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परिवीक्षा अधिकारी की परिभाषा
परिवीक्षा अधिकारी की परिभाषा ‘अपराधी परिवीक्षा अधिनियम ,1958’ में नहीं की गई है, लेकिन विभिन्न शब्दकोषों में इस शब्द को परिभाषित किया गया है.
वेबस्टर्स शब्दकोष के अनुसार, “परिवीक्षा अधिकारी से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो परिवीक्षा पर छोड़े गये अपराधी के व्यवहार पर पर्यवेक्षण रखता है तथा अपनी रिपोर्ट देता है।”
ब्लैक लॉ डिक्शनरी के अनुसार, “परिवीक्षा अधिकारी से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो किसी दाण्डिक कार्यवाही में न्यायालय द्वारा परिवीक्षा पर छोड़े गये व्यक्तियों (सामान्यतया किशोरों) का पर्यवेक्षण करता है. उसे परिवीक्षाधीन अपराधी की प्रगति रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करनी होती है. और यदि अपराधी परिवीक्षा की शर्तों का उल्लंघन करता है तो उसे न्यायालय के समक्ष समर्पित करना होता है।”
इस प्रकार परिवीक्षा अधिकारी से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो-
- परिवीक्षा पर छोड़े गये अपराधियों के व्यवहार पर नजर (Supervision)रखता है,
- उनकी प्रगति रिपोर्ट न्यायालय में पेश करता है, तथा
- परिवीक्षा की शर्तों को भंग करने वाले अपराधी को न्यायालय के समक्ष समर्पित करता है |
परिवीक्षा अधिकारी की नियुक्ति
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की धारा 13 परिवीक्षा अधिकारी की नियुक्ति के बारे में प्रावधान करती है. इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ परिवीक्षा अधिकारी ऐसा व्यक्ति होगा-
- जिसे राज्य सरकार द्वारा परिवीक्षा अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाये, अथवा
- जिसे राज्य सरकार द्वारा परिवीक्षा अधिकारी के रूप में मान्य किया जाये, अथवा
- जिसे राज्य सरकार से तनिमित्त मान्यता प्राप्त सोसायटी द्वारा उपलब्ध कराया जाये, अथवा
- जो न्यायालय की राय में परिवीक्षा अधिकारी के रूप में कार्य करने के योग्य हो.
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की धारा 4 के अन्तर्गत सदाचरण की परिवीक्षा का आदेश देने वाला न्यायालय अथवा उस जिले का जिला मजिस्ट्रेट जिसके क्षेत्राधिकार में अपराधी निवास करता है. किसी भी समय पर्यवेक्षण के आदेश में नामित व्यक्ति के स्थान पर परिवीक्षा अधिकारी की नियुक्ति कर सकेगा.
परिवीक्षा अधिकारी जिले के जिला मजिस्ट्रेट के नियंत्रणाधीन होते हैं |
परिवीक्षा अधिकारी के कर्त्तव्य
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की धारा 14 परिवीक्षा अधिकारी के कर्त्तव्यों का उल्लेख करती है. परिवीक्षा अधिकारी के निम्नलिखित कर्तव्य बताये गये हैं-
- अभियुक्त व्यक्ति की परिस्थितियों एवं उसके घर के माहौल की जांच करना तथा तत्सम्बन्धित रिपोर्ट देना,
- परिवीक्षाधीन एवं पर्यवेक्षण के अधीन रखे जाने वाले व्यक्तियों का पर्यवेक्षण करना,
- ऐसे व्यक्तियों के लिए उपयुक्त नियोजन की तलाश करना,
- न्यायालय द्वारा आदिष्ट प्रतिकर एवं खर्चों के संदाय में अपराधियों को सलाह एवं सहायता देना,
धारा 4 के अधीन सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़े गये व्यक्तियों को ऐसे मामलों में और ऐसी रीति में सलाह एवं सहायता देना जो विहित की जाये, तथा - परिवीक्षाधीन अपराधियों के व्यवहार एवं आचारण पर नजर रखना,
- ऐसे अपराधियों के लिए उपयुक्त रोजगार की तलाश करना, तथा
- उनके सम्बन्ध में समय-समय पर न्यायालयों में रिपोर्ट देना.
परिवीक्षा अधिकारी को यह भी देखना होता है कि परिवीक्षाधीन व्यक्ति द्वारा परिवीक्षा की शर्तों का पालन किया जा रहा है या नहीं. यदि कोई व्यक्ति परिवीक्षा की शर्तों का उल्लंघन करता है तो ऐसे व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष समर्पित करना भी परिवीक्षा अधिकारी का ही कर्तव्य है |
परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की धारा 6 के अन्तर्गत आदेश पारित करने से पूर्व अपराधी के चरित्र, उसकी पूर्व एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि के बारे में परिवीक्षा अधिकारी से रिपोर्ट देने हेतु कहा जायेगा. ऐसी रिपोर्ट आने पर न्यायालय उस रिपोर्ट में अंकित तथ्यों के साथ-साथ निम्नांकित बातों पर विचार करेगा-
- अपराधी का चरित्र,
- अपराधी की शारीरिक दशा,
- अपराधी की मानसिक दशा, आदि.
परिवीक्षा अधिकारी से रिपोर्ट की अपेक्षा एक आज्ञापक प्रावधान है. रिपोर्ट उपलब्ध होने पर उस पर विचार किया जाना भी आवश्यक है.
रिपोर्ट का गोपनीय होना
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की धारा 7 में कहा गया है कि-
- इस अधिनियम की धारा 4 (2) एवं 6 (2) के अधीन प्राप्त परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट को गोपनीय रखा जायेगा, लेकिन
- यदि, न्यायालय उचित समझे तो उसे अपराधी को बता सकेगा और उस पर अपनी सुसंगत साक्ष्य पेश करने की अपेक्षा कर सकेगा.
इस प्रकार प्रथम दृष्टया रिपोर्ट (FIR) को गोपनीय रखे जाने की अपेक्षा की गई है. उचित होने पर इसे अपराधी पर प्रकट करने का न्यायालय को विवेकाधिकार दिया गया है. यदि न्यायालय चाहे तो वह रिपोर्ट की अन्तर्वस्तुओं से अपराधी को अवगत करा सकता है.
न्यायालय का विवेकाधिकार
परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट को अपराधी के लिए प्रकट करना पूर्ण रूप से न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है परन्तु न्यायालय को अपने इस विवेक का प्रयोग समुचित रूप से करना चाहिये. जहाँ रिपोर्ट को प्रकट नहीं करने से अपराधी के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो वहाँ रिपोर्ट को प्रकट कर दिया जाना चाहिये |
जमानत और परिवीक्षा के बीच अन्तर
- जमानतीय मामलों में जमानत की माँग एक अधिकार के रूप में की जाती है, जबकि परिवीक्षा की स्थिति में ऐसा नहीं है.
- जमानत सभी प्रकार के अपराधों में दिया जाता है, जबकि परिवीक्षा में सभी तरह के अपराधों में दिया जाता है.
- जमानत में 16 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति अजमानतीय अपराधों में भी जमानत, अधिकार के रूप में मांग सकता है, जबकि परिवीक्षा में 21 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों पर कारावास का निर्बन्धन है.
- जमानत में, आयु, लिंग, अशक्तता के आधार पर अधिनियम उदार है, जबकि परिवीक्षा में इस तरह विभेद नहीं किया गया है.
- जमानत में सदाचार के सिवाय कुछ अन्य शर्ते अधिरोपित हैं, जबकि परिवीक्षा में सदाचार की अवधारणा की गयी है |