केल्सन का विधि विषयक शुद्ध सिद्धान्त | ऑस्टिन तथा केल्सन के सिद्धान्तों में अन्तर

केल्सन का विधि विषयक शुद्ध सिद्धान्त | ऑस्टिन तथा केल्सन के सिद्धान्तों में अन्तर

केल्सन का विधि विषयक शुद्ध सिद्धान्त

केल्सन ने विधि का अर्थ विश्लेषणात्मक (Analytical) रूप से लिया है. केल्सन का सिद्धान्त स्टेमलर के सिद्धान्तों से मिलता-जुलता है. उन्होंने विधि सिद्धान्त को राजनीति, नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र, इच्छा, प्रवृत्ति इत्यादि से दूर रखने पर बल दिया, इसलिए उनका सिद्धान्त ‘शुद्ध सिद्धान्त’ कहलाता है. वे विधि को न्याय सिद्धान्त से भी पृथक रखना चाहते हैं. वे विधि में आदर्शवाद के समावेश को अनुचित मानते हैं.

केल्सन के अनुसार, कानून प्राकृतिक विज्ञान नहीं अपितु यह सामाजिक विज्ञान है. प्राकृतिक विज्ञान और कानून के सिद्धान्तों में अन्तर है. प्राकृतिक विज्ञान कार्यकारण के सम्बन्ध को बताता है. इसका सम्बन्ध ‘है’ (Sein) से है. उदाहरण के लिए, यदि सेब पेड़ से टूटता है तो जमीन की ओर आता है. अतः प्राकृतिक विज्ञान किसी कार्य का अनिवार्य रूप से होना सूचित करता है. इससे यह साबित होता है कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण शक्ति है.

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आखिर सेब ऊपर आकाश में क्यों नहीं चला जाता? इसके विपरीत कानून यह बताता है कि किसी परिस्थिति में क्या होना चाहिए. यदि चोर चोरी करता है तो उसे दण्ड मिलना चाहिए. अतः उसका सम्बन्ध ‘चाहिए’ (Sollen) से है. संक्षेप में प्राकृतिक विज्ञान ‘कारणता’ (casualty) का बोधक है; जब कि कानून (सामाजिक विज्ञान) ‘मानकत्व’ (normativity) का. एक ‘है’ (is) से सम्बन्धित है, जबकि जबकि दूसरा ‘चाहिए’ (ought) से है लेकिन इस ‘चाहिए’ और नैतिकता के ‘चाहिए’ में अन्तर है.

केल्सन ने कहा कि “विधि जो है” की व्याख्या की जानी चाहिये, “विधि जो होनी चाहिये” की नहीं. इस ‘चाहिए’ के पीछ राज्य की ‘शक्ति’ काम कर रही है. यहाँ तक कि आस्टिन और केल्सन में विशेष अन्तर नहीं दिखायी देता लेकिन इसके आगे दोनों के विचारों में अन्तर होता जाता है. आस्टिन के लिए कानून प्रभुसत्ता का आदेश है. केल्सन इसकी आलोचना करते हुए कहते हैं कि ‘आदेश’ शब्द कानून के सिद्धान्त के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक तत्व ला देता है. कानून का सिद्धान्त शुद्ध होना चाहिए |

केल्सन के विधि के विशुद्ध सिद्धान्त के आवश्यक तत्व

शुद्ध विधि सिद्धान्त के मुख्य तत्व इस प्रकार हैं-

  1. शुद्ध विधि के सिद्धान्त का उद्देश्य अव्यवस्था को कम कर एकता स्थापित करना.
  2. विधि के सिद्धान्त की प्रकृति वैज्ञानिक है.
  3. विधि मानकीय विज्ञान है न कि प्राकृतिक विज्ञान.
  4. विधि की व्याख्या “जो है” की जानी चाहिये न कि “जो होनी चाहिये”.
  5. विधि का सिद्धान्त प्रारूपिक है.
  6. मानकों के सिद्धान्त के रूप में विधि की व्याख्या होनी चाहिये |

केल्सन के मूल मानक की संकल्पना

केल्सन शुद्ध विधि के सिद्धान्त का केन्द्र बिन्दु मानकों (norms) की उत्पत्ति को मानते हैं. उनका कहना है कि मानकों की क्रमबद्ध श्रृंखला ही विधि का स्वरूप बनाती है. सभी मानक अपनी वैधता, मूल मानक (Grund norm) से प्राप्त करते हैं. क्या कोई मानक वैध है या नहीं, इसका निर्धारण मूल-मानक से होता है किन्तु मूल मानक की वैधता प्रारम्भिक कल्पना के आधार पर होती है. मूल मानक स्वयं में वैध माना जाता है. उनके अनुसार विधि का कार्य मूल-मानक एवं अन्य मानकों के पारस्परिक संबंधों पर विचार करना होता है. उनके अनुसार सभी विधि कल्पनाओं में कोई न कोई मूल मानक अवश्य होता है. मूल मानक संविधान, संसद, शासक की इच्छा इत्यादि किसी भी रूप में हो सकता है.

