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विधिशास्त्र की अर्थ
विधिशास्त्र शब्द का विभिन्न समयों पर विभिन्न अर्थ रहा है. यह कहा जाता है कि विधिशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन पद (Expression) ज्यूरिसप्रूडेशिया (Jurisprudentia) से हुई. ज्यूरिसप्रूडेन्शिया का शाब्दिक अर्थ होता है विधि का ज्ञान (Knowledge Of Law) या विधि में कुशलता (Skill In Law) ज्यूरिस का अर्थ है विधि और प्रूडेशिया का अर्थ है ज्ञान. अर्थात दोनों के मिश्रण से बना विधि का ज्ञान. पर ध्यान रहे रोमन विधिशास्त्रियों ने कभी विधिशास्त्र का विकास नहीं किया. विधिशास्त्र को जब हम विधि के ज्ञान के अर्थ में लेते हैं तो कभी-कभी इसका अर्थ विधि की एक शाखा की व्याख्या से होता है. यथा, साम्या की एक पाठ्य पुस्तक का नाम दिया गया, साम्या विधिशास्त्र। यह शब्दावली कॉमन लॉ देशों में प्रचलित नहीं है. वृहत्तर अर्थों में विधिशास्त्र शब्द का प्रयोग ज्ञान के एक समूह के विधिक सम्बन्धों के वर्णन में भी किया जाता है जैसे, दाँत सम्बन्धी विधिशास्त्र (Dental Jurisprudence) या वस्तु विधिशास्त्र (Architectural Jurisprudence) या औषधि विधिशास्त्र (Medical Jurisprudence) फ्रांसीसी विधि के अन्तर्गत लॉ ज्यूरिसप्रूडेंस (Law Jurisprudence) पद का प्रयोग विधि के ऐसे समूह (Body Of Law) के लिये किया जाता है जिसका निर्माण न्यायालय विशेष के निर्णयों द्वारा होता है. विधिशास्त्र शब्द को इंग्लैण्ड में एक तकनीकी महत्व बेंथम और उनके शिष्य आस्टिन के समय अर्थात 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्राप्त हुआ |
विभिन्न विधिशास्त्रियों के अनुसार विधिशास्त्र की परिभाषा?
1. सिसरो की परिभाषा
प्रसिद्ध दार्शनिक सिसरो (Cicero) ने विधिशास्त्र के दार्शनिक पक्ष को उजागर किया है. उनके अनुसार विधिशास्त्र ज्ञान का दार्शनिक पक्ष है. यह परिभाषा भी आज की सामाजिक परिस्थितियों और मानव समाज की विषमताओं (Complexities) को देखते हुये उपयुक्त नहीं है. सिसरो दार्शनिक गहराई में विधिशास्त्र की जड़े देखना चाहते थे. लेकिन उनके विचार अब व्यावहारिक नहीं रह गये हैं |
2. अल्पियन की परिभाषा
महान रोमन विधिशास्त्री अल्पियन (Ulpian’s) ने विधिशास्त्र को दैवी और मानवीय बातों का ज्ञान, सही और गलत का विज्ञान कहकर पारिभाषित किया है इस परिभाषा का दायरा (विस्तार-क्षेत्र) काफी विस्तृत है और यह सम्भवतः धर्म, नीति-शास्त्र और दर्शनशास्त्र पर भी लागू हो सकती है. यह परिभाषा अस्पष्ट, अनिश्चित एवं अपर्याप्त है और विधि की उन धारणाओं का प्रतिनिधित्व करती है जो कि रोमन सभ्यता के प्रारम्भ में प्रचलित थी. यहाँ यह ध्यान देना आवश्यक है कि अल्पियन का यह कथन मात्र एक आलंकारिक (Rhetoric) कथन या और रोमनवासियों ने इसे आगे नहीं बढ़ाया |
2. सामण्ड की परिभाषा
