Table of Contents
- 1 विधायन का अर्थ
- 2 विधायन के प्रकार
- 3 1. सर्वोच्च विधायन
- 4 2. अधीनस्थ विधायन
- 5 उच्चतम विधायन तथा अधीनस्थ विधायन के बीच अंतर
- 6 अधीनस्थ विधायन के प्रकार
- 7 1. उपनिवेशिक विधायन
- 8 2. कार्यपालिका विधायन
- 9 3. न्यायिक विधायन
- 10 4. स्वायत्त विधायन
- 11 4.1. प्राइवेट संस्थाओं के विधान
- 12 4.2. संविधि स्वायत्तशासी निकाय
- 13 5. नगरपालिका विधायन
- 14 विधायन के लाभ
विधायन का अर्थ
विधायन क्या है? अंग्रेजी भाषा में अभिव्यक्त शब्द ‘लेजिस्लेशन’ अर्थात ‘लेजिस’ तथा ‘लेशियो’ से बना है जिसका तात्पर्य होता है ‘लेजिस’ का अर्थ विधि; ‘लेशियो’ का अर्थ होता है निर्माण से अर्थात विधायन का तात्पर्य विधि के निर्माण.
सामान्यतया अर्थ में विधायन से तात्पर्य किसी भी ऐसी प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से मानव आचरण के लिये विधि के नये नियमों का निर्माण किया जाता है.
विधायन का आम अर्थ विधि बनाना है. यह किसी ऐसे प्राधिकारी द्वारा प्रख्यापित विधि का नियम है जिसको ऐसा करने की शक्ति प्राप्त है.
सामण्ड के अनुसार, विधायन विधि के उस स्त्रोत को कहते हैं जो एक योग्य अधिकारी द्वारा वैधानिक नियमों के रूप में एलान किया जाता है.
प्रोफेसर ग्रे ने विधायन को ‘समाज के वैधानिक अंगों का औपचारिक ऐलान’ बताया है.
जो कानून विधायन (Legislation) द्वारा उत्पन्न होता है, उसको रोम के विधिवेत्ताओं ने ‘Jus Scriptum’ का नाम दिया था. ‘Jus Scriptum’ रीति-रिवाज सम्बन्धी कानून ‘Jus Mon-Scriptum’ का ठीक उलटा था.
ब्लैकस्टोन ने भी उपर्युक्त अन्तर का अनुसरण किया था. किन्तु इन्होंने कहा कि ‘Jas Scriptum’ शब्द के स्थान पर अधिनियमित कानून (Enacted Law) कहना ज्यादा सही है. कारण यह है कि ‘Jus Scriptum’ का अर्थ होता है लिखित कानून और लिखित कानून के अन्तर्गत वे भी कानून आते हैं जो विधायन द्वारा नहीं बनाये गये |
विधायन के प्रकार
विधायन दो प्रकार के होते हैं-
- सर्वोच्च विधायन, एवं
- अधीनस्थ विधायन.
1. सर्वोच्च विधायन
सर्वोच्च विधायन (सुप्रीम लेजिस्लेशन) राज्य की सम्प्रभु शक्ति द्वारा निर्मित होता है. इसलिए राज्य के भीतर कोई अन्य सत्ता किसी भी प्रकार इसे नियंत्रित नहीं कर सकती है.
उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में संसद संप्रभु है. इसे केवल सर्वोच्च ही नहीं, वरन् विधिक रूप से सर्वशक्तिमान भी माना जाता है. इसके द्वारा पारित विधि सर्वोच्च विधान है. भारतीय संसद द्वारा पारित विधानों को, और यहां तक कि संविधान के संशोधनों को भी न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और दी गयी है |
2. अधीनस्थ विधायन
अधीनस्थ विधायन (Subordinate Legislation) वह विधायन है जो प्रभुसत्तापूर्ण विधायिका के अलावा किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा किया जाता है. और इसलिए अपनी कानूनी मान्यता या प्रमाण के लिये ऐसे विधायन को सर्वोच्च वैधानिक प्राधिकार पर निर्भर रहना पड़ता है. इस कारण परिवर्तन किसी दूसरी सर्वोच्च वैधानिक शक्ति पर आधारित होता है.
