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भारतीय विधिज्ञ परिषद क्या है?
भारतीय विधिज्ञ परिषद किसे कहते हैं? भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India) से तात्पर्य उन राज्य क्षेत्रों के लिए जिन पर अधिवक्ता अधिनियम, 1961 का विस्तार है, धारा 4 के अधीन गठित विधिज्ञ परिषद से है. इस प्रकार अधिनियम की धारा 4 के अधीन गठित परिषद को भारतीय विधिज्ञ परिषद कहते हैं |
भारतीय विधिज्ञ परिषद का गठन?
उन राज्य क्षेत्रों के लिए, जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, भारतीय विधिज्ञ परिषद के नाम से ज्ञात एक विधिज्ञ परिषद होगी जो निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगी, अर्थात
- भारत का महान्यायवादी (Attorney General), पदेन,
- भारत का महासालिसिटर (Solicitor General) , पदेन,
- प्रत्येक राज्य के द्वारा, अपने सदस्यों में से निर्वाचित एक सदस्य।
कोई भी व्यक्ति भारतीय विधिज्ञ परिषद के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के लिये तब तक पात्र नहीं होगा जब तक उसके पास धारा 3 की उपधारा (2) के परन्तुक में विनिर्दिष्ट अर्हताएं न हों. भारतीय विधिज्ञ परिषद का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा जो उस परिषद द्वारा ऐसी रीति से निर्वाचित किया जाएगा जो विहित की जाए.
अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 1977 के प्रारम्भ के ठीक पूर्व भारतीय विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण करने वाला व्यक्ति ऐसे प्रारम्भ पर यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण नहीं करेगा.
परन्तु ऐसा व्यक्ति अपने पद के कर्त्तव्यों का पालन तब तक करता रहेगा जब तक कि परिषद का यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष जो अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 1977 के प्रारम्भ के पश्चात निर्वाचित हुआ है, पदभार ग्रहण नहीं लेता.
भारतीय विधिज्ञ परिषद के ऐसे सदस्य को, जो राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा निर्वाचित किया गया हो, पदावधि-
- राज्य विधिज्ञ परिषद के ऐसे सदस्य की दशा में, जो वह पद पदेन धारण करता हो, उसके निर्वाचन की तारीख से दो वर्ष होगी या उस तक होगी जिसको वह राज्य विधिज्ञ परिषद का सदस्य न रह जाए, इनमें से जो भी अवधि पहले हो और
- किसी अन्य दशा में, उतनी अवधि के लिये होगी जितनी के लिए वह राज्य विधिज्ञ परिषद के सदस्य के रूप में पद धारण करता हो.
परन्तु प्रत्येक ऐसा सदस्य भारतीय विधिज्ञ परिषद के सदस्य के रूप में अपने पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी निर्वाचित नहीं कर लिया जाता है.
विधिज्ञ परिषद का निगमित निकाय होना
प्रत्येक विधिज्ञ परिषद शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाली एक निगमित निकाय होगी जिसे स्थावर तथा जंगम, दोनों प्रकार की सम्पत्ति अर्जित और धारण करने, तथा संविदा करने की शक्ति होगी और जिस नाम से वह ज्ञात हो उस नाम से वह वाद ला सकेगी और उस पर बाद लाया जा सकेगा |
भारतीय विधिज्ञ परिषद के कार्य?
- अधिवक्ताओं के लिये वृत्तिक आचार (Professional conduct) और शिष्टाचार के मानक (Standard) निर्धारित करना।
- अपनी अनुशासन समिति द्वारा और प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित करना।
- अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करना।
- विधि सुधार का उन्नयन और उसका समर्थन करना।
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अधीन उत्पन्न होने वाले किसी ऐसे मामले में कार्यवाही करना और उसे निपटाना जो उसे किसी राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा निर्दिष्ट किया जाए।
- सभी राज्यों के विधिज्ञ परिषदों का साधारण पर्यवेक्षण और उन पर नियंत्रण रखना।
- विधि शिक्षा का उन्नयन करना और ऐसी शिक्षा प्रदान करने वाले भारत के विश्वविद्यालयों और राज्य विधिज्ञ परिषदों से विचार-विमर्श करके ऐसी शिक्षा के मानक निर्धारित करना।
- ऐसे विश्वविद्यालयों को मान्यता देना, जिनकी विधि की उपाधि अधिवक्ता के रूप में नामांकित किए जाने के लिए अर्हता होगी और उस प्रयोजन के लिए विश्वविद्यालयों में जाना और उनका निरीक्षण जैसे निर्देश इसकी ओर से दिये जाते हैं उन्हें वैसे ही विश्वविद्यालयों की देखरेख एवं निरीक्षण करना।
- विधि विषयों पर प्रतिष्ठित विधिशास्त्रियों द्वारा परिसंवादों का संचालन और वार्ताओं का आयोजन करना और विधिक रुचि की पत्र-पत्रिकाएं और लेख प्रकाशित करना।
- विहित रीति से निर्धनों को विधिक सहायता देने के लिए आयोजन करना।
- भारत के बाहर प्राप्त विधि की विदेशी अर्हताओं को इस अधिनियम के अधीन अधिवक्ता के रूप में प्रवेश पाने के प्रयोजन के लिए, पारस्परिक आधार पर मान्यता देना।
- विधिज्ञ परिषद की निधियों का प्रबन्ध और उनका विनिधान करना।
- अपने सदस्यों के निर्वाचन की व्यवस्था करना।
- इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन विधिज्ञ परिषद को प्रदत्त अन्य सभी कृत्यों का पालन करना।
पूर्वोक्त कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक अन्य सभी कार्य करना |
बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया की शक्तियां?
