विधिशास्त्र की समाजशास्त्रीय विचारधारा के मुख्य सिद्धांत

समाजशास्त्रीय विचारधारा विधि समाज के लिये है न कि समाज विधि के लिये (Law is a means to an end) इस विचारधारा के अनुसार विधिशास्त्र का अध्ययन ऐसी पद्धति से किया जाना चाहिए जिसमें ‘सामुदायिक’ जीवन के अन्तर्गत सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों और संव्यवहारों को नियमबद्ध किया जा सके अर्थात विधि … Read more

योगदायी उपेक्षा क्या है? | अंशदायी असावधानी के सिद्धांत एवं अपवाद

योगदायी उपेक्षा की परिभाषा इसे अंशदायी असावधानी के नाम से भी जाना जाता है. योगदायी उपेक्षा से तात्पर्य उस उपेक्षा से है जिसमें प्रतिवादी के साथ-साथ वादी की भी उपेक्षा रही है और इस प्रकार उपेक्षा में वादी एवं प्रतिवादी दोनों का ही योगदान रहा है. यदि इस प्रकार हुई किसी उपेक्षा के परिणामस्वरूप वादी … Read more

भूमिगत अतिचार : अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व

भूमिगत अतिचार “दूसरे की भूमि पर वेजा (Unwarranted) प्रवेश अथवा किसी भी भूमि के कब्जे में हस्तक्षेप का सीधा एवं अव्यवहित्त (immediate) कृत्य भूमिगत अतिचार कहा जाता है.” अण्डरहिल के अनुसार, अतिचार के अपकृत्य के लिए न बल प्रयोग आवश्यक है, न अवैध इरादा, न वास्तविक क्षति, और न ही संलग्न किसी वस्तु को तोड़ना. … Read more

अतिचार की परिभाषा, आवश्यक शर्तें अथवा लक्षण | चल सम्पत्ति के अतिचार के विरुद्ध उपचार

चल सम्पत्ति के प्रति अतिचार किसी व्यक्ति की चल सम्पत्ति को अनधिकृत रूप से हस्तगत करने, उस पर आधिपत्य जमाने, उसके प्रति किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने को चल सम्पत्ति के प्रति अतिचार कहते हैं. यह भी जाने : भूमिगत अतिचार : अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व चल सम्पत्ति सम्बन्धी अतिचार में निम्नलिखित दो … Read more

विधि के स्रोत | Sources of law

विधि के स्रोत (Sources of Law) स्त्रोत शब्द से तात्पर्य उद्गम या प्रारम्भ से होता है. अतः विधि के स्त्रोत से तात्पर्य उन साधनों से है जो किसी कानून का ज्ञान कराते हैं. न्यायाधीश सामान्य तौर पर विधि बनाने वाले नियमों की ओर ध्यान देते हैं तथा उसमें से विधि की खोजबीन करने का प्रयास … Read more

सम्पत्ति की अवधारणा : अर्थ, परिभाषा, प्रयोग, सिद्धान्त एवं प्रकार

सम्पत्ति की अवधारणा प्रत्येक मानव के लिये सम्पत्ति बहुत महत्वपूर्ण है. सम्पत्ति मनुष्य के लिये आर्थिक आधार है. सम्पत्ति के बिना मनुष्य का आर्थिक अस्तित्व संकटमय है सम्पत्ति व्यक्ति के अधिकार की विषयवस्तु है. अर्जन करना मनुष्य की प्रकृति है तथा सम्पत्ति उसका प्रयोजन है. सम्पत्ति से सम्बन्धित कब्जा और स्वामित्व है. सम्पत्ति का सम्बन्ध … Read more

राज्यपाल की नियुक्ति और उसकी शक्तियां?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 के अनुसार, प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल होता है किन्तु एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जा सकता है. राज्यपाल की नियुक्ति अनुच्छेद 155 और 156 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और वह राष्ट्रपति … Read more

पूर्व-निर्णय | पूर्व-निर्णय का सिद्धांत

न्यायिक पूर्व-निर्णय का महत्व लगभग सभी विधि प्रणालियों में विद्यमान है. निर्णय देने वाले न्यायालय के ऊपर पूर्व-निर्णय की बाध्यता का तत्व निर्णीतानुसरण के रूप में उत्पन्न होता है यह विधि का साक्ष्य नहीं है बल्कि स्रोत है. पूर्व-निर्णय का अर्थ सामण्ड के अनुसार, न्यायिक पूर्व-निर्णय न्यायालय द्वारा दिया गया ऐसा निर्णय है जिसमें विधि … Read more

आधिपत्य या कब्जा की परिभाषा एवं आधिपत्य के तत्व | आधिपत्य के सिद्धान्त

आधिपत्य या कब्जा की परिभाषा सामण्ड के अनुसार, “किसी भौतिक वस्तु के आधिपत्य अथवा कब्जा का तात्पर्य उस (वस्तु) के अनन्य उपयोग के अधिकार का निरन्तर प्रयोग है.” उपर्युक्त परिभाषा में हम दो तत्व पाते हैं- दूसरे शब्दों में ‘आधिपत्य’ में दो तत्व मौजूद रहते हैं- मेन के अनुसार, “किसी वस्तु पर भौतिक अधिकार उसको … Read more

अनुश्रुत साक्ष्य क्या है? | कब अनुश्रुत साक्ष्य ग्राह्य होता है?

अनुश्रुत साक्ष्य अनुश्रुत शब्द की परिभाषा साक्ष्य अधिनियम में नहीं दी गई है. यह वह साक्ष्य है जो साक्षी की स्वयं की जानकारी का न हो कर किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त किया गया होता है. यह न्यायालय के बाहर किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया था जो वाद में पक्षकार नहीं है. टेलर के … Read more