IPC धारा 97 क्या है?
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 97 मानवों को उनके शरीर और संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्रदान करती है. इस धारा के तहत, धारा 99 में दिए गए सीमाओं के अंतर्गत, प्रत्येक व्यक्ति को निम्नलिखित कार्य करने का अधिकार होता है-
1. शरीर की प्रतिरक्षा
जब किसी अपराधिक क्रिया के खिलाफ, जो मानव शरीर पर प्रभाव डालता है, व्यक्ति की खुद की सुरक्षा और किसी दूसरे व्यक्ति की भी सुरक्षा के लिए आवश्यक हो, तो वह अपने शरीर की रक्षा कर सकता है.
सरल शब्दों में, यदि किसी व्यक्ति के शरीर पर किसी अपराधकारी व्यक्ति या जमीनदार का प्रभाव डाल रहा है और इससे व्यक्ति की स्वास्थ्य या जीवन को खतरा हो सकता है, तो उसके पास अपने शरीर की प्रतिरक्षा करने का अधिकार है. इससे व्यक्तिगत स्वास्थ्य और सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रावधान होता है.
2. सम्पत्ति की प्रतिरक्षा
जब किसी क्रिया के खिलाफ, जो चोरी, लूट, धन हस्तांतरण या अपराधिक अतिचार के अंदर आता है, या जो इस प्रकार के अपराधों की परिभाषा में आता है, या जो इसका प्रयास कर रहा हो, व्यक्ति अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की जंगम या स्थावर संपत्ति की रक्षा कर सकता है.
सरल शब्दों में, यदि किसी व्यक्ति की सम्पत्ति पर किसी अपराधकारी व्यक्ति का प्रभाव हो रहा है, तो व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए प्रतिरक्षा करने का अधिकार होता है. यह सम्पत्ति जंगम (मोवेबल) या स्थावर (इम्मूवेबल) हो सकती है, जैसे कि जगह, खजाना, आदि.
इसका मतलब है कि IPC धारा 97 व्यक्तिगत सुरक्षा के मामले में महत्वपूर्ण है और व्यक्तिगत सुरक्षा की आवश्यकता होने पर व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा करने का अधिकार प्रदान करती है, जब यह कानूनी हद सीमाओं के अंदर होता है.
अतः धारा 97 के अनुसार प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार केवल अपने ही शरीर एवं सम्पत्ति तक सीमित नहीं है अपितु उसका प्रयोग दूसरे के शरीर एवं सम्पत्ति की प्रतिरक्षा हेतु भी किया जा सकता है. सम्पत्ति के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार केवल चोरी, लूट, रिष्टि तथा आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाले अपराधों तक ही सीमित है.
सम्पत्ति के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार किसी भी सम्पत्ति के विरुद्ध उपलब्ध है चाहे वह जंगम सम्पत्ति हो या स्थावर सम्पत्ति. डकैती, लूट का तीव्र रूप है अतः डकैती के विरुद्ध भी प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उपलब्ध है.
चूँकि लूट में चोरी और उद्दापन दोनों सम्मिलित है. अतः उद्दापन के विरुद्ध भी प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उपलब्ध है. यद्यपि डकैती और उद्दापन इन दोनों अपराधों को स्पष्ट रूप से वर्णित न होने के बावजूद भी उपलब्ध है |