भारतीय विधिज्ञ परिषद की शक्तियां क्या है? भारतीय विधिज्ञ परिषद को नियम बनाने की निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं-
1. नियम बनाने की शक्ति
भारतीय विधिज्ञ परिषद को अधिनियम की धारा 15 तथा धारा 49 के अन्तर्गत नियम बनाने की निम्नलिखित शक्ति प्राप्त है-
(1) धारा 15 के अधीन भारतीय विधिज्ञ परिषद अध्याय 2 के प्रावधानों के लिए निम्नलिखित विषयों पर नियम बना सकती है-
- विधिज्ञ परिषद के सदस्यों का गुप्त मतदान द्वारा निर्वाचन, जिसके अन्तर्गत वे शर्तें भी हैं जिनके अधीन रहते हुए व्यक्ति डाक मतपत्र के अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं, निर्वाचक नामावलियां तैयार करना और उनका पुनरीक्षण और वह रीति जिससे निर्वाचन के परिणाम प्रकाशित किए जाएंगे।
- विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के निर्वाचन की रीति। वह रीति, जिससे और वह प्राधिकारी जिसके द्वारा विधिज्ञ परिषद के लिए या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद के लिए किसी निर्वाचन की विधिमान्यता के बारे में शंकाओं और विवादों का अन्तिम रूप से विनिश्चित किया जाएगा।
- विधिज्ञ परिषद में आकस्मिक रिक्तियों को भरना।
- विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की शक्तियाँ और कर्तव्य नियम बनाना।
- धारा 6 की उपधारा (2) और धारा 7 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट वित्तीय सहायता देने या विधिक सहायता या सलाह देने के प्रयोजन के लिए विधिज्ञ परिषद द्वारा एक या अधिक निधियों का गठन करना।
- निर्धनों के लिए विधिक सहायता और सलाह देने के लिए आयोजन, और उस प्रयोजन के लिए समितियों और उपसमितियों का गठन और उनके कृत्य तथा उन कार्यवाहियों का विवरण जिनके सम्बन्ध में विधिक सहायता या सलाह दी जा सकती है.
- विधिज्ञ परिषद के अधिवेशन बुलाना और उनका आयोजन, उनमें कारवार का संचालन और उनमें गणपूर्ति के लिए आवश्यक सदस्य संख्या की नियुक्ति करना।
- विधिज्ञ परिषद की किसी समिति का गठन और उसके कृत्य और किसी ऐसी समिति के सदस्यों की पदावधि निर्धारित करना।
- ऐसी किसी समिति के अधिवेशन बुलाना और उनका आयोजन, उनमें कारबार के संव्यवहार और गणपूर्ति के लिए आवश्यक सदस्य संख्या का निर्धारण करना।
- विधिज्ञ परिषद के सचिव लेखाकार और अन्य कर्मचारियों को अहंताएं और उनकी सेवा की शर्तें निर्धारित करना।
- विधिज्ञ परिषद द्वारा लेखा-बहियों तथा अन्य पुस्तकों का रखा जाना।
- लेखा परीक्षकों की नियुक्ति और विधि परिषद के लेखाओं को लेखापरीक्ष कराना।
- विधिज्ञ परिषद की निधियों का प्रबन्ध और विनिधान करना।
किसी राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा इस धारा के अधीन बनाए गए नियम तब तक प्रभावी नहीं होंगे जब तक भारतीय विधि परिषद् उनका अनुमोदन न कर दे।
(2) धारा 49 के अनुसार, भारतीय विधिज्ञ परिषद निम्नलिखित विषयों पर नियम बना सकती है-
- ये शर्तें, जिनके अधीन रहते हुए कोई अधिवक्ता राज्य विधिज्ञ परिषद के किसी निर्वाचन में मतदान करने के लिए हकदार हो सकेगा जिनके अन्तर्गत मतदाताओं की अर्हताएं या निरर्हताएं भी हैं और वह रीति, जिससे मतदाताओं की निर्वाचक नामावली राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा तैयार और पुनरीक्षित की जा सकेगी।
- किसी विधिज्ञ परिषद की सदस्यता के लिए अहंताएं और ऐसी सदस्यता के लिए निरर्हताएं।
- वह समय, जिसके भीतर और वह रीति जिससे धारा 3 की उपधारा (2) के परन्तुक को प्रभावी किया जा सकेगा।
- वह रीति किसी अधिवक्ता के नाम को एक से अधिक राज्यों की नामावली में दर्ज किए जाने से रोका जा सकेगा।
- वह रीति जिससे अधिवक्ताओं की परस्पर ज्येष्ठा अवधारित की जा सकेगी।
- किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों में, विधि की उपाधि के पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने के लिए अपेक्षित न्यूनतम अर्हताएं।
- अधिवक्ताओं के रूप में नामांकित किए जाने के लिए हकदार व्यक्तियों का वर्ग या प्रवर्तन।
- वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए किसी अधिवक्ता को विधि व्यवसाय करने का अधिकार होगा और वे परिस्थितियों जिनमें किसी व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि वह किसी न्यायालय में विधि व्यवसाय करता है.
