Table of Contents
- 1 राज्यपाल की नियुक्ति
- 2 राज्यपाल की नियुक्ति के लिए अर्हताएं
- 3 राज्यपाल पद की शर्ते
- 4 राज्यपाल की पदावधि
- 5 राज्यपाल की शक्तियां
- 6 1. कार्यपालिका शक्तियां
- 7 राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
- 8 2. विधायी शक्तियां
- 9 राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति
- 10 3. वित्तीय शक्तियां
- 11 4. न्यायिक शक्तियां
- 12 राज्य-मन्त्रिपरिषद का गठन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 के अनुसार, प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल होता है किन्तु एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जा सकता है.
राज्यपाल की नियुक्ति
अनुच्छेद 155 और 156 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और वह राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त पद धारण करता है, किन्तु वह कभी भी अपने पद से राष्ट्रपति को सम्बोधित करते हुए त्यागपत्र दे सकता है. इन उपबन्धों के अधीन रहते हुए वह पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण करता है. और इस कार्यकाल के समाप्त हो जाने पर भी नये राज्यपाल की नियुक्ति तक पद धारण किये हुए रहता है.
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राज्यपाल की नियुक्ति के लिए अर्हताएं
किसी व्यक्ति को राज्यपाल के पद पर नियुक्त होने के लिए-
- भारत का नागरिक होना चाहिये.
- और पूरे 35 वर्ष की आयु का होना चाहिये.
राज्यपाल पद की शर्ते
अनुच्छेद 158 के अनुसार, राज्यपाल न तो संसद के किसी सदन का और न राज्य के विधान मण्डल का ही सदस्य होता है. यदि वह ऐसा कोई सदस्य है, तो अपने पद की शपथ लेने के बाद यह माना जायगा कि उसका ऐसा स्थान रिक्त हो गया है. वह कोई लाभ का पद भी ग्रहण नहीं करेगा. पद ग्रहण करने के पहले उसे राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के सामने अनुच्छेद 159 में विहित शपथ लेनी पड़ती है और शपथपत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ता है.
राज्यपाल की पदावधि
अनुच्छेद 156 के अनुसार, राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करेगा. सामान्य रूप से राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है. राष्ट्रपति किसी भी समय राज्यपाल को उसके पद से पदच्युत कर सकता है. इस मामले में राष्ट्रपति केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के परामर्श के अनुसार कार्य करता है.
राज्यपाल की पदावधि राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करती है. राज्यपाल बिना किराया का भुगतान किये अपने सरकारी आवासों का उपयोग करने का और उन सभी भत्तों तथा विशेषाधिकारों के लिए हकदार होगा, जो समय-समय पर संसद विधि द्वारा, विहित करे उसके कार्य काल के दौरान उसके वेतन और भत्तों में कोई कमी नहीं की जायगी. जहाँ एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल नियुक्त किया जाता है, वहाँ उसके वेतन और भत्तों को उन राज्यों में, राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार बॉट दिया जायगा |
राज्यपाल की शक्तियां
इस संविधान के अन्तर्गत राज्यपाल को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं-
- कार्यपालिका शक्तियां (Executive Powers)
- विधायी शक्तियां (Legislative powers)
- वित्तीय शक्तियां (Financial powers)
- न्यायिक शक्तियां (Judicial powers)
1. कार्यपालिका शक्तियां
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है. राज्य की कार्यपालिका शक्ति उसमें निहित होती है, जिसका प्रयोग वह या तो स्वयं सीधे या अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों के द्वारा इस संविधान के अनुसार करता है.
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किन्तु किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी को प्रदत्त कार्य राज्यपाल को अन्तरित किये जा सकते हैं, और संसद कानून बनाकर उसके कार्यों को उसके अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को प्रदत्त कर सकती है. राज्य सरकार के सभी कार्यपालिका कार्य राज्यपाल के नाम से किये जाते हैं.
राज्यपाल के नाम से जारी और निष्पादित किये गये आदेशों और अन्य लिखतों को इस ढंग से प्रमाणीकृत किया जायगा जैसा कि राज्यपाल द्वारा बनाये गये नियमों के द्वारा निर्दिष्ट किया गया हो, और इस प्रकार से प्रमाणीकृत किसी आदेश या लिखत की वैधता को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकेगी कि वह राज्यपाल के द्वारा जारी या निष्पादित नहीं किया गया. राज्यपाल राज्य सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किये जाने के लिये और जहाँ तक कोई कार्य ऐसा नहीं है, जिसके बारे में इस संविधान के द्वारा या अधीन वह अपेक्षित है कि वह स्वविवेक से कार्य करे वहाँ तक कवित कार्य के बँटवारा के लिये नियम बनायेगा.
राज्यपाल राज्य की मन्त्रिपरिषद में मुख्यमन्त्री की और मुख्यमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है. वे मन्त्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करते हैं. राज्यपाल अनुच्छेद 165 (1) के अन्तर्गत राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) और अनुच्छेद 316 (1) के अन्तर्गत राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की भी नियुक्ति करता है.
राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हुए उन विषयों तक है, जिनके सम्बन्ध में राज्य विधानमण्डल को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है, किन्तु किसी ऐसे विषय के बारे में, जिसके सम्बन्ध में राज्य विधानमण्डल और संसद दोनों को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है, राज्य की कार्यपालिका शक्ति, केन्द्र को इस संविधान द्वारा या संसद् द्वारा बनाये गये किसी कानून द्वारा प्रदत्त कार्यपालिका शक्ति के अधीन और उनके द्वारा परिसीमित होंगी.