सामण्ड (Salmond) विधिशास्त्र की परिभाषा नागरिक विधि के प्रथम सिद्धान्तों का विज्ञान के रूप में करते हैं. इस तरह विधिशास्त्र विधि की एक विशेष शाखा का विवेचन करता है और वह है सिथिल या नागरिक विधि। सिविल विधि या नागरिक विधि से उनका अभिप्राय राज्य विधि (State Law) से है. इस प्रकार की विधि नियमों का वह समूह है जिसके अन्तर्गत संविधि (Statutes) प्रथायें या विधायन (Legislation) आते हैं जिसे न्यायालय न्याय प्रशासन में लागू करते हैं और जिसे मानने के लिये प्रत्येक नागरिक, अधिवक्ता एवं न्यायालय बाध्य हैं. सामण्ड विधिशास्त्र को नागरिक विधि का विज्ञान (Science Of Civil Law) मानते हैं. जब हम इसे नागरिक विधि के विज्ञान के रूप में देखते हैं तो इसका तात्पर्य होता है कि विधिक सिद्धान्तों का क्रमबद्ध अध्ययन |
3. आस्टिन की परिभाषा
आस्टिन (Austin) के अनुसार, विधिशास्त्र निश्वयालक विधि का दर्शन (Philosophy Of Positive Law) है. उन्हें आंग्ल विधिशास्त्र का जनक कहा जाता है. दर्शन शब्द का प्रयोग यहाँ भ्रामक है. दर्शन चीजों या विषयों के बारे में, चाहे वे मानवीय हों या दैवी, अति सामान्य सिद्धान्तों की विवेचना करता है जब कि विधिशास्त्र मनुष्य द्वारा निर्मित विधि के सामान्य सिद्धान्तों को विवेचना करता है. निश्चयात्मक विधि से यहाँ तात्पर्य आचरण के सामान्य नियमों से हैं जिन्हें राजनैतिक रूप से श्रेष्ठ व्यक्ति द्वारा राजनैतिक रूप से अवर व्यक्ति के लिये निरूपित किया जाता है. निश्चयात्मक विधि (Positive Law) की तीन मुख्य विशेषतायें हैं। यह एक प्रकार का समादेश (Command) है, यह राजनैतिक रूप से संप्रभु द्वारा निरूपित या निर्धारित किया जाता है और उसका प्रवर्तन एक अनुशास्ति (Sanction) द्वारा होता है |
4. हालैंड की परिभाषा
हालैंड (Holland) के अनुसार, विधिशास्त्र निश्चयात्मक विधि का औपचारिक विज्ञान (Formal Science Of Positive Law) है. पूरी परिभाषा इस प्रकार है. विधिशास्त्र से अभिप्राय उन मानवीय सम्बन्धों के औपचारिक विज्ञान से हैं जिनके लिये यह सामान्यतया स्वीकार किया जाता है कि उनके विधिक प्रभाव होते हैं- निश्चयात्मक विधि का औपचारिक विज्ञान एक औपचारिक विज्ञान वह है जो उसमें अंतर्निहित मूलभूत सिद्धान्तों की विवेचना करता है, एक पार्थिव विज्ञान नहीं जो ठोस विवरणों (Details) की विवेचना करता है |
विधिशास्त्र सम्बन्धी विचारधारायें
विधिशास्त्र के प्रति विभिन्न विधिशास्त्रियों ने विभिन्न दृष्टिकोण अपनाये हैं और ऐसा होना अपने आप में अस्वाभाविक नहीं है. मनुष्य जिन परिस्थितियों की उपज है वह समाज जिसमें विचारक पैदा हुआ है उसमें विधि सम्बन्धी किन मान्यताओं पर विशेष बल दिया जाता है वे उस विचारक (विधिशास्त्री) की दृष्टिकोण में परिलक्षित होंगे ही. जैसे हिन्दू समाज ने अपनी विधि सम्बन्धी मान्यता में नैतिकता पर विशेष बल दिया न कि अधिकार पर। इसी भाँति यूनानी एवं रोमन समाज ने अपनी विधि सम्बन्धी मान्यता में नीति (Ethics) न्याय एवं नैतिकता को प्रधानता दिया. अतः हिन्दू विधिशास्त्रियों और यूनानी एवं रोमन विधिशास्त्रियों की लेखनी में इस दृष्टिकोण को प्रधानता दी गई |
यहाँ स्कूल से हमारा तात्पर्य विचारधारा से है. इस प्रकार की विचारधारा के प्रति करीब-करीब समान दृष्टिकोण अपनाने वाले विधिशास्त्रियों को एक स्कूल में रखा गया है. इस प्रकार विधिशास्त्र के विभिन्न स्कूल हैं. यथा, प्राकृतिक विधि विचारधारा (Natural law School), विश्लेषणात्मक विचारधारा (Analytical School), ऐतिहासिक विचारधारा (Historical School), समाजशास्त्रीय विधिशास्त्र (Sociological School), यथार्थवादी विचारधारा (Realist School) आदि।