केल्सन के सिद्धान्त का महत्व

  1. इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य तथा विधि के बीच कोई द्वैधता नहीं है.
  2. इस सिद्धान्त के द्वारा केल्सन ने यह भी समझाया कि विधि का स्वरूप आदेशात्मक होता है. अर्थात केल्सन ने ‘शास्ति’ को अस्वीकार कर दिया था.
  3. केल्सन ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून को राज्य विधि से श्रेष्ठ माना.
  4. इस सिद्धान्त ने रूढ़िगत विधि को वास्तविक विधि के रूप में मान्यता दी.
  5. इस सिद्धान्त से विधिक व्यक्तित्व के सिद्धान्त से सम्बन्धित समस्याओं के हल में सहायता मिली |

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विधि के विशुद्ध सिद्धान्त की आलोचना

  1. केल्सन के सिद्धान्त में मूल मानक एक ऐसी परिकल्पना है जिसे सिद्ध नहीं किया जा सकता है.
  2. इस सिद्धान्त ने अन्तर्राष्ट्रीय विधि को राष्ट्रीय विधि पर प्राथमिकता देकर प्राकृतिक विधि को पिछले द्वार से प्रवेश देने का रास्ता खोल दिया है.
  3. लॉस्की के अनुसार यह सिद्धान्त व्यावहारिकता से बहुत दूर है. यह आधुनिक विधिक समस्याओं को हल नहीं कर सकता है.
  4. केल्सन ने राज्य और विधि की द्वैधता (dualism) को समाप्त करके राज्य की शक्ति को सीमित कर दिया, जो कि उचित नहीं है. उदाहरणार्थ, अनेक अवसरों पर राज्य को विधि के विधिक क्रम के दायरे से बाहर भी कार्य करना पड़ता है. केल्सन ने अपने विधि-सिद्धान्त के द्वारा पब्लिक और प्राइवेट विधि के अन्तर को समाप्त करके राज्य के विधिक दायित्व के निर्धारण की आवश्यकता की ओर ध्यान नहीं दिया.
  5. विधिक प्रणाली के लिये प्रभावकारिता केवल आधार नहीं है.
  6. डायस ने कहा कि केल्सन के सिद्धान्त सभी स्थितियों में लागू नहीं होते हैं.
  7. मूल मानक के विभिन्न वर्णन स्पष्ट नहीं हैं |

ऑस्टिन तथा केल्सन के सिद्धान्तों में अन्तर

दोनों कानून उसे मानते हैं जो वास्तव में ‘है’ (is), कानून वह नहीं है जो इसे ‘होना चाहिए’ (ought to be). दोनों मानते हैं कि कानून की मान्यता या वैधता पीछे लगी हुई ‘शक्ति’ में है. फिर भी ऑस्टिन और केल्सन निम्नलिखित कुछ बातों में भिन्न हैं-

  1. ऑस्टिन राज्य को कानून का निर्माता कहते हैं. केल्सन का कहना है कि राज्य और कानून में कोई अन्तर नहीं है.
  2. ऑस्टिन के अनुसार कानून की मान्यता या वैधता उसकी शक्ति ‘शास्ति’ (Sanction) है लेकिन केल्सन इसको अस्वीकार करता है.
  3. केल्सन ‘आदेश’ को एक मनोवैज्ञानिक तत्व समझता है. उसके अनुसार ‘शुद्ध सिद्धान्त’ में कोई मनोवैज्ञानिक तत्व नहीं आना चाहिए.
  4. ऑस्टिन का सिद्धान्त ‘स्थिर’ (static) है, जबकि केल्सन का क्रियाशील (dynamic) केल्सन अपनी व्यवस्था में प्रथाओं या रीतिरिवाज को भी रख सकते हैं, जबकि ऑस्टिन इसे कानून समझता ही नहीं.
    ऑस्टिन ने अपने विचारों को अधिकांशतः इंग्लैण्ड की तत्कालीन विधि-व्यवस्था पर आधारित किया, अतः उसकी पद्धति में सार्वभौमिकता का अभाव है, जबकि केल्सन ने विधि के विशुद्ध सिद्धान्त में सार्वभौमिकता को प्रधानता दी.
  5. ऑस्टिन अन्तर्राष्ट्रीय विधि को कानून नहीं मानता है. वह इसे सुस्पष्ट नैतिकता (Positive Morality) कहता है. केल्सन अन्तर्राष्ट्रीय विधि को भी कानून मानते हैं.
  6. आस्टिन के अनुसार सार्वजनिक और निजी विधि में अन्तर है. केल्सन ने अन्तर समाप्त कर दिया है.
    आस्टिन का दर्शन उपयोगिता पर आधारित है, केल्सन ने सभी मूल्य पर आधारित तत्वों को अलग कर दिया |

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