माध्यस्थम् पंचाट
माध्यस्थम् या मध्यस्थता पंचाट क्या है? माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 2 (1) (C) के अनुसार, माध्यस्थम् पंचाट के अन्तर्गत एक अन्तरिम पंचाट भी सम्मिलित है. धारा 2 (1) (C) पंचाट को परिभाषित नहीं करती है बल्कि यह बताती है कि माध्यस्थम् पंचाट में अन्तरिम पंचाट भी शामिल है. सामान्य तौर पर माध्यस्थम् पंचाट पक्षकारों द्वारा चयनित न्यायाधिकरण के द्वारा अन्तिम या अन्तरिम निर्णय होता है. यह संविदा के आधार पर पैदा होता है |
माध्यस्थम् पंचाट का प्रारूप तथा अन्तर्वस्तु
धारा 31 माध्यस्थम् पंचाट के प्रारूप तथा उसकी अन्तर्वस्तुओं के बारे में उपबंधित करती है. ये प्रावधान निम्नलिखित हैं-
- माध्यस्थम् पंचाट लिखित होगा तथा माध्यस्थम् अधिकरण के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित होगा.
- यदि पंचाट बहुमत सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित है तब उसे हस्ताक्षरित माना जायेगा. परन्तु शेष सदस्यों के हस्ताक्षर क्यों नहीं हैं, इसका उल्लेख किया जाना चाहिये.
- यदि पंचाट पक्षकारों के मध्य समझौते के आधार पर हुआ है तब पंचाट का आधार दिया जाना आवश्यक नहीं है.
- माध्यस्थम् अधिकरण के लिये यह आवश्यक है कि पंचाट पर उस तिथि तथा स्थान का उल्लेख हो जिस तिथि तथा स्थान पर इसे कारित किया गया है.
- माध्यस्थम् पंचाट की एक-एक हस्ताक्षरित प्रतिलिपि प्रत्येक पक्षकार को आवश्यक रूप में उपलब्ध कराई जायेगी.
- माध्यस्थम् अधिकरण कार्यवाही के किसी भी स्तर पर अन्तरिम पंचाट पारित कर सकता है. यदि अन्तरिम पंचाट के द्वारा समस्त माध्यस्थम् कार्यवाहियाँ समाप्त हो जाती हैं तब अन्तिम पंचाट पारित करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी और अन्तिम पंचाट समाप्त जायेगा हो.
- माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 31 (7) के अनुसार, जब तक पक्षकारों के मध्य अन्यथा करार या सहमति न हो तथा जहाँ तक पंचाट, धन के भुगतान के बारे में हो. माध्यस्थम् पंचाट में मध्यस्थ द्वारा की गई धनराशि के लिये दिये जाने वाला ब्याज सम्मिलित किया जा सकता है. ब्याज की दर उचित होनी चाहिये. जहाँ पर कोई रकम के भुगतान का आदेश पंचाट में दिया गया है जब तक कि पंचाट में अन्यथा आदेश न हो तो इस रकम के भुगतान में व्याज भी लगाया जा सकता है जिसका रेट पंचाट निर्गत करने वाले दिन को प्रचलित वर्तमान दर से 2 प्रतिशत अधिक होगा और इसे पंचाट निर्माण की तिथि से भुगतान की तिथि तक देना पड़ेगा.
- माध्यस्थम् अधिकरण के द्वारा व्यय के आदेश का उल्लेख पंचाट में स्पष्ट रूप से होना चाहिये. निम्नलिखित का आवश्यक रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये-
- कौन सा पक्षकार व्यय का भुगतान करेगा.
- कौन सा पक्षकार भुगतान प्राप्त करेगा.
- व्यय की धनराशि तथा उसके निर्धारण की विधि.
- व्यय के भुगतान की विधि.
व्यय (Cost) में निम्नलिखित को सम्मिलित किया गया है-
- मध्यस्थ तथा साक्षियों के शुल्क तथा खर्च,
- विधिक शुल्क तथा खर्च,
- प्रशासकीय शुल्क,
- अन्य उचित खर्च.
माध्यस्थम् पंचाट में उपरोक्त सभी तत्वों को आवश्यक रूप में शामिल किया जायेगा.
पंचाट का प्रभाव
माध्यस्थम् पंचाट निर्णय से पक्षकारगण आबद्ध होते हैं. परन्तु इनके अलावा और कोई तीसरा व्यक्ति या पक्षकार पंचाट से आबद्ध नहीं होगा. प्रोफेसर रसल के अनुसार, पक्षकारगण एवं वे व्यक्ति जो पंचाट के अन्तर्गत हकदार होते हैं, पंचाट से आबद्ध होते हैं तथा यह इसमें उल्लिखित तथ्यों का निश्चायक साक्ष्य होता है. जैसा कि पूर्व में कथन किया जा चुका है कि माध्यस्थम् अधिकरण को अंतरिम पंचाट देने की अधिकारिता प्राप्त है तथा अन्तरिम पंचाट निर्णय को भी न्यायालयीन डिक्री की भाँति प्रवृत्त कराया जा सकता है. चूंकि अंतिमता माध्यस्थम् का मुख्य तत्व है, इसलिये माध्यस्थम् अधिकरण सशर्त पंचाट (Conditional Award) नहीं दे सकता है |