2. विधायी शक्तियां
राज्यपाल राज्य के विधान मण्डल का एक मुख्य अंग होता है अनुच्छेद 168 (1) जिस राज्य में विधान मण्डल द्विसदनीय होता है, वहाँ एक सदन विधान परिषद और दूसरा सदन विधान सभा कहलाता है. किन्तु राज्यपाल किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है. अनुच्छेद 158 (1) वह विधान परिषद् के लिए उसकी कुल सदस्य संख्या के छठांश ऐसे सदस्यों को नामजद करता है, जो साहित्य, विज्ञान, सहकारी आन्दोलन और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखते हैं.
राज्यपाल विधान मण्डल की बैठक बुलाता है, दोनों सदनों का या विधान सभा का यथास्थिति, सत्रावसान करता है और विधान सभा को भंग भी कर सकता है. वह विधान मण्डल के किसी सदन को या दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित कर सकता है, और इस प्रयोजन के लिये सदस्यों को उपस्थित रहने के लिए कह सकता है. यह विधान मण्डल में लम्बित किसी विधेयक के या किसी अन्य विषय के सम्बन्ध में कोई सन्देश भेज सकता है, जिस पर विधान मण्डल के सदन शीघ्रतापूर्वक विचार करते हैं. अनुच्छेद 200 के अनुसार, उसकी अनुमति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता है.
राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति
राज्यपाल की विधायी शक्ति के अन्तर्गत सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण शक्ति अध्यादेश जारी करने की शक्ति है वह अनुच्छेद 213 के अन्तर्गत, ऐसे समय में जब कि विधान मण्डल सत्र में न हो, अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका प्रभाव विधान मण्डल द्वारा पारित कानूनों के समान ही होता है किन्तु वह निम्नलिखित मामलों में राष्ट्रपति के निर्देश के बिना कोई अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है-
- जिन मामलों पर कोई विधेयक विधान मण्डल में पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी आवश्यक हो.
- जिन मामलों पर किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखना आवश्यक हो.
- जिन मामलों पर विधान मण्डल के कोई अधिनियम इस संविधान के अन्तर्गत उस दशा में अवैध हो जायेगा, यदि उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखे जाने के बाद उस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त नहीं होती.
राज्यपाल द्वारा जारी किये गये प्रत्येक अध्यादेश को विधान मण्डल को स्वीकृति के लिए विधान सभा या दोनों सदनों के सामने उस समय रखा जायेगा जब वे सत्र में हो, नहीं तो सदन की बैठक बुलाये जाने के 6 सप्ताह बाद वह प्रभावहीन हो जायेगा और यदि दोनो सदन उसे अस्वीकृत कर देते है, तो वह 6 सप्ताह से पहले ही प्रभावहीन हो जायेगा राज्यपाल चाहे तो उसे 6 सप्ताह के पहले वापस भी ले सकता है.
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संक्षेप में राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति वैसी ही है, जैसी कि राष्ट्रपति को संसदीय क्षेत्र में अनुच्छेद 123 के अन्तर्गत प्राप्त है.
3. वित्तीय शक्तियां
राज्यपाल की पूर्व अनुमति से ही कोई धन विधेयक विधान सभा में पेश किया जा सकता है. अनुच्छेद 207 (1) के तहत उसकी सिफारिश से ही अनुदान की माँग विधान सभा में पेश की जा सकती है. अनुच्छेद 203 (3), वह राज्य का वार्षिक बजट विधान सभा में या विधान सभा में या विधान मण्डल के दोनों सदनों में पेश कराता है अनुच्छेद 202 (1), राज्य की आकस्मिक निधि उसकी इच्छा पर होती है, जिसका उपयोग वह अप्रत्याशित खर्चे के लिये कर सकता है अनुच्छेद 267 (2)।
4. न्यायिक शक्तियां
राज्यपाल अनुच्छेद 161 के अन्तर्गत किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा प्रविलंबन, विरान या परिहार या दण्डादेश का विलंबन परिहार या लघुकरण कर सकता है किन्तु ऐसा अपराध किसी राज्य विधि के ही विरूद्ध किया गया हो राज्यपाल की क्षमादान आदि की शक्ति वैसी ही है, जैसी कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 72 के अन्तर्गत प्राप्त है किन्तु राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों में निम्नलिखित अन्तर है-
- राष्ट्रपति को मृत्यु दण्ड के मामलों में क्षमादान की अनन्य शक्ति प्राप्त है, जो राज्यपाल को प्राप्त नहीं है।
- राष्ट्रपति को सैनिक न्यायालय द्वारा दिये गये दण्ड या दण्डादेश के मामले में भी क्षमादान की अनन्य शक्ति प्राप्त है, जो राज्यपाल को प्राप्त नहीं है.
राज्य-मन्त्रिपरिषद का गठन
अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार, मुख्यमन्त्री के नेतृत्व में एक मन्त्रिपरिषद होगी, जो राज्यपाल को उसके कार्यों के प्रयोग में सहायता और सलाह देगी। अनुच्छेद 164 (1) के अनुसार, मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जायगी और मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति भी राज्यपाल के द्वारा ही की जायगी। ये मन्त्री राज्यपाल के प्रसाद-पर्यन्त अपना पद धारण करेंगे और मन्त्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होगा.
प्रत्येक मन्त्री को अपना पद ग्रहण करने के पूर्व न्यायालय द्वारा तृतीय अनुसूची में निहित प्ररूप में पद और गोपनीयता की शपथ ग्रहण कराई जायेगी.
मन्त्रियों को राज्य के विधान मण्डल का सदस्य होना आवश्यक है. यदि कोई मन्त्री 9 माह तक लगातार ऐसा सदस्य नही रहा है, तो इस अवधि के समाप्त होने पर वह मन्त्री नही रहेगा |