वृत्तिक ससूचनायें क्या हैं?
वृत्तिक ससूचनायें या पेशेवर संचार क्या हैं? जब नियोजन के अनुक्रम में एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को दीवानी या आपराधिक विषय पर संसूचना दी जाती है तो इसे वृत्तिक संसूचना (Professional Communication) कहा जाता है. इस प्रकार की संसूचनायें साक्ष्य अधिनियम की धारायें 126, 127, 128 तथा 129 तक विस्तारित हैं. साक्ष्य विधि के अन्तर्गत अधिनियमित इन विशेषाधिकारों का एक ही उद्देश्य है तथा ये सभी एक ही प्रकार की हैं.
इन धाराओं का सम्बन्ध कक्षीकार (Orbiter), विधिक सलाहकार एवं लिपिक तथा नौकर के बीच हुयी वृत्तिक संसूचना से है. यदि वकील स्वयं साक्षी के रूप में प्रस्तुत हो रहा है तो धारा 126 लागू होगी. यदि वकील का लिपिक, सेवक तथा दुभाषिया साक्षी होता है तो धारा 127 लागू होगी. यदि कक्षीकार स्वयं साक्ष्य दे रहा है तो धारा 129 लागू होगी. ये संसूचनायें वृतिक संसूचना के अन्तर्गत आती हैं जो स्वयं कक्षीकार द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा विधि सलाहकारों को नियोजन के अनुक्रम में या नियोजन के प्रयोजनार्थ दी जाती हैं.
इनकी संसूचनाओं का सम्बन्ध किसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु से या उसके निबन्धनों से होता है. इन धाराओं का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि यदि विधि सलाहकारों को दी गयी संसूचनाओं का संरक्षण नहीं दिया गया तो वह चाहे सिविल मामला हो या दाण्डिक कक्षीकार सत्य बात बताने से भयभीत हो जायेगा जिसके कारण न्याय की विफलता होगी कारण यह है कि जब तक विधिक सलाहकार को सभी बात पूर्ण एवं सत्य नहीं बतायी जायेगी तब तक न्यायालय में सर्वोत्तम साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करेगा इसलिये विधिक सलाहकार का यह नैतिक कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने तथा कक्षीकार के बीच वृत्तिक संसूचना को गोपनीय रखे. इसी नैतिक कर्तव्य को इन धाराओं में विधिक रूप दिया गया है.
धारा 126 के अनुसार, कोई भी बैरिस्टर, अटार्नी, प्लीडर या वकील किसी ऐसी संसूचना को प्रकट करने के लिये अनुज्ञात नहीं किया जायेगा जो-
- (a) उसके कक्षीकार या उसकी ओर से किसी व्यक्ति ने नियोजन के अनुक्रम में या प्रयोजनार्थ दिया हो, या
- (b) किसी दस्तावेज के बारे में वह अपने वृत्तिक नियोजन के अनुक्रम में या प्रयोजनार्थ परिचित हुआ है.
तथा उस दस्तावेज की अन्तर्वस्तु, दशा या सलाह को जो नियोजन के अनुक्रम में या प्रयोजनार्थ, वकील, बैरिस्टर, अटर्नी, प्लीडर अपने कक्षीकार को दी है उसे भी प्रकट करने के लिये अनुज्ञात नहीं किया जायेगा.
लेकिन ऐसी संसूचना उस समय प्रकट की जा सकेगी जब-
- (a) कक्षीकार ने अभिव्यक्त सहमति दे दी है.
- (b) संसूचना अवैध प्रयोजन को अग्रसर करने में दी गयी है तथा
- (c) नियोजन के प्रारम्भ के पश्चात् कोई अपराध या कपट किया गया है.
इस धारा के निम्नलिखित दृष्टान्त है-
- कक्षीकार का अटर्नी ‘ख’ से कहता है कि मैंने कूटरचना की है और मैं चाहता हूँ कि आप मेरी प्रतिरक्षा करें. यह संसूचना प्रकटन से संरक्षित है क्योंकि ऐसे व्यक्ति की प्रतिरक्षा आपराधिक प्रयोजन के लिये नहीं है जिसका दोषी होना ज्ञात है.
- कक्षीकार ‘क’ अटर्नी ‘ख’ से कहता है कि मैं सम्पत्ति पर कब्जा कूटरचित विलेख के उपयोग द्वारा अभिप्राप्त करना चाहता हूँ और इस आधार पर वाद लाने की आपसे प्रार्थना करता हूँ.
यह संसूचना आपराधिक प्रयोजन के अग्रसर करने में की गयी होने से प्रकटन से संरक्षित नहीं है. धारा 128 के अनुसार, मात्र इसलिये कक्षीकार की सहमति प्रकटीकरण के लिये नहीं मानी जायेगी कि कक्षीकार वाद का पक्षकार होने के नात स्वयं साक्ष्य दे रहा है. और यदि वकील साक्षी के रूप में बुलाया जाता है तो उसका बुलाया जाना प्रकटीकरण के लिए तभी सम्मति मानी जायेगी जब वकील से कोई ऐसा प्रश्न पूछा जाता है जो उस प्रश्न के न पूछे जाने पर वह प्रकट करने के लिये स्वतन्त्र न होता.
धारा 129 के अन्तर्गत कक्षीकार को भी उस संसूचना के प्रकटीकरण से विशेषाधिकृत किया गया है जो धारा 126 के अन्तर्गत वकील नहीं प्रकट कर सकता.
धारा 129 के अनुसार, जब तक कोई कक्षीकार स्वयं अपने को साक्षी के रूप में प्रस्तुत नहीं करता तब उसको संसूचना को प्रकट करने के लिये विवश नहीं किया जा सकता कि उसके और विधिक सलाहकार के बीच क्या गोपनीय संसूचनायें एक दूसरे को दी गयीं.
यदि कक्षीकार स्वयं अपने को साक्षी के रूप में प्रस्तुत करता है तो भी उसे केवल उन्हीं संसूचनाओं को प्रकट करने के लिये विवश किया जा सकता है जिन्हें न्यायालय उसके द्वारा दिये साक्ष्य के स्पष्टीकरण के लिये आवश्यक समझता है. इनके अतिरिक्त अन्य किसी संसूचना के लिये कक्षोकार विवश नहीं किया जा सकता है.
कर्मजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (AIR 2010 NOC 699) के वाद में कहा गया कि साधारण खण्ड अधिनियम की धारा 3 को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 के साथ पढ़ा जाना चाहिये |