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दायित्व की परिभाषा
दायित्व का अर्थ क्या है? दायित्व को व्यापक अर्थ में न्यायिक बन्धन कहा जाता है. मनुष्य का दायित्व उस समय पर उत्पन्न होता है जब उसके द्वारा किसी व्यक्ति के प्रति अपने कानूनी कर्त्तव्यों का उल्लंघन किया गया है.
सामण्ड की राय के अनुसार, “दायित्व या उत्तरदायित्व आवश्यकता का वह बन्धन है जो बदमाशी करने वाले और बदमाशी का इलाज या उपचार के बीच मौजूद होता है।”
अतः दायित्व उसे कहते हैं जो मनुष्य द्वारा किया गया विधि के प्रतिकूल कोई कार्य होता है. दूसरे शब्दों में यह भी कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति ने नियमित किसी विधि का उल्लंघन किया है, जिसका दायित्व उसके ऊपर है |
दायित्व के प्रकार
दायित्व को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. दीवानी दायित्व
दीवानी दायित्व (Civil liability) में प्रतिवादी के विरुद्ध दीवानी कार्यवाही द्वारा वादी के अधिकारों को लागू कराया जाता है.
2. आपराधिक दायित्व
इस दायित्व का सम्बन्ध अपराधी के उसके कृत्य के लिए दण्डित कराने की कार्यवाही से है.
3. उपचारात्मक दायित्व
इस दायित्व के अन्तर्गत वादी के अधिकारों की रक्षा करके उसके अधिकारों का विनिर्दिष्ट अनुपालन कराया जाता है.
4. शास्तिक दायित्व
इस दायित्व में अपराधी को दण्डित करने की भावना रहती है. आपराधिक दायित्व प्रत्येक दशा में शास्तिक होता है |
दायित्व के सिद्धान्त
दायित्व के मुख्यतया दो सिद्धान्त हैं-
1. उपचारात्मक सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य वादी के अधिकारों का विनिर्दिष्ट अनुपालन है. जो व्यक्ति कर्त्तव्यपालन नहीं करते उन पर विधि के अन्तर्गत उपचारात्मक दायित्व (Remedial liability) अधिरोपित किया जाता है अर्थात कानून अपकारी को कर्तव्य पूर्ति करने के लिए बाध्य करता है. निम्नलिखित दशाओं में विधि द्वारा कर्तव्यों का विनिर्दिष्ट अनुपालन नहीं कराया जा सकता है-
- किसी अपूर्ण कर्तव्य का पालन न किये जाने पर.
- जब किसी कर्तव्य को पूरा करना सम्भव न हो.
- ऐसे कर्तव्य जिनका पालन कराना उचित न हो. जैसे विवाह करने की प्रतिज्ञा.
2. दण्डात्मक सिद्धान्त
इस सिद्धान्त की दो आवश्यक शर्तें हैं-
- किसी भौतिक कृत्य का होना,
- उस कृत्य को करने का दुराशय (Mens rea) होना. इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को अपराधी घोषित करने में दुराशय का होना अति महत्वपूर्ण है. साथ ही दुराशय का विधि द्वारा निषिद्ध होना आवश्यक है |