बीएनएसएस की धारा 173 : संज्ञेय मामलों में इत्तिला

बीएनएसएस की धारा 173 : संज्ञेय मामलों में इत्तिला

संज्ञेय अपराध की सूचना मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में दी जा सकती है, जिसे विधिपूर्वक दर्ज कर हस्ताक्षरित किया जाएगा.
महिला पीड़िता की सूचना महिला अधिकारी द्वारा दर्ज होगी; अशक्त व्यक्तियों की सूचना विशेष सुविधा सहित ली जाएगी और वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी.
यदि अपराध का दंड 3 से 7 वर्ष है, तो थाना प्रभारी 14 दिन में जांच के लिए प्रथम दृष्टया आधार तय करेगा और आवश्यकता पर प्रारंभिक जांच करवाई जाएगी.
FIR दर्ज न होने पर पीड़ित SP को शिकायत कर सकता है; Zero FIR का प्रावधान है और FIR दर्ज करना पुलिस की बाध्यता है (ललिता कुमारी केस).

नोट : यह धारा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 154 के समरूप है।

इत्तिला देने का तरीका

प्रत्येक इत्तिला (सूचना) जो थाने के भारसाधक अधिकारी को दी जाती है:

  • मौखिक रूप में दी जाए तो उसे लेखबद्ध किया जाएगा और सूचना देने वाले व्यक्ति से हस्ताक्षर कराए जाएंगे. लिखित रूप में दी जाए तो उस पर व्यक्ति के हस्ताक्षर कराए जाएंगे.
  • इलेक्ट्रॉनिक रूप में दी जाए तो उसे तीन दिनों के भीतर हस्ताक्षरित करवाकर लेखबद्ध किया जाएगा |

इत्तिला का पंजीकरण

इत्तिला को उस पुस्तक में दर्ज किया जाएगा जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की गई हो |

परंतु यह और कि —

  • यदि इत्तिला महिला द्वारा दी जाती है और अपराध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, 65, 66, 67, 68, 69, 70, 71, 74, 75, 76, 77, 78, 79, 124 के अंतर्गत है, तो ऐसी सूचना महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा ही लेखबद्ध की जाएगी. यदि पीड़ित मानसिक या शारीरिक रूप से अशक्त हो तब पुलिस अधिकारी द्वारा सूचना उस व्यक्ति के निवास स्थान या उसके विकल्प के अनुसार किसी सुगम स्थान पर द्विभाषिए और विशेष प्रशिक्षक की उपस्थिति में दर्ज की जाएगी.
  • ऐसी सूचना की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाएगी.
    संबंधित पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 183(6)(क) के अंतर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शीघ्र ही उस व्यक्ति का कथन भी दर्ज कराया जाएगा |

नोट : सूचना की प्रति निःशुल्क प्रदान की जाएगी.

प्रारंभिक जाँच का प्रावधान

किसी संज्ञेय अपराध की सूचना पर यदि उस अपराध के लिए 3 वर्ष से अधिक परंतु 7 वर्ष से कम का दंड निर्धारित है: तो थाना प्रभारी 14 दिनों की अवधि में यह तय करेगा कि प्रथम दृष्टया आधार है या नहीं. यदि आवश्यक हो तो वह प्रारंभिक जाँच हेतु अन्वेषण अधिकारी (उप पुलिस अधीक्षक रैंक से नीचे न हो) को नियुक्त कर सकता है.

अधिकारी को अपराध की प्रकृति और गंभीरता का ध्यान रखते हुए कार्यवाही करनी होगी |

FIR दर्ज नहीं करने की स्थिति में उपाय

यदि थाना प्रभारी FIR दर्ज नहीं करता है, तो पीड़ित पुलिस अधीक्षक को डाक द्वारा लिखित सूचना भेज सकता है.

यदि अपराध संज्ञेय है, तो पुलिस अधीक्षक स्वयं अन्वेषण कर सकता है, या किसी अधिकारी को अन्वेषण का आदेश दे सकता है. इस अधिकारी को वही शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो अन्वेषण के लिए मजिस्ट्रेट से आवेदन हेतु आवश्यक हैं |

Zero FIR का प्रावधान

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में Zero FIR को शामिल किया गया है. इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति FIR किसी भी पुलिस थाने में दर्ज करा सकता है, भले ही अपराध कहीं और हुआ हो या थाना उस क्षेत्र का न हो |

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय

1. ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को FIR दर्ज करना अनिवार्य है यदि संज्ञेय अपराध की सूचना मिले।

2. सी. मंगेश एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य (AIR 2010 SC 2768) : कोर्ट ने कहा कि FIR ठोस साक्ष्य नहीं होती, यह केवल सूचना देने वाले के कथन की पुष्टि के लिए प्रयोग की जा सकती है |

FIR की कानूनी स्थिति

FIR न तो मूल साक्ष्य है, न ही इसे मुकदमे के दौरान विचारणीय प्रमाण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है.

इसे केवल सूचना देने वाले के समर्थन में, या सूचना देने वाले के विरोध में प्रयोग किया जा सकता है |

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