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उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन संघात्मक संविधान का मूल तत्व है. यह विभाजन एक लिखित संविधान द्वारा होता है जिसको बनाये रखने के लिए संविधान के उपबन्धों की सही व्याख्या आवश्यक है.
ऐसी व्याख्या किसी ऐसी संस्था के द्वारा ही सम्भव है जो केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के बीच विवादों को निष्पक्षता से निपटा सके भारतीय संविधान के अन्तर्गत यह कार्य उचतम न्यायालय को सौपा गया है जिसको संविधान के उपबन्धों की व्याख्या के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय देने का प्राधिकार है इसलिए उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक कहा गया है. वह न केवल संविधान वरन नागरिकों के अधिकारों का भी संरक्षक है. यह सामाजिक हित एंव व्यक्तिगत हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का कार्य करता है. उच्चतम न्यायालय सिविल एव फौजदारी के मामलों का सर्वोच अपीलीय न्यायालय है.
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उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
अनुच्छेद 124 भारत के उच्चतम न्यायालय की स्थापना करता है जो कि अभिलेख न्यायालय होगा (अनुच्छेद 129), और उसमें 25 न्यायाधीशों और (एक मुख्य न्यायाधीश) के पदो के लिए व्यवस्था करता है.
वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में 31 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीस अन्य न्यायाधीश) हैं. उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) 2019 के विधेयक में चार न्यायाधीशों की वृद्धि की गई. इसने मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायिक शक्ति को 31 से बढ़ाकर 34 कर दिया. न्यायाधीश राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किये जायेंगे और पद ग्रहण करने के पहले तृतीय अनुसूची मे निर्दिष्ट फार्म में राष्ट्रपति के सामने शपथ ग्रहण करेंगे.
इस हेतु राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श कर सकता है जैसा कि वह नियुक्तियों के लिए आवश्यक समझे. किन्तु मुख्य न्यायाधीश के अलावा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश से हमेशा परामर्श किया जायेगा. प्रत्येक न्यायाधीश 65 वर्ष को उम्र पूरी करने तक अपना पद धारण किये हुए रहेगा. उसकी उम्र का निश्चय, ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसे ढंग से किया जायेगा जैसा कि संसद, विधि द्वारा व्यवस्था करे. किन्तु वह कभी भी राष्ट्रपति को सम्बोधित करते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे सकेगा |
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न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए योजना
अनुच्छेद 124 (3) के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए किसी व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए-
- वह भारत का नागरिक हो.
- वह कम से कम 5 वर्ष तक किसी उच्चतम न्यायालय का या दो या अधिक उच्चतम का लगातार न्यायाधीश रह चुका हो.
- किसी उच्चतम न्यायालय या दो या अधिक उच्चतम न्यायालयों में लगातार कम से कम 10 वर्षो तक अधिवक्ता (Advocate) रहा हो.
- वह राष्ट्रपति की राय में एक प्रसिद्ध विधिवेत्ता हो |
न्यायाधीशों के वेतन तथा विशेषाधिकार
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधिशों को ऐसे वेतन दिये जायेंगे जो संविधान की द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित है. वे ऐसे भत्तों और विशेषाधिकारों के हकदार होंगे जिन्हें ससद विधि द्वारा समय-समय पर अवधारित करे और जब तक ऐसे अवधारित नही किये जाते है तब तक वे ऐसे विशेषाधिकारों और भत्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात कोई ऐसा परिवर्तन नहीं किया जायगा, जो कि उनके लिए अलाभकारी हो 54वें संविधान संशोधन अधिनियम 1986 के पूर्व उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 5,000 रूपये प्रति माह और अन्य न्यायाधीशों को 4,000 रूपये प्रति माह वेतन मिलता था. किन्तु उक्त संशोधन अधिनियम के बाद उनको क्रमशः 10,000 रूपये प्रति माह और 9,000 रूपये प्रति माह वेतन मिलता है |
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न्यायाधीश को उसके पद के हटाये जाने के लिए विहित प्रक्रिया
अनुच्छेद 124 (4) द्वारा विहित प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके सिद्ध हुए कदाचार या असमर्थता के आधार पर अपने एक आदेश द्वारा इस प्रकार से हटा सकता है कि वह पहले इस प्रयोजन के लिए संसद में एक प्रस्ताव पेश करे, जिसको संसद के दोनों सदनों में से प्रत्येक सदन, अपने कुल सदस्यों के बहुमत से और उस समय उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित करे और ऐसा संसद के एक ही सब में किया जाए.
संसद के दोनों सदनों द्वारा ऐसा पारित प्रस्ताव राष्ट्रपति के सामने पेश किया जायेगा और तब वह उस न्यायाधीश को उसके पद से हटाने का आदेश जारी करेगा. ऐसा प्रस्ताव पेश करने के लिए और किसी न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और प्रमाण के लिए संसद कानून बनाकर प्रक्रिया विनियमित कर सकती है. अमेरिका में भी उच्चतम न्यायधीशों को उन पर महाभियोग चलाकर, उसके पद से हटाया जा सकता है |