उदाहरण के लिए, जब संसद या राज्य के विधानमण्डल एक नीति के अन्तर्गत अपनी विधायी शक्ति का प्रत्यायोजन कार्यपालिका के अधिकारियों को कर देते हैं और ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी प्रदत्त अधिकार के अधीन जिस विधि का निर्माण करते हैं उसे अधीनस्थ विधायन की श्रेणी में रखा जा सकता है |
उच्चतम विधायन तथा अधीनस्थ विधायन के बीच अंतर
- उच्चतम विधायन (Supreme Legislation) का उद्भव राज्य की सम्प्रभु शक्ति से होता है, जबकि अधीनस्थ विधायन (Subordinate Legislation) उद्भव सम्प्रभु शक्ति के अलावा अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा होता है.
- उच्चतम विधायन निरसन सक्षम प्राधिकारी नहीं कर सकता है, जबकि अधीनस्थ विधानों का अस्तित्व तथा वैधता वरिष्ठ अधिकारी पर निर्भर करती है.
- उच्चतम विधायन पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं रहता है, जबकि अधीनस्थ विधायन पर न्यायिक तथा विधायी नियन्त्रण होता है.
- सर्वोच्च विधान अपनी विधिमान्यता स्वयं से प्राप्त करती है, जबकि यह सर्वोच्च विधान से अपनी विधिमान्यता प्राप्त करती है.
- सर्वोच्च विधान किसी विधायी निकाय की कल्पना नहीं करता है, जबकि अधीनस्थ विधान सर्वोच्च विधान के अधीन होती है |
अधीनस्थ विधायन के प्रकार
सामण्ड ने अधीनस्थ विधान के 5 प्रकार के बताये हैं-
1. उपनिवेशिक विधायन
उपनिवेशिक विधायन (कॉलोनियल लेजिस्लेशन) वास्तव में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की देन है. इसका मतलब उस विधायन से है जो अधीन एवं उपनिवेशिक व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित होते हैं.
2. कार्यपालिका विधायन
कार्यपालिका विधायन (एक्सेकुटिव लेजिस्लेशन) कार्यपालिका द्वारा बनाया जाता है. कभी-कभी कार्यपालिका अपने अधीनस्थ विधायी शक्तियों का प्रयोग करती है.
3. न्यायिक विधायन
न्यायिक विधायन (जुडिशियल लेजिस्लेशन) न्यायालयों द्वारा निर्मित विधि को न्यायिक विधायन कहते हैं. सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय को अपनी प्रक्रिया के लिये नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है.
4. स्वायत्त विधायन
स्वायत्त विधायन (ऑटोनोमस लेजिस्लेशन) स्वायत्त संस्थाओं द्वारा निर्मित होते हैं, जैसे म्युनिसिपल बोर्ड, यूनिवर्सिटी इत्यादि द्वारा बनाये जाते है.
स्वायत्त विधायन दो तरह के होते हैं-
4.1. प्राइवेट संस्थाओं के विधान
वर्तमान में प्राइवेट निगमों एवं अन्य संगठनों को निगमित करने तथा उपविधियों को निर्माण करने के लिये शक्ति प्रदान की गयी है.
4.2. संविधि स्वायत्तशासी निकाय
विधायिका विधान बनाकर ऐसे निकायों की स्थापना करती है.
5. नगरपालिका विधायन
नगरपालिका विधायन (मुनिसिपाल लॉस) स्थानीय संस्थाओं द्वारा निर्मित होते हैं, जैसे नगर महापालिका के बनाये विधान तथा नगर निगम द्वारा निर्मित विधान |
विधायन के लाभ
कानून में सुधार लाने का सबसे शक्तिशाली अस्त्र विधायन हो है. दूसरे लोगों (जो वैधानिक विकास में सहायक हैं) की तुलना में इसकी उपयोगिता और श्रेष्ठता इतनी ज्यादा है कि बढ़ती हुई सभ्यता पूर्णरूपेण इसी को मान्यता देती चली जा रही है, तथा दूसरे स्रोत का बहिष्कार करती जा रही है |