Table of Contents
- 1 1. विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान
- 2 2. सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य की भारत में स्थापना
- 3 3. संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना
- 4 4. पूर्ण वयस्क मताधिकार की व्यवस्था
- 5 5. द्विसदनात्मक विधान मण्डल की स्थापना
- 6 6. मूल अधिकार
- 7 7. नागरिकों के मूल कर्त्तव्य
- 8 8. राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों की घोषणा
- 9 9. पंथनिरपेक्ष राज्य की स्थापना
- 10 10. संघात्मक और एकात्मक स्वरूप का मिश्रण
- 11 11. लचीला और कठोर दोनों है
- 12 12. स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना
- 13 13. एक नागरिकता
सर आइवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को ‘विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान’ का है. जेनिग्स का यह कथन ठीक है. मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद थे जो 22 भागों में विभाजित थे और इसमें 9 अनुसूचियों थीं वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के पश्चात् संविधान में कुल 444 अनुच्छेद हो गये है जो 26 भागों में विभाजि है और उसमें 12 अनुसूचियाँ हैं.
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है-
- विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान;
- सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य की भारत में स्थापना;
- संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना;
- पूर्ण वयस्क मताधिकार की व्यवस्था;
- द्विसदनात्मक विधान मण्डल की स्थापना;
- मूल अधिकार;
- नागरिकों के मूल कर्त्तव्य;
- राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों की घोषणा;
- पंथनिरपेक्ष राज्य की स्थापना;
- संघात्मक और एकात्मक स्वरूप का मिश्रण;
- लचीला और कठोर दोनों है;
- स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना;
- एक नागरिकता.
यह भी जानें : भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त और प्रत्याभूति मौलिक अधिकार?
1. विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान
भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. विश्व के किसी भी देश का संविधान इतना बड़ा और विस्तृत नहीं है. प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक सर आइवर जेनिंग्स का कथन सही है कि भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान है.
2. सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य की भारत में स्थापना
यह संविधान भारत में एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य की स्थापना करने की बात अपनी उद्देशिका में ही कहता है.
3. संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना
यह संविधान भारत में इंग्लैण्ड की तरह की संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना करता है, जिसमें राष्ट्रपति भारतीय संघ का नाम मात्र का संवैधानिक प्रमुख है, जबकि वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मन्त्रिपरिषद के हाथों में सौंपी गई है. यह मन्त्रिपरिषद जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से गठित होती है और सामूहिक रूप से सीधे संसद के प्रति उत्तरदायी होती है.
4. पूर्ण वयस्क मताधिकार की व्यवस्था
यह संविधान देश में प्रजातन्त्रीय सरकार की स्थापना करने के लिए पूर्ण वयस्क मताधिकार की व्यवस्था भी करता है. इस व्यवस्था के अन्तर्गत देश के प्रत्येक वयस्क स्त्री और पुरुष को चुनाव में मतदान करने का और इस प्रकार से अपने जन प्रतिनिधि का चुनाव करने का अधिकार प्रदान किया गया है. 61वें संविधान संशोधन द्वारा वयस्क मताधिकार की आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है. न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है.
5. द्विसदनात्मक विधान मण्डल की स्थापना
यह संविधान संघीय संसद (केन्द्रीय विधान मण्डल) में दो सदनों-
लोक सभा और राज्य सभा की व्यवस्था करता है. लोक सभा निम्न सदन कहलाती है, जिसमें प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए जनता के प्रतिनिधि बैठते हैं. राज्य सभा उच्च सदन कहलाती है, जिसमें राज्यों की विधान सभाओं के चुने हुए जन-प्रतिनिधियों द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधि बैठते हैं. राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा, इन तीनों को मिलाकर केन्द्रीय विधान मण्डल गठित होता है, जिसको भारत की संसद कहते हैं.
6. मूल अधिकार
भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? यह संविधान देश की जनता के लिए. ऐसे कुछ मूल अधिकारों की घोषणा करता है, जो उनके व्यक्तित्व और बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक होते हैं. यह स्वाभाविक ही है कि जब हमने लोकतांत्रिक पद्धति की सरकार अपनायी हैं, तो देश की जनता को ऐसे मूल अधिकार प्रदान किए ही जायें. यही नहीं, बल्कि इन मूल अधिकारों को राज्य के विरुद्ध लागू करवाने के लिए उच्चतम न्यायालय को जो शक्ति प्रदान की गई है वह भी मूल अधिकारों में शामिल है. संविधान की प्रस्तावना में प्रत्येक नागरिक को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय का वचन दिया गया है.
