Table of Contents
- 1 न्यासधारी के अधिकार
- 2 1. स्वत्व विलेख का अधिकार
- 3 2. व्यय क्षतिपूर्ति का अधिकार
- 4 3. व्यास भंग द्वारा लाभ प्राप्तकर्त्ता से क्षतिपूर्ति का अधिकार
- 5 4. न्यायालय से निर्देश प्राप्त करने का अधिकार
- 6 5. उन्मोचन का अधिकार
- 7 न्यासधारी की शक्तियाँ
- 8 1. न्यासधारी की सामान्य शक्तियाँ
- 9 2. न्यासधारी की परिनियमित शक्तियाँ
- 10 1. न्यास सम्पत्ति के विक्रय की शक्ति
- 11 2. विनियमों में परिवर्तन करने की शक्ति
- 12 3. अवयस्क हितग्राही के भरण-पोषण से सम्बन्धित शक्ति
- 13 4. पावती देने की शक्ति
- 14 5. दावों में समझौता करने की शक्ति
- 15 न्यासधारियों की शक्तियों का निलम्बन
न्यासधारी के अधिकार
भारतीय न्यास अधिनियम के तहत न्यासधारी को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं-
1. स्वत्व विलेख का अधिकार
धारा 3 के अनुसार, न्यासधारी को न्यास प्रलेख व न्यस्त सम्पत्ति के स्वत्व के समस्त विलेखों को (यदि कोई हो) अपने पास रखने का अधिकार है. यह अधिकार धारा 13 के उपबन्ध में भी निहित है, जिसके अन्तर्गत न्यासधारी पर न्यस्त सम्पत्ति की रक्षा करने और तत्सम्बन्धी वाद प्रस्तुत करने का दायित्व होता है.
न्यास के प्रलेख तथा उससे सम्बद्ध अन्य विलेखों का अभिरक्षण न्यासधारी को इसलिए दिया गया है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन दक्षतापूर्वक कर सके.
2. व्यय क्षतिपूर्ति का अधिकार
न्यासधारी को न्यास के निष्पादन अथवा न्यास सम्पत्ति की वसूली, संरक्षण अथवा लाभ या हितग्राही की रक्षा या सहायता के सिलसिले में किये गये सभी उचित व्ययों को न्यास सम्पत्ति में से प्रतिभूति का अधिकार है.
अपने पास से किये गये व्यय की प्रतिपूर्ति का न्यासधारी अधिकृत होता है. न्यासधारी का क्षति का अधिकार न्यस्त सम्पत्ति पर प्रथम भार होता है. अधिकार के प्रवर्तन की अवधि न्यासधारी के निवृत्ति प्राप्त करने के दिनांक से 6 वर्ष होती है. यदि व्यस्त सम्पत्ति असफल हो जाय, तो न्यासधारी अपने द्वारा खर्च की गई धनराशि की वसूली के लिए व्यक्तिगत रूप में उस हितग्राही के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है जिसकी और से अथवा जिसके अनुरोध पर उसने कार्य किया हो.
3. व्यास भंग द्वारा लाभ प्राप्तकर्त्ता से क्षतिपूर्ति का अधिकार
जहाँ न्यासधारी से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति ने किसी विश्वास-भंग से कोई लाभ प्राप्त कर लिया हो, वहाँ उसके लिए यह आवश्यक होता है कि भंग के अन्तर्गत वस्तुतः प्राप्त किये गये लाभ की सीमा तक न्यासधारी को क्षतिपूर्ति की और जहाँ ऐस व्यक्ति हितग्राही हो वहाँ ऐसी धनराशि के लिए न्यासधारी का उसके हित पर भार होता है.
धारा 33 के अनुसार, इस धारा में आयी हुई कोई वस्तु ऐसे न्यासधारी को, जो विश्वास भंग करने में कपट का दोषी हो, क्षतिपूर्ति का अधिकारी बनाने वाली नहीं समझी जायगी.
4. न्यायालय से निर्देश प्राप्त करने का अधिकार
धारा 34 के प्रावधानों के अनुसार, न्यासधारी जहाँ कहीं भी न्यास के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त रूप से ऐसा करना आवश्यक समझता है विवाद्यक प्रश्न पर आरम्भिक क्षेत्राधिकार रखने वाले प्रधान न्यायालय से राय, मन्त्रणा या निर्देश लेने के लिए याचिका दायर कर सकता है.
