BNS धारा 1 क्या है? | बीएनएस के उद्देश्य एवं कारणों का कथन

भारत के तीन नए आपराधिक कानून; भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA), 1 जुलाई, 2024 से लागू होंगे. भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने नई भारतीय कानूनी प्रणाली में भारतीय दंड संहिता (IPC) का स्थान ले लिया है, जिसमें धाराओं की संख्या 511 से घटाकर … Read more

भारतीय संविधान में संवैधानिक संशोधन

संवैधानिक संशोधन भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया अनुच्छेद 368, भाग-20 में दी गई है. संविधान निर्माताओं ने जान बूझकर संवैधानिक संशोधन की ऐसी प्रक्रिया रखी है जो न ब्रिटिश संविधान की तरह आसान है और न अमेरिका या आस्ट्रेलिया की तरह कठिन ही. परन्तु कुछ अन्य अनुच्छेदों में साधारण विधायी प्रक्रिया द्वारा संशोधन की व्यवस्था … Read more

अस्थायी व्यादेश एवं स्थायी व्यादेश क्या है? दोनों में क्या अंतर है?

अस्थायी व्यादेश अथवा निषेधाज्ञा विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 37 (1) के अनुसार अस्थायी व्यादेश किसी निश्चित समय या न्यायालय के अग्रिम आदेश तक जारी किये जा सकते हैं और वादी और वाद के दौरान किसी भी अवस्था में प्रार्थना करने पर जारी किये जा सकते हैं तथा दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों द्वारा … Read more

निषेधाज्ञा या व्यादेश की परिभाषा, प्रकार एवं विशेषताएं | व्यादेश कब जारी नहीं होगा?

निषेधाज्ञा या व्यादेश की परिभाषा व्यादेश को निवारक अनुतोष (Preventive Relief) भी कहा जाता है. इसके द्वारा किसी व्यक्ति के अधिकारों में अनुचित हस्तक्षेप करने या करने की धमकी देने से किसी अन्य व्यक्ति को रोका जाता है. बर्नी के इंग्लैण्ड की विधियों के विश्व शब्दकोष के अनुसार व्यादेश एक न्यायिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा … Read more

केल्सन का विधि विषयक शुद्ध सिद्धान्त | ऑस्टिन तथा केल्सन के सिद्धान्तों में अन्तर

केल्सन का विधि विषयक शुद्ध सिद्धान्त केल्सन ने विधि का अर्थ विश्लेषणात्मक (Analytical) रूप से लिया है. केल्सन का सिद्धान्त स्टेमलर के सिद्धान्तों से मिलता-जुलता है. उन्होंने विधि सिद्धान्त को राजनीति, नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र, इच्छा, प्रवृत्ति इत्यादि से दूर रखने पर बल दिया, इसलिए उनका सिद्धान्त ‘शुद्ध सिद्धान्त’ कहलाता है. वे विधि को न्याय सिद्धान्त … Read more

विधिशास्त्र की समाजशास्त्रीय विचारधारा के मुख्य सिद्धांत

समाजशास्त्रीय विचारधारा विधि समाज के लिये है न कि समाज विधि के लिये (Law is a means to an end) इस विचारधारा के अनुसार विधिशास्त्र का अध्ययन ऐसी पद्धति से किया जाना चाहिए जिसमें ‘सामुदायिक’ जीवन के अन्तर्गत सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों और संव्यवहारों को नियमबद्ध किया जा सके अर्थात विधि … Read more

योगदायी उपेक्षा क्या है? | अंशदायी असावधानी के सिद्धांत एवं अपवाद

योगदायी उपेक्षा की परिभाषा इसे अंशदायी असावधानी के नाम से भी जाना जाता है. योगदायी उपेक्षा से तात्पर्य उस उपेक्षा से है जिसमें प्रतिवादी के साथ-साथ वादी की भी उपेक्षा रही है और इस प्रकार उपेक्षा में वादी एवं प्रतिवादी दोनों का ही योगदान रहा है. यदि इस प्रकार हुई किसी उपेक्षा के परिणामस्वरूप वादी … Read more

भूमिगत अतिचार : अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व

भूमिगत अतिचार “दूसरे की भूमि पर वेजा (Unwarranted) प्रवेश अथवा किसी भी भूमि के कब्जे में हस्तक्षेप का सीधा एवं अव्यवहित्त (immediate) कृत्य भूमिगत अतिचार कहा जाता है.” अण्डरहिल के अनुसार, अतिचार के अपकृत्य के लिए न बल प्रयोग आवश्यक है, न अवैध इरादा, न वास्तविक क्षति, और न ही संलग्न किसी वस्तु को तोड़ना. … Read more

अतिचार की परिभाषा, आवश्यक शर्तें अथवा लक्षण | चल सम्पत्ति के अतिचार के विरुद्ध उपचार

चल सम्पत्ति के प्रति अतिचार किसी व्यक्ति की चल सम्पत्ति को अनधिकृत रूप से हस्तगत करने, उस पर आधिपत्य जमाने, उसके प्रति किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने को चल सम्पत्ति के प्रति अतिचार कहते हैं. यह भी जाने : भूमिगत अतिचार : अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व चल सम्पत्ति सम्बन्धी अतिचार में निम्नलिखित दो … Read more

विधि के स्रोत | Sources of law

विधि के स्रोत (Sources of Law) स्त्रोत शब्द से तात्पर्य उद्गम या प्रारम्भ से होता है. अतः विधि के स्त्रोत से तात्पर्य उन साधनों से है जो किसी कानून का ज्ञान कराते हैं. न्यायाधीश सामान्य तौर पर विधि बनाने वाले नियमों की ओर ध्यान देते हैं तथा उसमें से विधि की खोजबीन करने का प्रयास … Read more