के कार्यों से दूर रहें |
व्यावसायिक अवचार का वर्गीकरण
व्यावसायिक अवचार को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. सामान्य व्यवसाय से सम्बन्धित अवचार
अधिनियम प्रत्येक अधिवक्ता पर कुछ सामान्य कर्त्तव्यों का निर्धारण करता है यदि वह उनका उल्लंघन करता है तब वह दुराचरण का दोषी पाया जाता है.
2. न्यायालय से सम्बन्धित अवचार
भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा अधिवक्ता पर न्यायालय के प्रति दस कर्त्तव्यों को अधिरोपित किया गया है. यदि अधिवक्ता इन कर्तव्यों की अवहेलना करता है तब वह कदाचार का दोषी होगा.
3. पक्षकार के प्रति अवधारण
अधिनियम की धारा 49 (1) (C) के अन्तर्गत प्राप्त शक्ति से भारतीय विधिज्ञ परिषद ने कुछ नियम गठित किये हैं. इन नियमों के तहत अधिवक्ता पर कुछ दायित्व अधिरोपित किये हैं.
जिन्हें पूर्ण करना अधिवक्ता का कर्त्तव्य है. वे कर्त्तव्य पक्षकार के प्रति भी हैं. यदि कोई अधिवक्ता उनका उल्लंघन करता है तब वह अवचार का दोषी होगा.
4. सहकर्मी के प्रति अवचार
यदि अधिवक्ता अपने सहकर्मी के प्रति अधिरोपित दायित्वों को नहीं निभाता है तब वह कदाचार का दोषी पाया जायेगा.
5. प्रतिपक्षी के प्रति अवचार
यदि कोई अधिवक्ता उन दायित्वों को नहीं निभाता है. जो कि प्रतिपक्षी के प्रति उस पर अधिरोपित किये गये हैं तो वह अधिवक्ता कदाचार का दोषी होगा.
रोशन दीन बनाम प्रीति लाल (2002 1 SCC 100) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि जहां अधिवक्ता ने याचिका कर्ता से धोखा तथा छल किया है वहाँ न्यायालय स्वप्रेरणा से भी राज्य विधिज्ञ परिषद से उस अधिवक्ता के विरुद्ध जांच करने का आदेश दे सकता है |