7. नागरिकों के मूल कर्त्तव्य
संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा एक नया भाग A और उसके अन्तर्गत नया अनुच्छेद 51A जोड़कर भारत के प्रत्येक नागरिक को कुछ मूल कर्तव्यों का पालन करने के लिए भी कहा गया है. इनमें से मुख्य मूल कर्तव्य हैं- जैसे संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों तथा संस्थाओं का, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का आदर करना, भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता की रक्षा करना, देश की रक्षा करना इत्यादि.
यह भी जानें : भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य?
8. राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों की घोषणा
लोक कल्याणकारी राज्य का सपना पूरा करने के लिए यह संविधान राज्य नीति के ऐसे कुछ निदेशक तत्वों की घोषणा करता है, जिसका पालन करना राज्य का परम कर्त्तव्य है. ये तत्व जनता को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय दिलाने के लिए सिद्धान्त रूप से आवश्यक हैं. इन निदेशक तत्वों के अन्तर्गत जिन कार्यों को करने के लिए राज्य से कहा गया है, वे लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने में सहायक हैं. ग्लेनविल आस्टिन ने इन तत्वों को ‘राज्य की आत्मा’ कहा है.
9. पंथनिरपेक्ष राज्य की स्थापना
यह संविधान किसी भी विशेष पंथ को राज्य का धर्म घोषित न करते हुए सभी धर्म के लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करके और सभी धर्मों को समान आदर की नजर से देखते हुए भारत में एक पंथनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है.
10. संघात्मक और एकात्मक स्वरूप का मिश्रण
यह संविधान सामान्य स्थिति में और मूलभूत रूप से संघात्मक ही है. केवल संकटकालीन स्थिति में वह एकात्मक हो जाता है, क्योंकि उस समय केन्द्र को अधिभावी शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं. सामान्य स्थिति में भारतीय संघ में शामिल इकाई राज्य अपने आन्तरिक प्रशासन में स्वतन्त्र रहते हैं और संविधान के कुछ उपबन्धों में संसद तभी संशोधन कर सकती है, जब ऐसे संशोधन से आधे से अधिक राज्य सहमत हों.
सारे देश के लिए सर्वोच्च विधि के रूप में एक ही संविधान लागू है, उच्चतम न्यायालय के रूप में एक ही उच्चतम न्यायालय है, और एक ही नागरिकता लागू है- इन लक्षणों के साथ यह संविधान संघात्मक है, जबकि संकटकालीन स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा आपात उद्घोषणा लागू किए जाने पर वह देश की अखण्डता और रक्षा के लिए केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्तिशाली बना देता है.
11. लचीला और कठोर दोनों है
यह संविधान लचीला और कठोर दोनों है और इस प्रकार नम्यता और अनम्यता दोनों का अनोखा सम्मिश्रण है. उसमें आवश्यकतानुसार समय-समय पर संशोधन किए जा सकते हैं. यह इस बात का सबूत है कि वह लचीला (नम्य) है. उसे कठोर इसलिए कहा जाता है कि संशोधनों के लिए संसद को विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है. कुछ विशेष प्रावधानों के संशोधनों के लिये यह आवश्यक है कि ऐसे संशोधनों को संसद के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाय और साथ ही उन पर कम से कम आधे राज्यों की स्वीकृति भी प्राप्त की जाय.
12. स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना
इस संविधान द्वारा सारे देश के लिए एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई है, जो कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुक्त है और उसे इतना शक्तिशाली बनाया गया है कि वह केन्द्र और राज्यों के बीच या राज्यों के बीच, उत्पन्न संवैधानिक विवादों का निपटारा कर सके. एक ओर तो यह संविधान का संरक्षक है, दूसरी और वह राज्य के अतिक्रमण के विरुद्ध नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करते हुए मूल अधिकारों का रक्षक है.
इसी प्रकार राज्यों में एक-एक उच्च न्यायालयों की स्थापना की व्यवस्था की गई है और वे सभी कार्यपालिका के ऊपर नियन्त्रण रखते हैं और राज्य के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के रिट (Writs) उसी प्रकार जारी करने की शक्ति रखते हैं, जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय रखता है.
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13. एक नागरिकता
इस संविधान द्वारा सारे देश के लिए एक ही नागरिकता मान्य की गई है. देश के किसी भी राज्य का नागरिक केवल भारत का नागरिक है. अमेरिका में दुहरी नागरिकता की व्यवस्था की गई है- एक अमेरिकी संघ की और दूसरों उन पृथक-पृथक राज्यों की जो अमेरिकी संघ में शामिल हैं |