अधिवक्ता के न्यायालय के प्रति कर्त्तव्य
अधिवक्ता के न्यायालय के प्रति क्या कर्त्तव्य हैं? एक अधिवक्ता के न्यायालय के प्रति क्या-क्या कर्त्तव्य हैं, उनका उल्लेख बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया के द्वारा अधिवक्ता अधिनियम की धारा 49 (1) (C) के अन्तर्गत बनाये गये नियम 1 से 10 तक में किया गया है. ये कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं-
- अपने मामले की प्रस्तुति तथा किसी न्यायालय के समक्ष अन्यथा किसी कार्य करने के दौरान एक अधिवक्ता आत्म सम्मान एवं मर्यादा के साथ आचरण करेगा. जब कभी किसी न्यायिक अधिकारी के विरुद्ध गम्भीर शिकायत के उचित आधार हैं, तो उचित प्राधिकारी को अपनी शिकायत जमा करने का उसका अधिकार एवं कर्त्तव्य होगा.
D.P. चढ्ढा बनाम बार काउन्सिल ऑफ हरियाणा (2001) 1 SCC 221 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि अधिवक्ता का यह न्यायालय के प्रति कर्त्तव्य है कि वह न्यायालय को विधि की सही स्थिति से अवगत कराये, चाहे वह निर्णय उसके मुवक्किल के पक्ष में भी वह न हो.
- एक अधिवक्ता न्यायालयों के प्रति आदरपूर्ण दृष्टिकोण इस बात को मस्तिष्क में रखते हुए पोषित करेगा कि एक स्वतन्त्र समुदाय के चलते रहने के लिये न्यायिक पद की मर्यादा आवश्यक है.
- किसी गैर कानूनी अथवा अनुचित साधनों द्वारा कोई अधिवक्ता न्यायालय के विनिश्चय को प्रभावित नहीं करेगा किसी लम्बित मामले से सम्मिलित न्यायाधीश से निजी संसूचनाओं को मनाही है.
- अधिवक्ता अपने मुवक्किल को तीखी और अनुचित कार्य करने के लिये अथवा न्यायालय से सम्बन्धित कोई चीज़ करने से प्रतिपक्षी अधिवक्ता या प्रतिपक्षीगण जो अधिवक्ता एवं नैतिक रूप से न करना उचित समझता है, विरोध करने से संयमित तथा रोकेगा. अधिवक्ता उस मुवक्किल का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा जो ऐसे अनुचित कार्य को करने का हठ करता है. वह स्वयं को मुवक्किल का मात्र प्रवक्ता नहीं समझेगा तथा पत्राचार में संयमित भाषा के प्रयोग पर स्वयं के विवेक बुद्धि का प्रयोग अभिवचन में गंदा आचरण तथा न्यायालयों में बहस के दौरान गुस्से भरी भाषा का प्रयोग नहीं करेगा.
- अधिवक्ता सदैव विहित पोशाक में ही न्यायालय में प्रस्तुत होगा और उसकी प्रस्तुति सदैव उपयुक्त होगी.
- अधिवक्ता अधिनियम की धारा 30 में उल्लिखित किसी न्यायालय अधिकरण अथवा अधिकार के समक्ष प्रस्तुति कार्य करने अभिवचन अथवा अभ्यास करने के लिये प्रविष्ट नहीं करेगा. यदि एक मात्र अथवा उसका कोई सदस्य उस अधिवक्ता के संग पिता पुत्र, प्रपौत्र, चाचा, भाई, भतीजा, प्रथम चचेरा भाई बहन पति, दादा, पुत्र, पत्नी, माँ, बेटी, बहन, चाची भतीजी, ससुर, दामाद, पुत्रवधु तथा भाभी के रूप में सम्बन्धित है.
- एक अधिवक्ता न्यायालय के अतिरिक्त ऐसे समारोह के अवसरों तथा ऐसे स्थानों पर जहाँ भारतीय विधिज्ञ परिषद या न्यायालय जैसा विहित करे को छोड़कर, अन्यत्र कहीं भी गाठन नहीं पहनेगा.
- एक अधिवक्ता किसी संगठन अथवा किसी संस्था, समाज अथवा निगम की कार्य समिति का सदस्य है तो वह ऐसे संगठन अथवा संस्था समाज अथवा निगम के पक्ष से अथवा विरोध में किसी न्यायालय अथवा अधिकरण अथवा अन्य किसी प्राधिकार में अथवा समक्ष प्रस्तुत नहीं होगा. कार्य समिति चाहें जिस भी नाम से उसे पुकारा जाये, में कोई समिति अथवा व्यक्तियों के निकाय सम्मिलित होगी जिसमें कुछ समय के लिये संगठन अथवा संस्था समाज या निगम के कार्यों की सामान्य व्यवस्था निहित है.
- बशर्ते कि यह नियम न्याय-मित्र के रूप में प्रस्तुत होने वाले ऐसे किसी सदस्य को अथवा विधिज्ञ परिषद समाविष्ट विधि सोसाइटी अथवा विधिज्ञ संगम की ओर से बिना किसी उपयोजित नहीं करेगा.
- एक अधिवक्ता को किसी ऐसे मामले में जिसमें वह स्वयं आर्थिक रूप से हितबद्ध है, कार्य अथवा अभिवचन नहीं करना चाहिये |