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पेटेंट धारक (पेटेंटी) के अधिकार और दायित्व क्या है? पेटेंट के लिए आवेदन करने तथा पेटेंट अभिप्राप्त करने का मुख्य उद्देश्य आविष्कार का उपयोग करने, आविष्कृत उत्पाद के विनिर्माण और विपणन (Manufacturing And Marketing) करने के लिए अनन्य अधिकार प्राप्त करना है. पेटेंट अनुदत्त कर पेटेंटी को वैधानिक तौर पर आविष्कार के सम्बन्ध में एकाधिकार प्रदान किया जाता है.
पेटेंट अधिनियम, 1970 में पेटेंटी के विभिन्न अधिकारों एवं दायित्वों का उल्लेख किया गया है |
पेटेंटी के अधिकार
पेटेंट अधिनियम की धारा 48, 63, 70 एवं 104 में पेटेंटी के अधिकारों का उल्लेख किया गया है. पेटेंटी के मुख्यतया निम्नांकित अधिकार हैं-
1. पेटेंट का उपयोग करने का अधिकार
पेटेंटी का पहला महत्वपूर्ण अधिकार अपने पेटेंट का अनन्य उपयोग करने का है. पेटेंटी को अपने आविष्कार के सम्बन्ध में अनन्य अधिकार अर्थात एकाधिकार प्राप्त है. यह उसका एक विशिष्ट अधिकार है.
धारा 48 के अन्तर्गत पेटेंटी को निम्नांकित अधिकार हैं-
- पेटेंट की विषय-वस्तु के निर्माण को रोकने का;
- विक्रय के लिए प्रस्थापित करने से रोकने का; एवं
- विक्रय या आयात करने से रोकने का.
लेकिन पेटेंटी केवल ऐसे व्यक्तियों को रोक सकेगा जिन्होंने भारत में उस उत्पाद के प्रयोजनार्थ सम्पत्ति प्राप्त नहीं की है.
बम्बई अगरवाल कम्पनी, आकूला बनाम रामचन्द्र दीवानचन्द्र (AIR 1953 नागपुर 154) के मामले में नागपुर उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति पेटेंटी के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकेगा. पेटेंटी के अधिकारों का उल्लंघन उस स्थिति में भी माना जायेगा जहाँ प्रतिवादी को इस बात की जानकारी नहीं रही हो कि वह जो कुछ कर रहा है उससे पेटेंटी के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
2. पेटेंट के अभ्यर्पण का अधिकार
अधिनियम की धारा 62 के अन्तर्गत पेटेंटी को अभ्यर्पण का अधिकार (Right To Surrender The Patent) प्रदान किया गया है. इसके अनुसार, पेटेंटी किसी भी समय नियंत्रक को सूचना देते हुए अपने पेटेंट के अभ्यर्पण की प्रस्थापना कर सकता है.
ऐसी प्रस्थापना किये जाने पर उसे विहित रीति से प्रकाशित किया जायेगा तथा हितबद्ध व्यक्तियों को उससे संसूचित किया जायेगा. यदि हितबद्ध व्यक्तियों द्वारा उसका विरोध किया जाता है तो नियंत्रक द्वारा दोनों पक्षों को साक्ष्य प्रस्तुत करने तथा सुनवाई का अवसर प्रदान किया जायेगा.
सुनवाई के पश्चात यदि नियंत्रक द्वारा समर्पण की प्रस्थापना को स्वीकार कर लिया जाता है तथा पेटेंट धारक अर्थात पेटेंटी को पेटेंट लौटाने का निदेश दिया जायेगा और ऐसा पेटेंट मिल जाने पर नियंत्रक द्वारा उसे प्रतिसंहत (Revoke) कर दिया जायेगा.
3. समनुदेशन का अधिकार
अधिनियम की धारा 70 के अन्तर्गत पेटेंटी को अपना पेटेंट किसी अन्य को पूर्णतः या भागतः समनुदेशित (Assign) करने का अधिकार प्रदान किया गया है. पेटेंटी कभी भी अपना पेटेंट पूर्णतः या भागतः किसी भी व्यक्ति को समनुदेशित कर सकता है. ऐसा समनुदेशन (Assignment) अभिव्यक्त एवं लिखित करार द्वारा किया जाना अपेक्षित है. करार रजिस्ट्रीकृत होना भी वांछनीय है ताकि विवाद उत्पन्न होने पर उसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सके.
अनुज्ञप्ति का अधिकार अधिनियम की धारा 70 में यह प्रावधान किया गया है कि इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए रजिस्ट्रीकृत व्यक्ति या व्यक्तियों को पेटेंट के प्राप्तिकर्ता (Grantee) अथवा स्वत्वधारी (Proprietor) तौर पर पेटेंट का समनुदेशन, अनुज्ञप्ति (Licence) अनुदत्त करने या अन्यथा व्यवहार करने और ऐसे किसी समनुदेशन अनुमति या व्यवहार के लिए किसी प्रतिफल हेतु प्रभावी रसीदें देने की शक्तियों प्राप्त हैं.
इस प्रकार पेटेंट के प्राप्तकर्ता अथवा स्वत्वधारी को पेटेंट के बारे में अनुज्ञप्ति अनुदत्त करने का अधिकार है.
उदाहरणार्थ, एक नवीन ध्वनियंत्र के आविष्कारक पेटेंटी को किसी अन्य व्यक्ति को पेटेंट का उपयोग, विनिर्माण और विक्रय करने के अधिकार के बारे में अनुज्ञप्ति प्रदान करने का अधिकार होता है. अनुज्ञप्ति प्रदान करने वाला व्यक्ति अनुज्ञप्तिदाता (Licensor) कहलाता है और जिस व्यक्ति को अनुज्ञप्ति प्रदान की जाती है, वह अनुज्ञप्तिधारी कहलाता है. जिस दस्तावेज के माध्यम से अनुज्ञप्ति प्रदान की जाती है, उस दस्तावेजको अनुसंविदा कहा जाता है.
इस प्रकार जब एक व्यक्ति कुछ करने के लिए, जिसे वह प्रतिषिद्ध करने का विधिक अधिकार रखता है. किसी अन्य व्यक्ति को अनुमति प्रदान करता है तो इसे अनुज्ञप्ति प्रदान करना कहा जाता है.
4. बाद लाने का अधिकार
अधिनियम की धारा 104 के अन्तर्गत पेटेंटी को पेटेंट का अतिलंघन होने पर दोषी व्यक्ति के विरुद्ध वाद लाने का अधिकार प्रदान किया गया है. इसके अनुसार, पेटेंटी निम्नांकित प्रकृति के बाद जिला न्यायालय की पंक्ति के न्यायालय में संस्थित कर सकेगा.
- धारा 105 के अधीन घोषणा का वाद;
- धारा 106 के अधीन आधारहीन धमकियों के विरुद्ध अनुतोष के लिए वाद; तथा
- पेटेंट के अतिलंधन के लिए वाद.
श्री प्रकाश स्टील इण्डस्ट्रीज बनाम रमापदा चटर्जी (1990 2 AIR 15 गुवाहाटी) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि धारा 104 के अन्तर्गत वाद जिला न्यायालय से निम्न पंक्ति के न्यायालय (Inferior Court) में संस्थित नहीं किया जा सकेगा.
लेकिन जहाँ प्रतिवादी द्वारा पेटेंट के प्रतिसंहरण का प्रतिवाद किया जाता है, वहाँ ऐसा प्रतिवाद दावे सहित विनिश्चय हेतु उच्च न्यायालय को अन्तरित कर दिया जायेगा |