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इस्लाम धर्म के अनुयायियों के दो सम्प्रदाय हैं- सुन्नी, तथा शिया।
सुन्नी सम्प्रदाय
इस सम्प्रदाय में चार विचार पद्धतियों का विकास हुआ तथा उनका नाम विचारकों के नाम पर ही पड़ा. ये निम्नलिखित हैं-
1. हनफी शाखा
इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक अबू हनीफा थे. अबू हनीफा के सिद्धान्त कुरान और अहादिश पर आधारित थे. उनके अनुसार कुरान अपने मौलिक रूप में अनन्त है, यह खुदा के उपदेशों और शब्दों का संग्रह है तथा इसको खुदा से अलग नहीं किया जा सकता हैं. उनके अनुसार कुरान ही विधि का पहला तथा मुख्य स्रोत है. दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत उनके अनुसार वे परम्परायें हैं जो विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न तरीकों से व्यक्त की गई हैं. परम्पराओं को स्वीकार करने या अस्वीकार करने में ये सख्ती बरतते थे.
अबू हनीफा पहले विधिवेत्ता थे जिन्होंने कपास को वरीयता प्रदान की तथा उसकी मदद से नये सिद्धान्तों की खोज की. हनीफा इस्तिहसान के सिद्धान्त के लिये मशहूर हुये जिसका अर्थ कानून के लिये वरीयता और कर्म के लिये तत्परता है.
2. मालिकी शाखा
यह शाखा मदनी स्कूल के नाम से भी जाना जाता है. इसका प्रारम्भिक तथा प्रमुख केन्द्र मदीना था. इसके प्रवर्तक मलिक थे. इनके धर्म सिद्धान्त हनीफा के सिद्धान्तों के विपरीत नहीं थे. इनके सिद्धान्तों का प्रथम स्रोत कुरान तथा उसके बाद हजरत मोहम्मद की परम्परायें हैं.
इन्होंने उन्हीं रिवाजों को प्राथमिकता दी जो कि मदीना के परम्परावादी लोगों द्वारा बताई गयी एवं संग्रहीत की गई थीं.
ये हजरत मोहम्मद के आदेशों के अलावा इजमा, तमुल व मदीना के रीतिरिवाजों को विधि के स्रोत मानते थे. इन स्रोतों के असफल होने की परिस्थिति में वे पूर्व निर्धारित निर्णयों को अधिक मान्यता देते थे. संक्षेप में मलिकी शाखा की विधि निम्नलिखित स्रोतों पर आधारित थी-
- पवित्र कुरान
- हदीस-ए-रसूल
- मदीना के रीति-रिवाज
- तमूल असे मदीना
- कयास, और
- इस्तिरलाह
3. शफई शाखा
इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक इमाम शफी थी. वह अपने न्याय के लिये प्रसिद्ध थे. इमाम शफी कुरान के बाद मोहम्मद साहब के सुन्ना पर अधिक बल देते थे. वे परम्पराओं के समर्थक थे. ये अहादिश के सिद्धान्त के घोर समर्थक थे. इनके अनुसार इजमा का आधार या तो कुरान या हदीस या तार्किक अनुमान ही हो सकता है. इमाम शफी पहले विधिवेत्ता थे जिन्होंने कयास के लिये नियम निर्धारित किये। परन्तु इस वर्ग के सिद्धान्त स्त्रियों के लिये कम अनुकूल थे. यह सम्प्रदाय दक्षिणी भारत, श्रीलंका तथा अरब में प्रचलित है.
4. हनबली शाखा
इस शाखा के प्रवर्तक इब्न हनबल थे, ये पारम्परिक ज्यादा और न्यायवेत्ता कम थे. ये सबसे पहले कुरान तथा उसके बाद अहादिश को अधिक महत्त्व देते थे. इनका अधिकतर झुकाव हदीश की तरफ ही रहा. कयास का प्रयोग सिर्फ आवश्यकता पढ़ने पर करना उचित समझते थे. इन्होंने विशेष जोर पैगम्बर की परम्पराओं पर दिया है और साम्य के सिद्धान्तों को कम स्थान दिया है.
शिया सम्प्रदाय
इस सम्प्रदाय की प्रमुख विचार पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं-
1. अथना-अशरिया शाखा
इस शाखा के समर्थक “बारह इमाम” के अनुयायी हैं या खुद को उन्हीं का वंशज मानते हैं इस स्कूल के अनुयायी दो विचार पद्धतियाँ रखते हैं- अखबरी और उसूली. अखबरी शिया कट्टर परम्परावादी हैं और उसूलो शिया कुरान को पूरा महत्व देते हैं.
2. इस्माइलिया शाखा
छठे इमाम जफर-अस-सादिक के दो पुत्र थे- इस्माइल और मूसा उल काजिम. इस्माइल के समर्थक इस्माइलिया कहलाते हैं.
3. जैदिया शाखा
चौथे इमाम अली असगर के पुत्र जैद इसके प्रवर्तक थे. इस शाख के अनुयायी शिया और सुन्नी दोनों विचार पद्धतियों के सिद्धान्तों को मानते हैं. इस शाखा के अनुयायी अधिकांशतः दमन में हैं.
मोताजिला संप्रदाय
इस संप्रदाय का उदय नवीं शताब्दी के आसपास हुआ है. इसके संस्थापक अता-उल- गजल थे. अमीर अली के अनुसार इस सम्प्रदाय के लोग, कभी स्वतन्त्र सम्प्रदाय और कभी- कभी उसूली विचार पद्धति के समान शिया सम्प्रदाय के प्रारम्भिक काल की एक शाखा माने जाते हैं. इनका कोई संगठित समुदाय नहीं है, न ही विधि का कोई पृथक निकाय. यह काल्पनिक दीन धर्म के सिद्धान्त पर भिन्न होती है. इस विचार को मानने वाले समर्थक एक से अधिक पत्नियों के साथ विवाह को अवैध मानते हैं; न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना विवाह विच्छेद नहीं हो सकता है. इस संप्रदाय के अनुयायी बहुत ही कम संख्या में पाये जाते हैं.