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आपराधिक न्याय-भंग का मतलब
धारा 405 का मतलब क्या होता है? आपराधिक न्याय-भंग (Criminal Breach of Trust) का मतलब होता है किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्र रूप से संपत्ति, धन, या किसी अन्य वस्तु के संबंध में किसी को दिये गये विश्वास को उल्लंघन करना. यहां विश्वास की बात किसी संपत्ति को संभालने, रखने, व्यवस्थित करने या प्रबंधित करने के संबंध में होती है. अपराधी व्यक्ति अपनी संपत्ति को किसी दूसरे के लिए संभालने या व्यवस्थित करने के लिए भरोसा प्राप्त करता है, लेकिन बजाय इसके वह उस संपत्ति का गठबंधन करता है और इस्तेमाल करता है जो कि उसके विश्वास के अनुरूप होता है.
आपराधिक न्यास-भंग क्या है? आपराधिक न्याय-भंग (विश्वासघात) एक गंभीर अपराध है और यह जुर्माना के तहत दंडनीय अपराध मान्यता प्राप्त करता है. यदि कोई व्यक्ति आपराधिक न्याय-भंग का दोषी पाया जाता है, तो उसे दंडनीय प्रावधानों के तहत सजा हो सकती है.
धारा 405 में क्या होता है? आईपीसी की धारा 405 के अंतर्गत आरोपी को 7 वर्ष का कारावास और जुर्माना के सज़ा का प्रावधान है. यह एक जमानती और गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है |
आपराधिक न्यास-भंग की परिभाषा
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 405 में आपराधिक न्यास-भंग की परिभाषा दी गयी है. आपराधिक न्यास- भंग का अपराध धारा 403 में उपबन्धित आपराधिक दुर्विनियोग का ही एक अंग है, परन्तु चूँकि एक न्यासी द्वारा किये जाने वाले विश्वासघात को विधि अधिक गम्भीरता से देखती है, अतः इस प्रकार के कार्य को अलग से अपराध का स्वरूप प्रदान किया गया है. आपराधिक न्यास भंग का अपराध निम्नलिखित परिस्थितियों में गठित होता है-
- किसी व्यक्ति में कोई सम्पत्ति या सम्पत्ति का कोई भाग न्यस्त किया गया हो,
- इस तरह सम्पत्ति से न्यस्त व्यक्ति-
- उस सम्पत्ति को बेईमानी से दुर्विनियोग कर ले अथवा अपने उपयोग के लिए संपरिवर्तित कर ले, या
- ऐसे न्यास के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गयी किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैध संविदा का अतिक्रमण करे या जिस प्रकार न्यास का निर्वहन किया जाना है. उसको निर्धारित करने वाली विधि से किसी निर्देश का अतिक्रमण करे, या
- बेईमानीपूर्वक उस सम्पत्ति का उपयोग अथवा व्ययन कर ले या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा वहन करना सहन कर ले |
आपराधिक न्यास-भंग के आवश्यक तत्व
आपराधिक न्यास भंग के अपराध के मुख्य तत्वों की चर्चा करते हुए सरदार सिंह बनाम हरियाणा राज्य, (1977) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिमत व्यक्त किया है कि “अभियुक्त को किसी प्रकार कोई सम्पत्ति का स्वत्व न्यस्त किया गया हो और उसने बेईमानी से उस सम्पत्ति का दुर्विनियोग कर लिया हो अथवा अपने स्वयं के उपयोग के लिए उसका संपरिवर्तन कर लिया हो या बेईमानीपूर्वक ऐसे न्यास के निर्वहन की पद्धति को निर्धारित करने वाली विधि के किसी निर्देश या ऐसे न्यास के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गयी किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैध संविदा का अतिक्रमण करते हुए ऐसी सम्पत्ति का उपयोग अथवा व्ययन किया हो।”
इस प्रकार आपराधिक न्यास भंग के अपराध के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-
1. किसी प्रकार किसी सम्पत्ति का न्यस्त किया जाना
न्यस्त शब्द से तात्पर्य किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सम्पत्ति के कब्जे को प्रदान करने से है. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि न्यास किये जाने में केवल सम्पत्ति का कब्जा प्रदान किया जाता है स्वामित्व नहीं.
- बेईमानीपूर्ण दुर्विनियोग,
- सम्पत्ति का बेईमानीपूर्ण उपयोग अथवा व्ययन,
- अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा,
- जानबूझकर किसी व्यक्ति का ऐसा सहन करना।
प्रतिभारानी बनाम सूरज कुमार (AIR 1985 SC 628) के मामले में निर्धारित किया गया कि यदि कोई परिवादी स्त्री अपने स्त्रीधन के दुर्विनियोग के सम्बन्ध में कोई परिवाद लाती है और परिवाद में उन सारे तत्वों का उल्लेख है जो आपराधिक दुर्विनियोग का अपराध गठित करने के लिए आवश्यक हो तो उस परिवाद को साबित किया जा सकता है. वहीं;
अनिल सरन बनाम राज्य, (1996 Cr LJ 408 SC) के मामले में एक भागीदार विशिष्ट संविदा (Special Contract) के तहत एक सम्पत्ति में हितबद्ध था. न्यायालय ने निर्धारित किया कि उसके द्वारा धारित सम्पत्ति काल्पनिक केपेसिटी के तहत है. यदि वह उसमें दुर्विनियोग करता है तो वह आपराधिक न्यास-भंग (Criminal Breach Of Trust) का दोषी होगा |
आपराधिक न्यास-भंग व आपराधिक दुर्विनियोग के बीच अन्तर
- आपराधिक न्यास-भंग (Criminal Breach of Trust) के अपराध में अभियुक्त को सम्पत्ति विधिपूर्वक सौंपी जाती है, जबकि आपराधिक दुर्विनियोग (Criminal Misappropriation) में अभियुक्त के पास सम्पत्ति किसी घटनावश आ जाती है.
- आपराधिक न्यास भंग में संविदा होती है, जबकि आपराधिक दुर्विनियोग में किसी प्रकार की कोई संविदा नहीं होती.
- आपराधिक न्यास भंग में सम्पत्ति का परिवर्तन न्यायसंगत होने पर कपटपूर्वक ढंग से होता है, जबकि आपराधिक दुर्विनियोग में अभियुक्त के पास सम्पत्ति आने के बाद कपटपूर्वक ढंग से उसके प्रयोग के लिए परिवर्तित कर ली जाती है |