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परिवीक्षा पर छोड़े गये अपराधी को किन शर्तों का पालन करना होता है? | आपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के तहत परिवीक्षा की आवश्यक शर्ते एवं अवधि
परिवीक्षा की आवश्यक शर्ते
किसी भी दोषसिद्ध अपराधी को जब न्यायालय परिवीक्षा पर छोड़ना उचित समझता है. तो न्यायालय उससे एक बन्धपत्र निष्पादित करता है. यह बन्धपत्र प्रतिभू सहित हो सकता है या बिना प्रतिभू के हो सकता है. किसी विशिष्ट प्रकरण के बन्धपत्र पर प्रतिभू ली जाये या नहीं, इसका निर्धारण न्यायालय द्वारा किया जाता है. न्यायालय प्रत्येक ऐसे अपराधी के लिए एक परिवीक्षा आदेश पारित करता है जिसे परिवीक्षा पर छोड़ा जाना होता है. इस आदेश में उस परिवीक्षा अधिकारी का उल्लेख रहता है जिसके पर्यवेक्षण में अपराधी को रहना होता है. इस आदेश में उन शर्तों का उल्लेख रहता है जिसे परिवीक्षा पर छोड़ दिये गये अपराधी को परिवीक्षा की अवधि के दौरान पालन करना होता है. सामान्य तरीके से जो शर्तें पर्यवेक्षण आदेश में उल्लिखित की जाती हैं, वे निम्नलिखित हैं-
- परिवीक्षा पर केवल उन व्यक्तियों को छोड़ा जाता है जिनका अपराध गम्भीर नहीं होता मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास के अपराधियों के लिये परिवीक्षा नहीं होती है.
- आदतन अपराधी को परिवीक्षा पर नहीं छोड़ा जा सकता है प्रायः पहली बार अपराध करने वाले को ही परिवीक्षा पर छोड़ा जाता है.
- सामान्यतया 21 वर्ष से कम आयु के अपराधियों को जिनकी सजा 5 वर्ष से कम हुई है, परिवीक्षा पर छोड़ा जाता है.
- प्रथम अपराधी चाहे किसी भी आयु का हो यदि उसे 2 वर्ष से कम की सजा हुई है तो उसके अच्छे चरित्र के आधार पर परिवीक्षा पर छोड़ा जा सकता है.
- परिवीक्षा की अवधि निश्चित होती है जिसे न्यायालय निर्धारित करता है.
- परिवीक्षा के समय अपराधी को बाण्ड भरना पड़ता है. यदि अपराधी ब्राण्ड की शर्तों-का पालन नहीं करता है तो उसे जेल भेज दिया जाता है.
- परिवीक्षा काल के दौरान उसके व्यवहार पर भी नजर रखी जाती है.
- परिवीक्षा काल के दौरान बिना परिवीक्षा अधिकारी की आज्ञा के वह अपना निवास परिवर्तित नहीं करेगा.
- परिवीक्षा अवधि के दौरान उसे मेडिकल निरीक्षण के लिए मिलते रहना होता है.
- अपराधी सदाचरण बनाये रखेगा.
- अपराधी विधि का पालन करेगा.
- अपराधी अपना स्थान परिवर्तित नहीं करेगा यदि स्थान परिवर्तन आवश्यक है तो अधिकारी के मार्ग निर्देशन में ऐसा किया जायेगा |
परिवीक्षा की अवधि
परिवीक्षा की अवधि अर्थ? परिवीक्षा की अधिकतम अवधि सामान्यतया विधान मण्डल द्वारा निर्धारित की गई होती है. इस अधिकतम सीमा को ध्यान में रखते हुए कोई भी उपयुक्त अवधि निर्धारित कर सकता है. अधिनियमों द्वारा निर्धारित की जाने वाले परिवीक्षा की अवधि पर टिप्पणी करते हुए प्रोफेसर सदरलैण्ड ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण विचार अभिव्यक्त किया है-
“यदि परिवीक्षा का वास्तविक उद्देश्य अपराधी का उपचार या पुनर्वास है तो यह तार्किक है कि उसे अनिश्चित काल तक बिना किसी निश्चित अधिकतम अवधि के रखा जाये।”
न्यायालय परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट के बाद परिवीक्षा अवधि तय करता है. पहले अनियमित परिवीक्षा काल होता है जो 3 वर्ष से अधिक नहीं हो सकता है. बाद में अपराधी को परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट पर छोड़ दिया जाता है.
परिवीक्षा की शर्तों को पूरा करने में असफलता यदि परिवीक्षा पर छोड़ा गया अपराधी परिवीक्षा की शर्तों को पूरा करने में असफल रहता है और शर्त का उल्लंघन पहली बार हुआ है तो न्यायालय उस पर जुर्माना करके उसे पुनः परिवीक्षा की अवधि को पूरा करने का आदेश देता है। यदि शर्त का विखण्डन गम्भीर होता है या दोबारा किया जाता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय उसके दण्ड के निष्पादन का (जो दण्ड स्थगित किया गया था) आदेश दे देता है और तदनुरूप दण्ड का निष्पादन कर दिया जाता है.
परिवीक्षा की शर्तों को पालन करवाने की सफलता वस्तुतः परिवीक्षा अधिकारी और प्रोबेशनर के सहयोग के ऊपर पर्याप्त रूप से निर्भर करती है. परिवीक्षा अधिकारी यदि वास्तव में अपने को प्रोबेशनर का मित्र बनाने में सफल हो जाता है, वह सही तरीके से प्रोबेशनर की सहायता करता है, उसे अपराधी आचरण अपनाने के लिए उत्साहित करता है. तो ऐसी स्थिति में प्रोबेशनर का सफल हो जाना स्वाभाविक हो जाता है |