5. उन्मोचन का अधिकार
जब किसी न्यासधारी के इस रूप में, कर्त्तव्य पूर्ण हो जाये तो न्यासधारी को न्यस्त सम्पत्ति के अपने प्रशासन के लेखा की परीक्षा तथा उसके परिशोधन कराने और जहाँ हितग्राही को न्यास के अन्तर्गत कुछ देय न हो, वहाँ उसको लिखित अस्वीकृति प्राप्त करने का अधिकार होता है.
न्यासधारी की शक्तियाँ
न्यासधारी की सामान्य तथा परिनियमित शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-
1. न्यासधारी की सामान्य शक्तियाँ
न्यासधारी विधि तथा न्यास के लिखित उपबन्धों के अधीन ऐसे कार्य जिन्हें वह न्यास के उचित निष्पादन तथा हितग्राही, जो विधि में सक्षम नहीं है एवं उसकी सुरक्षा में असमर्थ है, उसकी संरक्षा तथा सहायता के लिए युक्तियुक्त समझता है, उन सभी कार्यों को करने की शक्ति रखता है.
2. न्यासधारी की परिनियमित शक्तियाँ
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं-
1. न्यास सम्पत्ति के विक्रय की शक्ति
जहाँ कोई न्यासधारी किसी न्यस्त सम्पत्ति के विक्रय के लिए सशक्त किया गया है वहाँ वह उसका विक्रय, पूर्वभारों (Charge) के अधीन एक साथ अथवा टुकड़ों में सार्वजनिक नीलामी अथवा व्यक्तिगत संविदा द्वारा, कर सकता है.
2. विनियमों में परिवर्तन करने की शक्ति
कोई न्यासधारी किसी प्रतिभूति में विनियोजित किसी व्यस्त सम्पत्ति को अपने विवेकानुसार लौटा कर धारा 20 में उल्लिखित अथवा निर्दिष्ट किसी भी प्रतिभूति में उसका विनियोजन कर सकता है. समय-समय पर किन्हीं भी ऐसे विनियोजनों को समान प्रकृति के दूसरे विनियोजनों में अन्तरित कर सकता है.
परन्तु यह कि जहाँ कोई संविदा करने के लिये सक्षम व्यक्ति अपने जीवनकाल में व्यस्त सम्पत्ति की आय प्राप्त करने अथवा किसी अन्य बड़े हित का उस समय अधिकारी हो, वहाँ उसकी लिखित अनुमति के बिना विनियोजन में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया जायगा.
3. अवयस्क हितग्राही के भरण-पोषण से सम्बन्धित शक्ति
जहाँ कोई न्यासधारी किसी सम्पत्ति को न्यास के रूप में किसी अवयस्क के लिये धारण करता हो, वहाँ ऐसा न्यासधारी उसका उपयोग अवयस्क के भरण-पोषण, शिक्षा, जीवन में उन्नति अथवा धार्मिक पूजा, विवाह अथवा अन्त्येष्टि क्रिया आदि के युक्तिसंगत व्यय के लिये कर सकता है.
4. पावती देने की शक्ति
कोई न्यासधारो अथवा न्यासधारीगण किसी भी धनराशि, प्रतिभूति अथवा अन्य अचल सम्पत्ति के लिये, जो किसी न्यास अथवा शक्ति के कारण अथवा प्रयोग में उसे या उन्हें देय हस्तान्तरण योग्य अथवा परिदान योग्य हो, लिखित पावती दे सकते हैं.
5. दावों में समझौता करने की शक्ति
न्यासधारी न्यास सम्पत्ति से सम्बन्धित विवादों तथा ऋणों को व्यवस्थित अथवा समझौता करने के लिए व्यापक शक्तियां रखता है.
न्यासधारियों की शक्तियों का निलम्बन
जबकि व्यस्त सम्पत्ति कई न्यासधारियों में निहित हो और यदि उनमें से कोई एक या अधिक अपना दावा त्याग दे या मर जाये तो जब तक कि न्यास लिखित उपबन्धों से यह प्रकट न होता हो कि प्राधिकार का प्रयोग बचे हुए न्यासधारियों की संख्या से अधिक द्वारा होना है, तो न्यासधारी उस अधिकार का प्रयोग कर सकेंगे.
जहाँ किसी न्यास के निष्पादन के लिये किसी वाद में डिक्री पारित कर दी जाय, वहाँ न्यासधारी के लिये यह आवश्यक है कि ऐसी आज्ञप्ति के अनुकूल तथा उस न्यायालय के सम्मोदन, जिसके द्वारा डिक्री पारित की गयी हो, के अतिरिक्त या जहाँ डिक्री के विरुद्ध अपील लम्बित हो वहां अपीलीय न्यायालय के सम्मोदन से भिन्न रूप में अपनी शक्ति का प्रयोग न करे.