- वह प्रारूप जिसमें एक राज्य की नामावली से दूसरे में किसी अधिवक्ता के नाम के अन्तरण के लिए आवेदन किया जाएगा।
- अधिवक्ताओं द्वारा अनुपालन किए जाने वाले वृतिक आचरण और शिष्टाचार के मानक।
- भारत में विश्वविद्यालयों द्वारा अनुपालन किया जाने वाला विधि शिक्षा का स्तर और उस प्रयोजन के लिए विश्वविद्यालयों का निरीक्षण।
- भारत के नागरिकों से भिन्न व्यक्तियों द्वारा विधि विषय में प्राप्त ऐसी विदेशी अर्हताएं, जिन्हें इस अधिनियम के अधीन अधिवक्ता के रूप में प्रवेश पाने के प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाएगी।
- किसी राज्य विधिज्ञ परिषद को अनुशासन समिति द्वारा और अपनी अनुशास समिति द्वारा अनुसारित की जाने वाली प्रक्रिया।
- विधि व्यवसाय के मामले में वे निर्बन्धन जिनके अधीन वरिष्ठ अधिवक्ता होंगे।
- जलवायु को ध्यान में रखते हुए, किसी न्यायालय या अधिकरण के सम हाजिर होने वाले अधिवक्ताओं द्वारा पहनी जाने वाली पोशाकें या परिधान।
- इस अधिनियम के अधीन किसी मामले की बाबत उद्गृहीत की जा सकने वाली फीस।
- राज्य विधिज्ञ परिषद के मार्गदर्शन के लिए साधारण सिद्धान्त और वह रीति जिससे बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया द्वारा जारी किए गए निदेशों या दिए गए. आदेशों को प्रवर्तित किया जा सकेगा।
2. दुराचरण या अवचार के लिए अधिवक्ता को दण्डित करने की शक्ति
धारा 36 के अनुसार, जहाँ किसी शिकायत की प्राप्ति पर या अन्यथा, भारतीय विधिज्ञ परिषद के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई ऐसा अधिवक्ता, जिसका नाम किसी राज्य नामावली में दर्ज नहीं है, वृत्तिक या अन्य अवचार का दोषों रहा है, वहाँ वह उस मामले को अपनी अनुशासन समिति को निपटारे के लिए निर्दिष्ट करेगी.
इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया की अनुशासन समिति, किसी राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति के समक्ष किसी अधिवक्ता के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई के लिए लंबित किन्हीं कार्यवाहियों को या तो स्वप्रेरणा से या किसी राज्य विधिज्ञ परिषद की रिपोर्ट पर या किसी हितबद्ध व्यक्ति द्वारा उसको किए गए आवेदन पर जाँच करने के लिए अपने पास वापस ले सकेगी और उसका निपटारा कर सकेगी.
भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, इस धारा के अधीन किसी मामले के निपटारे में, धारा 35 में अधिकथित प्रक्रिया का यथाशाक्य अनुपालन करेगी, और उस धारा में महाधिवक्ता के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे भारत के महान्यायवादी के प्रति निर्देश हैं.
इस धारा के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों के निपटारे में भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति कोई ऐसा आदेश दे सकेगी जो किसी राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति धारा 35 की उपधारा (3) के अधीन दे सकती है और जहाँ भारतीय विधिज्ञ परिषद् की अनुशासन समिति के पास जाँच के लिए किन्हीं कार्यवाहियों को वापस लिया गया है. वहाँ सम्बद्ध राज्य विधिज्ञ परिषद ऐसे आदेश को प्रभावी करेगी.
3. अपील सुनने की शक्ति
धारा 37 के अनुसार, किसी राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति की धारा 35 के अधीन किए गए आदेश या राज्य के महाधिवक्ता के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, आदेश की संसूचना को तारीख से साठ दिन के भीतर, बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया को अपील कर सकेगा.
प्रत्येक ऐसी अपील की सुनवाई भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति द्वारा की जाएगी और वह समिति उस पर ऐसा आदेश जिसके अन्तर्गत राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति द्वारा अधिनिर्णीत दण्ड को परिवर्तित करने का आदेश भी है, पारित कर सकेगी, जैसा वह ठीक समझे।
परन्तु राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति का कोई भी आदेश, व्यथित व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना, बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया की अनुशासन समिति द्वारा इस प्रकार परिवर्तित नहीं किया जाएगा जिससे कि उस व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े |